अक्सर राजनीतिक गठबंधन चुनाव के लिए बनाए जाते हैं, पर देश के दोनों बड़े गठबंधनों: एनडीए और ‘इंडिया’ में नवंबर में हो रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव ही तकरार का कारण बन रहे हैं। चंद महीने पहले ही विपक्ष के 28 दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के विरुद्ध नया गठबंधन: इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस (इंडिया) बनाया था।
भाजपा ने भी अपने पुराने गठबंधन: एनडीए का रजत जयंती वर्ष में विस्तार करते हुए कुनबा 38 दलों तक पहुंचा दिया था। इशारा अगले लोकसभा चुनावों की ओर था, मगर इस बीच विधानसभा चुनाव की परीक्षा में ही दोनों गठबंधन फेल होते नजर आ रहे हैं। जिन पांच राज्यों में नवंबर में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें से दो: तेलंगाना और मिजोरम में जिन क्षेत्रीय दलों की सरकार है, वे किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं हैं।
वहां कांग्रेस-भाजपा का टकराव ज्यादा मायने नहीं रखता। इसलिए सारा फोकस शेष तीन राज्यों: मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर है, जहां की सत्ता के लिए कांग्रेस-भाजपा में ही मुख्य मुकाबला होता रहा है। दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस से सत्ता छीननेवाली आप इंडिया गठबंधन में शामिल है, पर उसने मध्य प्रदेश में सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।
मध्य प्रदेश में दर्जनों सीटों पर ‘इंडिया’ घटक दलों में ही मुकाबले की स्थिति है। छत्तीसगढ़ में अभी तक सपा और जद यू ने तो कांग्रेस के लिए चुनावी चुनौती के संकेत नहीं दिए हैं, लेकिन आप वहां भी ताल ठोंक रही है। राजस्थान में भी सपा और रालोद की मौजूदगी कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा सकती है।
राजस्थान में भाजपा के मित्र दल भी उसके लिए मुश्किलें पेश कर रहे हैं। पिछला लोकसभा चुनाव भाजपा से गठबंधन में लड़े नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल की रालोपा अब यूपी के चंद्रशेखर आजाद की भीम आर्मी जैसे छोटे दलों के साथ मिलकर अलग ताल ठोंक रही है। राजस्थान में भाजपा की मुश्किलें बढ़ाने में जजपा, लोजपा और शिवसेना का एकनाथ शिंदे गुट भी पीछे नहीं है।
हरियाणा सरकार में भाजपा की जूनियर पार्टनर जजपा एनडीए का हिस्सा है, पर राजस्थान में गठबंधन न हो पाने पर 30 सीटों पर ताल ठोंक रही है। जजपा चौधरी देवीलाल के परिवार के एक धड़े की पार्टी है, जिनका राजस्थान के कुछ हिस्सों में असर रहा।
बिहार में जिन चिराग पासवान ने भाजपा का हनुमान बन कर पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के जद यू को समेटने में बड़ी भूमिका निभाई, उनका लोजपा गुट भी राजस्थान में अलग ताल ठोंक रहा है। दोस्तों के बीच ही टकराव चुनावी परिदृश्य को तो दिलचस्प बना ही रहा है, गठबंधनों के भविष्य पर भी सवालिया निशान लगा रहा है।