ब्लॉग: राज्यपालों के मुख्यमंत्रियों से टकराव की पहेली

By हरीश गुप्ता | Published: November 23, 2023 11:17 AM2023-11-23T11:17:43+5:302023-11-23T11:30:40+5:30

ऐसी धारणा बन गई है कि मोदी सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल राज्यों में गैर-भाजपा सरकारों के साथ संघर्ष की स्थिति में हैं। राज्यपाल राज्यों में चुनी हुई सरकारों का काम मुश्किल बना रहे हैं।

Blog: The puzzle of conflict between Governors and Chief Ministers | ब्लॉग: राज्यपालों के मुख्यमंत्रियों से टकराव की पहेली

फाइल फोटो

Highlightsमोदी काल में गैर भाजपा शासित राज्यों के राज्यपालों और मुख्यमंत्री के बीच लगातार टकराव हो रहा हैबंगाल, तमिलनाडु और पंजाब के अलावा केरल औऱ तेलंगाना में भी लगभग एक जैसी स्थिति हैराज्यों में चल रहे मुख्यमंत्री और राज्यपालों का टकराव सूप्रीम कोर्ट की दहलीज पर भी पहुंच रहा है

ऐसी धारणा बन गई है कि मोदी सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल राज्यों में गैर-भाजपा सरकारों के साथ संघर्ष की स्थिति में हैं। राज्यपाल राज्यों में चुनी हुई सरकारों का काम मुश्किल बना रहे हैं। उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में जगदीप धनखड़ लगातार टीएमसी की ममता बनर्जी के साथ कड़वी लड़ाई में शामिल थे और अंततः उन्हें उपराष्ट्रपति के प्रतिष्ठित पद तक पहुंचाया गया।

यह कोई रहस्य नहीं है कि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान की किसी न किसी मुद्दे पर पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा सरकार के साथ झड़प होती रहती है। तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि भी एमके स्टालिन सरकार के साथ तीखी लड़ाई में शामिल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अंततः तब हस्तक्षेप किया जब मामला संबंधित राज्य सरकारों द्वारा अनुमोदन के लिए भेजे गए बिलों से संबंधित फाइलों को राज्यपालों द्वारा लंबित रखे जाने का आ गया।

हाल ही में पंजाब में भी राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव हुआ लेकिन सभी राज्यपालों ने विपक्ष शासित राज्यों के साथ टकराव मोल नहीं लिया और उनमें से कई के उनके साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध हैं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत और कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बीच अब तक बेहद मधुर संबंध हैं। राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र के भी कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से अच्छे संबंध हैं, हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री पर कई घोटालों के गंभीर आरोप लगाए हैं और ईडी भी उनके परिवार के सदस्यों के पीछे पड़ी हुई है।

इसी तरह, छत्तीसगढ़ के राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन के भी भूपेश बघेल सरकार के साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध हैं। तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन का मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव के साथ सौहार्द्र एक और उदाहरण है। यहां तक कि आंध्र प्रदेश के राज्यपाल एस अब्दुल नजीर भी जगनमोहन रेड्डी सरकार के साथ बेहद सौहार्द्रपूर्ण संबंध बनाए हुए हैं।

यही बात ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास पर भी लागू होती है। उनके पूर्ववर्ती गणेशी लाल के भी मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के साथ अच्छे संबंध थे। इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि कुछ राज्यों में यह संबंध बिगड़ने की बीमारी क्यों देखी जा रही है।

कांग्रेस को मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव जीतने व अपनी ताकत बढ़ने की उम्मीद है और वह तेलंगाना में भी बीआरएस के के.चंद्रशेखर राव पर बढ़त का दावा कर रही है। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के अपने किसी भी सहयोगी के साथ कोई भी सीट साझा करने से इनकार कर दिया।

कांग्रेस का तर्क था कि इंडिया गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव के लिए है लेकिन सहयोगी दल अब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ वैसा ही व्यवहार करने का इंतजार कर रहे हैं। चाहे वह झारखंड में झामुमो हो, यूपी में समाजवादी पार्टी हो या यहां तक कि बिहार में राजद, सभी कांग्रेस से नाराज हैं और 2024 में कांग्रेस को उसके वास्तविक हक से अधिक लोकसभा सीटें आवंटित करने के मूड में नहीं हैं।

यूपी, बिहार और झारखंड की 134 लोकसभा सीटों में से, कांग्रेस 2019 के आम चुनावों में मुश्किल से तीन सीटें जीत सकी थी। यहां तक कि ये तीन सीटें भी कांग्रेस ने इन पार्टियों के साथ गठबंधन और समायोजन में जीती थीं। समाजवादी पार्टी ने यूपी में मदद का हाथ बढ़ाया तो बिहार में राजद सहयोगी थी और झारखंड में झामुमो कांग्रेस के साथ थी।

कांग्रेस ने झारखंड में राजद और झामुमो के साथ गठबंधन में नौ सीटों पर चुनाव लड़ा और उनके लिए केवल पांच सीटें छोड़ी थीं, लेकिन एक सीट ही जीत सकी। यूपी में, सपा-बसपा-रालोद गठबंधन था और उन्होंने  सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए दो सीटें-रायबरेली और अमेठी-छोड़कर उदारता दिखाई फिर भी, राहुल गांधी सीट हार गए जबकि सोनिया गांधी की मामूली अंतर से सीट बरकरार रही।

बिहार में कांग्रेस ने 40 में से 11 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ एक ही जीत सकी। इसलिए नाराज सहयोगी दल 2024 में कांग्रेस के साथ शायद उदारतापूर्वक सीटें साझा न करें। राजद ने स्पष्ट कर दिया है कि वह केवल 8 लोकसभा सीटें साझा करेगी, न कि 11, जैसा कि 2019 में हुआ था। वह अन्य छोटे सहयोगियों को तीन सीटें देने का इरादा रखती है। जैसे विकासशील इंसान पार्टी आदि। झारखंड में झामुमो 7 से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं है। यूपी में सपा सिर्फ 5 सीटें दे सकती है। वास्तव में यह जैसे को तैसा है।

एक और योगी का उदय !

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है लेकिन सर्वेक्षणकर्ता राजस्थान में भाजपा के लिए आसान जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं क्योंकि गुटों से भरी पार्टी ने आखिरकार बढ़त बना ली है। जब आलाकमान ने उनके समर्थकों को विधानसभा टिकट देने की सहमति दी तो सबसे आगे चल रहीं वसुंधराराजे सिंधिया के चेहरे पर मुस्कान थी। हालांकि, भाजपा ने राज्यवर्धन सिंह राठौड़ और दीया कुमारी सहित कई लोकसभा सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारा। लेकिन सबसे आश्चर्यजनक चयन महंत बालकनाथ का था जो खुद को ‘राजस्थान का योगी’ बताते हैं।

अलवर के सांसद बालकनाथ तिजारा विधानसभा सीट से अपनी चुनावी किस्मत आजमा रहे हैं, जिस सीट पर भाजपा ने पांच दशकों में केवल एक बार जीत हासिल की थी। इस निर्वाचन क्षेत्र में यादवों, मुस्लिमों और दलितों का वर्चस्व है। महंत हिंदू धर्म के नाथ संप्रदाय से हैं और उनका जन्म एक यादव परिवार में हुआ था। अगर भाजपा के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो बालकनाथ इस क्षेत्र के लिए एक आश्चर्यजनक चयन हो सकते हैं। किसी को इस बात का अंदाजा नहीं है कि उन्हें क्यों चुना गया क्योंकि वह हरियाणा से हैं और 2019 में राजस्थान से लोकसभा के लिए मैदान में उतरे थे।

बालकनाथ को योगी आदित्यनाथ के पैर छूते हुए भी देखा गया था जब वह उनके लिए प्रचार करने आए थे लेकिन भाजपा में कई लोगों का कहना है कि बालकनाथ को योगी आदित्यनाथ के प्रतिद्वंद्वी के रूप में तैयार किया जा रहा है। बालकनाथ के उदय ने राज्य में भी कई लोगों को झटका दिया है। पता चला है कि आरएसएस भी उन्हें आगे बढ़ाने के पक्ष में है क्योंकि वे ओबीसी हैं जबकि योगी आदित्यनाथ राजपूत हैं।

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