सत्ता तक किसी तरह पहुंचना और वहां पहुंच कर सत्ता में अधिकाधिक समय तक काबिज बने रहना सभी राजनैतिक दलों की केंद्रीय महत्वाकांक्षा होती है। सभी दल इसे जायज ठहराते हैं। कभी नि:स्वार्थ भाव से देश की सेवा और समाज के कल्याण की दृष्टि से लोग-बाग राजनीति की ओर आते थे और इस उपक्रम में प्रायः कुछ खोते-गंवाते थे। राजनीति की ओर उनका अग्रसर होना किसी दबाव से नहीं बल्कि स्वेच्छा से होता था। आज हमारे राजनेता किस तरह जनकल्याण से जुड़ रहे हैं, इसका पता ताजा घटनाओं से चलता है। अब स्वतंत्र होने के पचहत्तर साल बीतने के बाद राजनैतिक परिवेश में जिस तरह की प्रवृत्तियां उभर कर आ रही हैं, वे राजनीति के तेजी से बदलते चरित्र को बयां कर रही हैं।
एक उदाहरण बिहार में गंगा पर बन रहे पुल के मामले से जुड़ा है। यह पुल एक नहीं, दो नहीं, तीन बार ध्वस्त हुआ और हर बार दोषियों पर कार्रवाई करने के लिए सरकार कहती रही और न कार्रवाई हुई, न समस्या दूर हुई। यह जरूर खबर छपी कि संबंधित निर्माण कंपनी को बिहार में ढेर सारे निर्माण के काम दिए जाते रहे हैं। दूसरा उदाहरण पश्चिम बंगाल से है। इसमें एक बड़े रसूख वाले मंत्री महोदय और उनकी महिला मित्र स्कूलों में अध्यापक-नियुक्ति के घोटाले में जेल में बंद हैं। उन पर यह आरोप है कि अयोग्य लोगों को गलत तरीके से नियुक्ति देकर अब तक वे करोड़ों रुपए की संपत्ति बना चुके हैं।
शिक्षा के ही क्षेत्र में सरकार अपना वर्चस्व और बढ़ाने के लिए अब दूसरी मुहिम विश्वविद्यालयों के स्तर पर चलाने को तैयार है। विश्वविद्यालयों पर शिकंजा कसने के लिए राज्यपाल की जगह अब मुख्यमंत्री को कुलाधिपति (चांसलर) बनाने की तैयारी है। पंजाब में आप की मान सरकार भी ऐसा ही करने को तैयार हो रही है। अभी खबर यह आई है कि सामाजिक उत्थान के लिए राजस्थान में सरकार धोबी, नाऊ, ब्राह्मण आदि अनेक जातियों के लिए पंद्रह आयोग गठित कर रही है। प्रत्येक आयोग के अध्यक्ष के लिए प्रदेश सरकार में मंत्री स्तर का दर्जा और सुविधा मुहैया कराने की व्यवस्था की जा रही है। समानता और समता लाने के बदले जातियों के आयोग बनाकर हर जाति को अपनी पहचान को सुरक्षित करने के लिए झुनझुना पकड़ाया जा रहा है जिसकी मधुर ध्वनि जातिभेद को बचाए रखने के लिए तत्पर है। तुष्टिकरण अल्पकालिक लाभ वाला हो सकता है पर देश की जड़ों को खोखला करने वाला है। इसमें निहित संभावनाएं कम और आपदाएं अधिक हैं। कई जगह इसका खामियाजा भुगता गया है। आज आवश्यकता है कि सभी राजनैतिक दल इस पर विचार करें और इसे नियंत्रित करने के कारगर उपाय करें। इसी तरह जनचेतना के लिए भी आंदोलन जरूरी है।