पहली बारिश में ही गुरुग्राम दरिया बन गया. बीते पंद्रह दिनों में विकास और समृद्धि के प्रतिमान दिल्ली-जयपुर हाईवे पर दो बार जलभराव के कारण जाम लग चुके हैं।
ऐसा बीते पांच सालों से हर साल हो रहा है नाली बनती है, फ्लाईओवर बनते हैं लेकिन बरसात होते ही जल वहीं आ जाता है. यह सभी जानते हैं कि असल में जहां पानी भरता है, वह अरावली से चलकर नजफगढ़ में मिलने वाली साहबी नदी का हजारों साल पुराना मार्ग है, नदी सुखाकर सड़क बनाई लेकिन नदी भी इंसान की तरह होती है, उसकी याददाश्त होती है, वह अपना रास्ता 200 साल नहीं भूलती.
अब समाज कहता है कि उसके घर-मोहल्ले में जल भर गया, जबकि नदी कहती है कि मेरे घर में इंसान बलात कब्जा किए हुए हैं. देश के छोटे-बड़े शहर-कस्बों में कंक्रीट के जंगल बोने के बाद जलभराव एक स्थाई समस्या है और इसका मूल कारण है कि वहां बहने वाली कोई छोटी नदी, बरसाती नाले और जोहड़ों को समाज ने अस्तित्वहीन समझ कर मिटा दिया।
यह तो अब समझ आ रहा है कि समाज, देश और धरती के लिए नदियां और बरसाती नाले बहुत जरूरी हैं, लेकिन अभी यह समझ में आना शेष है कि छोटी नदियों और बरसाती नालों पर ध्यान देना अधिक जरूरी है. गंगा, यमुना जैसी बड़ी नदियों को स्वच्छ रखने पर तो बहुत काम हो रहा है, पर ये नदियां बड़ी इसीलिए बनती हैं क्योंकि इनमें बहुत सी छोटी नदियां आकर मिलती हैं.
यदि छोटी नदियों में पानी कम होगा तो बड़ी नदी भी सूखी रहेंगी, यदि छोटी नदी में गंदगी या प्रदूषण होगा तो वह बड़ी नदी को प्रभावित करेगा. बरसाती नाले अचानक आई बारिश की असीम जल निधि को अपने में समेट कर समाज को डूबने से बचाते हैं.
छोटी नदियां और नाले अक्सर गांव, कस्बों में बहुत कम दूरी में बहते हैं. कई बार एक ही नदी के अलग-अलग गांव में अलग-अलग नाम होते हैं–कभी वह नाला कहलाती है, कभी नदी. ऐसी कई जल निधियों का तो रिकॉर्ड भी नहीं है. एक मोटा अनुमान है कि आज भी देश में कोई 12 हजार छोटी ऐसी नदियां हैं, जो उपेक्षित हैं, उनके अस्तित्व पर खतरा है.