ब्लॉग: अब जिम्मेदारी देश के तमाम राजनीतिक दलों की है

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: October 3, 2023 09:31 AM2023-10-03T09:31:59+5:302023-10-03T09:34:05+5:30

मुख्य चुनाव आयुक्त के मुताबिक राजनीतिक दलों को अखबारों में विज्ञापन देकर यह बताना होगा कि उन्होंने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने के लिए टिकट क्यों दी।

Blog Now the responsibility lies with all the political parties of the country | ब्लॉग: अब जिम्मेदारी देश के तमाम राजनीतिक दलों की है

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsनिर्वाचन आयोग ने लिया है बेहद अहम फैसलाआपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को मैदान में उतारने का कारण बताना होगाबढ़ते अपराधीकरण को रोकने की दिशा में अहम होगा निर्णय

नई दिल्ली:  चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के लिए यह जानकारी देना अनिवार्य कर दिया है कि उन्होंने चुनाव में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को मैदान में क्यों उतारा। राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण को रोकने की दिशा में निर्वाचन आयोग का यह कदम बेहद कारगर साबित हो सकता है और राजनीति में स्वच्छ छवि वाले लोगों के आने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिल सकता है।

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने रविवार को राजस्थान में विधानसभा चुनाव की तैयारियों का जायजा लेने के बाद कुछ महत्वपूर्ण घोषणाएं कीं, जिनसे पता चलता है कि निर्वाचन आयोग बुजुर्गों तथा दिव्यांगों के लिए मतदान को सुगम बनाने के प्रति गंभीर है। इससे मतदान का प्रतिशत भी निश्चित रूप से बढ़ेगा। मुख्य चुनाव आयुक्त के मुताबिक राजनीतिक दलों को अखबारों में विज्ञापन देकर यह बताना होगा कि उन्होंने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने के लिए टिकट क्यों दी। राजनीति में आपराधिक तत्वों के बढ़ते वर्चस्व से न केवल राजनीतिक दलों की छवि पर आंच पहुंची बल्कि स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव की प्रक्रिया पर भी संदेह के बादल उठने लगे। अब तो राजनीति में बाहुबली होना चुनाव जीतने के लिए एक विशेष गुण समझा जाने लगा है और किसी भी पार्टी को आपराधिक पृष्ठभूमिवाले लोगों को अपना सदस्य बनाने, उन्हें लोकसभा, विधानसभा से लेकर ग्राम पंचायत स्तर तक उम्मीदवार बनाने से परहेज नहीं है।

इसके पीछे राजनीतिक दलों की सोच वोट बैंक से जुड़ी हुई है। राजनीति में सक्रिय बाहुबली किसी न किसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और अपने समुदाय के साथ-साथ अपने इलाके के आम मतदाताओं पर उनका अलग प्रभाव होता है, जो डर से उपजा होता है. राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों का दखल नई बात नहीं है। आजादी के बाद से जितने भी चुनाव हुए हैं उनमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आपराधिक पृष्ठभूमि वाले बाहुबलियों ने किसी न किसी राजनीतिक दल का साथ जरूर दिया है। सत्तर और अस्सी के दशक में ये तत्व खुलकर सामने आ गए और राजनीतिक दलों ने भी लोकतांत्रिक मर्यादाओं तथा नैतिक मूल्यों को ताक पर रखकर ऐसे लोगों का न केवल खुलकर समर्थन लेना शुरू कर दिया बल्कि वे उन्हें टिकट भी देने लगे। सूर्यदेव सिंह तथा हरिशंकर तिवारी जैसे बाहुबलियों का राजनीतिक दलों ने खुलकर समर्थन लिया। राजनीतिक दलों में अपनी बढ़ती मांग को देखकर बाहुबलियों में भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा जोर मारने लगी. इसके पीछे उनकी मंशा साफ थी।

जनप्रतिनिध बन जाने के बाद कानून और व्यवस्था की मशीनरी को प्रभावित करना उनके लिए आसान हो जाता और राजनीतिक संरक्षण मिल जाने के कारण वे अपनी आपराधिक गतिविधियों को बेलगाम चलाने में सक्षम हो जाते। मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद जैसे अनगिनत बाहुबलियों ने इसीलिए किसी न किसी राजनीतिक दल का साथ लेकर विधायक या सांसद बनने को प्राथमिकता दी। विभिन्न रिपोर्ट कहती हैं कि ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक में अपने-अपने इलाकों का प्रतिनिधित्व करने वाले जनप्रतिनिधियों में से बड़ी संख्या में ऐसे हैं जिनके विरुद्ध गंभीर किस्म के आपराधिक मामले दर्ज हैं।

राजनीति में सक्रिय व्यक्तियों पर आंदोलन करने पर मामले दर्ज होना सामान्य बात है। ऐसे मामलों को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए क्योंकि वे लोगों के हितों से जुड़े मामलों को लेकर सड़कों पर उतरे तथा उन पर कानून की संबंधित धाराएं तोड़ने के आरोप लगे। आंदोलन के दौरान हिंसा करने या लोगों को भड़काने पर चलने वाले मुकदमे जरूर गंभीर अपराधों की श्रेणी में आते हैं मगर जब हत्या, बलात्कार, महिलाओं से छेड़छाड़, ठगी, जालसाजी, दहेज प्रताड़ना, तस्करी जैसे आरोपों से घिरे लोगों को राजनीतिक दल चुनाव मैदान में उतारें तो लोकतंत्र की पवित्रता पर निश्चित रूप से आंच आएगी। राजनीतिक दल यह कहकर ऐसे तत्वों का बचाव करते हैं कि ऐसे मामले राजनीति से प्रेरित हैं तथा उसके उम्मीदवार के चरित्र हनन की साजिश की जा रही है. यह कहकर भी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार का बचाव किया जाता है कि संबंधित व्यक्ति पर आरोप अभी सिद्ध नहीं हुए हैं। ऐसे तर्क बचकाने हैं और लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए अच्छी बात नहीं है।

 राजनीति को आपराधिक तत्वों से मुक्त करने पर दशकों से चर्चा चल रही है. इसके लिए वोरा आयोग का गठन भी किया गया था लेकिन उसकी सिफारिशें तीन दशक से ठंडेबस्ते में पड़ी हैं. यदि राजनीतिक दल यह तय कर लें कि वे गंभीर अपराधों का सामना कर रहे किसी भी व्यक्ति को टिकट नहीं देंगे तो राजनीति के शुद्धिकरण में देरी नहीं लगेगी. इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है. चुनाव आयोग ने तो पहल कर दी है और इस पहल को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी तमाम राजनीतिक दलों की है।

Web Title: Blog Now the responsibility lies with all the political parties of the country

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे