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ब्लॉगः अपनी ही लिखी पटकथा पर चलते शरद पवार

By Amitabh Shrivastava | Updated: July 1, 2023 09:15 IST

पिछले माह जब राकांपा नेता पवार ने इस्तीफा दिया तो अनेक हलकों में हलचल मच गई। लोग भविष्य की कल्पना के साथ अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगे, लेकिन कुछ ही दिन में मामला शांत हो गया। हालांकि उनकी ही बेटी ने पंद्रह दिन पहले इस चौंकाने वाले निर्णय का संकेत दे दिया था।

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भारत में बहुत कम ऐसे नेता हैं, जो राजनीति की चौपड़ पर जब पांसा फेंकते हैं तो उनके मन का ही नंबर आता है। महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार उनमें से ही एक हैं। उनके सार्वजनिक जीवन पर यदि नजर दौड़ाई जाए तो शायद ही कभी ऐसा मौका आया हो, जब वह अपनी ही चाल में फंस गए हों। कभी अपने आपको राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण का शिष्य मानने वाले पवार अस्सी साल की उम्र पार कर भी अपने हर कदम पर खुली चुनौती देने के लिए तैयार हैं। शायद इसी क्षमता से उनके आलोचकों की परेशानी खत्म नहीं हो रही है और वह अपनी पार्टी को परिवारवादी न बनाते हुए परिवार के साथ आगे बढ़ा रहे हैं।

पिछले माह जब राकांपा नेता पवार ने इस्तीफा दिया तो अनेक हलकों में हलचल मच गई। लोग भविष्य की कल्पना के साथ अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगे, लेकिन कुछ ही दिन में मामला शांत हो गया। हालांकि उनकी ही बेटी ने पंद्रह दिन पहले इस चौंकाने वाले निर्णय का संकेत दे दिया था। किंतु डेढ़ माह की शांति के बाद उनकी पुत्री सुप्रिया सुले और करीबी प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर भविष्य के संकेत दे दिए गए। इस कदम से उनके भतीजे अजित पवार को नाराज माना गया। मगर उनकी नाराजगी खुलकर सामने नहीं आई। फिर उन्होंने विपक्ष के नेता से पार्टी की जिम्मेदारी के लिए खुद को बेहतर बताया। इसके बाद नए अध्यक्ष की चर्चा हुई तो ओबीसी कार्ड के तहत छगन भुजबल बाहर आकर कहने लगे कि वह राकांपा के प्रदेशाध्यक्ष बनना चाहते हैं जिससे राकांपा पर एक जाति के वर्चस्व का ठप्पा हटे। इस उठापटक के माहौल में जब विपक्ष की ओर से बनाए जा रहे गठबंधन की बैठक में शामिल होने पवार पटना पहुंचते हैं तो उनके साथ बेटी सुप्रिया सुले दिखाई देती हैं, जहां संदेश साफ समझ में आता है। इसी बीच, दिल्ली में महिला कार्यकारिणी की राष्ट्रीय बैठक होती है, जिसमें सुप्रिया सुले ही केंद्र में नजर आती हैं। यदि हाल की इन सभी घटनाओं को जोड़ कर देखा जाए तो वे सभी तय कथा के अनुसार बनाए दृश्य के साथ आगे बढ़ती दिखती हैं।

अब यदि राकांपा का इतिहास भी देखा जाए तो शरद पवार ने वर्ष 1999 में जब कांग्रेस छोड़ी तब उनका विरोध कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल का होने से था। किंतु कुछ ही दिनों में वह गठबंधन सरकार में महाराष्ट्र और केंद्र दोनों में नजर आए। यहां तक कि महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी संभाली। इसलिए राकांपा के गठन के साथ ही पवार की पटकथा और उसके पात्र तय हो गए थे। उनकी भूमिका को कहां और कब असरदार-धारदार बनाया जाएगा, यह भी तय था, जिससे पहले राज्य में अजित पवार को मजबूत बनाया और केंद्र में प्रफुल्ल पटेल को ताकत दी गई। दोनों के बीच एक पात्र की जगह खाली रखी गई, जिसे गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के माध्यम से प्रशिक्षित कर राजनीति में पहले पीछे के दरवाजे और फिर सामने के दरवाजे से लाकर खड़ा किया गया। 

सुप्रिया सुले के रूप में तीसरा पात्र कब ताकतवर बन जाएगा, यह सभी के ध्यान में धीरे-धीरे आया। पहले दिल्ली में जगह बनाई गई और फिर महाराष्ट्र पर ध्यान केंद्रित किया गया। वहीं दूसरी ओर अजित पवार के सुबह की सरकार बनाने के बाद पूरी तरह पारदर्शी बना दिया गया और उनकी विश्वसनीयता का संकट खड़ा कर दिया गया। इसी का लाभ उठाकर ठाकरे सरकार का गठन किया गया, जिसमें सुप्रिया सुले को हर विधायक से गले मिलकर विधानसभा में भीतर भेजते देखा गया। यद्यपि कोरोना और शिवसेना की अंदरूनी दिक्कतों से सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई, किंतु वह पवार की पटकथा को प्रभावित भी नहीं कर पाई। अब भारतीय जनता पार्टी के साथ जब शिवसेना से अलग हुए विधायकों ने सरकार बना ली है, तब राकांपा के नए पात्र नजर आने लगे हैं। बात यहां तक नहीं रुकी है, जनसंघ के साथ पवार का नाता भी खुल गया है। यानी अतीत में भी जो घटनाएं हुईं, वे भी कहानी से अलग नहीं थीं और उनका संदेश वर्तमान के लिए भी स्पष्ट है।

अब राकांपा की दिल्ली में राष्ट्रीय बैठक हो रही है। महिला कार्यकारिणी की भी दिल्ली में बैठक हो रही है। महाराष्ट्र प्रभार के तहत पुणे में सुप्रिया सुले संवाददाता सम्मेलन कर रही हैं। मुंबई मेल-मुलाकात का सिलसिला चल रहा है। यह सब तय दिशा की ओर चल रहा है, इससे कुछ लोगों को परेशानी अवश्य है। किंतु आश्चर्य केवल पवार को अच्छी तरह न जानने वालों को ही हो सकता है, क्योंकि पवार पहले अपना ‘पावर’ बढ़ाते हैं और फिर नया कदम बढ़ाते हैं।

करीब पचास साल से अधिक के राजनीतिक अनुभव के बाद यदि कोई सोचे कि राकांपा या फिर पवार का कल क्या होगा, तो शायद यह भूल ही होगी। अलबत्ता सच्चाई यह है कि कल किस पात्र को अपनी भूमिका अदा करना है, यह उसे समय अनुसार पता चल जाता है। इसका जीता-जागता प्रमाण पवार के इस्तीफे से पंद्रह दिन पहले सुप्रिया सुले का ‘कुछ बड़ा धमाका होने वाला है।।।’ कहना है। पवार यह अच्छे से जानते हैं कि उनकी पार्टी में कौन महत्वाकांक्षी है और कौन अतिउत्साही है। उन्हें दोनों के संतुलन को अपने तराजू पर रखना है। इसलिए घटनाएं सिर्फ लोगों के लिए आश्चर्य होंगी, लेकिन हर एक की भूमिका पहले से ही लिखी हुई है। शायद यही शरद पवार का राजनीतिक दर्शन है और यही उनकी ताकत है।

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