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ब्लॉग: कोटा के कोचिंग सेंटरों में क्यों बढ़ रही हैं आत्महत्याएं ?

By रमेश ठाकुर | Updated: September 1, 2023 08:49 IST

राजस्थान के कोटा शहर में अध्ययनरत विद्यार्थियों की कथित सुसाइड की घटनाओं ने समूचे देश का ध्यान खींचा है।

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ठळक मुद्देकोटा में परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के कथित सुसाइड ने समूचे देश का झकझोर दिया है कोटा शहर देशभर के छात्रों के बीच प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए ‘महाकुंभ’ बन गया हैलेकिन दुर्भाग्य है कि यह ‘शिक्षा नगरी’ मौजूदा समय में छात्रों के आत्महत्या के लिए चर्चा में है

राजस्थान के कोटा शहर में अध्ययनरत विद्यार्थियों की कथित सुसाइड की घटनाओं ने समूचे देश का ध्यान खींचा है। आला दर्जे की शिक्षा प्राप्ति के लिहाज से अभिभावकों में एक आम धारणा बन चुकी है कि अगर बच्चों को चोटी की प्रतियोगी परीक्षाएं पास करानी हैं तो राजस्थान का कोटा शहर ही अव्वल है क्योंकि कोटा शिक्षा का ‘महाकुंभ’ जो बन गया है।

इसमें कोई दो राय भी नहीं कि वहां से शिक्षा लेकर बच्चे अपने सपनों को पंख लगा रहे हैं पर दुर्भाग्य है कि ‘शिक्षा नगरी’ का खिताब हासिल कर चुका ये शहर गुजरे कुछ समय से आत्महत्या के लिए चर्चाओं में है। डर के चलते अभिभावक अपने बच्चों को वापस बुलाने लगे हैं। डिप्रेशन में आकर किशोर छात्र मौत को गले लगा रहे हैं।

बीते आठ माह के भीतर 23 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। ये घटनाएं तत्कालिक नहीं है, सिलसिला वर्षों से बदस्तूर जारी है। कोटा में हर वर्ष ऐसी 15 से 20 घटनाएं घट रही हैं। प्रत्येक सुसाइट की घटना में पुलिस अपनी जांच-पड़ताल के बाद एक ही तर्क देती है कि बच्चे पढ़ाई का प्रेशर झेल नहीं पाने के कारण ऐसा कदम उठाते हैं।

पुलिस-प्रशासन का तर्क कई मायनों में वाजिब भी दिखता है। इस कृत्य में कोचिंग संस्थानों के साथ-साथ अभिभावक भी बराबर के भागीदार हैं। छात्रों पर दोनों का संयुक्त रूप से एक जैसा दबाव होता है। ऐसी अनहोनी घटनाओं के पीछे मनोचिकित्सकों का मानना है कि बदलते दौर में जब बच्चों की उम्र खेलकूद की होती है, तब उनके समक्ष गला-काट प्रतियोगी परीक्षाओं को पास करना, नॉर्मल स्कूलों की जगह कोचिंग संस्थानों के टफ पैटर्न को झेलना, सामने वाले से बेहतर करने का घनघोर दबाव और उसके बाद शिक्षकों-अभिभावकों का बच्चों से क्षमता से ज्यादा उम्मीद रखना इसके लिए जिम्मेदार है।

सही मायनों में देखें तो सुसाइड केसों के मूल और तात्कालिक कारण यही हैं। इन कारणों को शिक्षक-अभिभावक जानते भी हैं, लेकिन अनदेखा कर देते हैं। आंकड़े तस्दीक करते हैं कि कोटा में शिक्षा के नाम पर सालाना 5 हजार करोड़ रुपये का कारोबार होता है, जिसमें सरकार को 700 करोड़ का टैक्स प्राप्त होता है।

कोटा में विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी करने वाले प्रत्येक छात्र से एक से लेकर तीन लाख तक फीस वसूली जाती है। ढाई से तीन लाख नए छात्र हर वर्ष कोटा पहुंचते हैं। कोटा में सरकार द्वारा 23 हॉस्टल पंजीकृत हैं, अपंजीकृतों की तादात इससे कहीं ज्यादा है। दस हजार से ज्यादा कोचिंग संस्थाएं फैली हैं जो अपनी कमाई का एक हिस्सा सरकार को देती हैं।

किसी भी सूरत में कोटा शहर के माथे पर लगा ‘मौत का कलंक’ हटना चाहिए। जैसे भी हो खुदकुशी के मामलों पर अंकुश लगाया जाना चाहिए।

टॅग्स :Kotaआत्मघाती हमलाआत्महत्या प्रयासsuicide attemptPolice
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