ब्लॉग: 2023 की घटनाओं का दिखेगा 2024 में असर

By अभय कुमार दुबे | Published: January 1, 2024 10:08 AM2024-01-01T10:08:27+5:302024-01-01T10:10:14+5:30

2019 में जब कांग्रेस ने देखा कि उसने कर्नाटक, छत्तीसगढ़, म.प्र. और राजस्थान में भाजपा को सरकार बनाने से रोक दिया है, तो उसे लगा कि वह अकेले ही मोदी को हरा सकती है। इस मुगालते के कारण विपक्षी एकता की कोशिश ही नहीं की गई।

Blog Impact of events of 2023 will be visible in 2024 | ब्लॉग: 2023 की घटनाओं का दिखेगा 2024 में असर

फाइल फोटो

Highlightsक्या विपक्ष इस बार अपनी एकता का सूचकांक किसी हद तक दिखा पाएगा? 158 सीटों पर एनडीए अपनी जीत के प्रति बहुत आश्वस्त नहीं हैसत्तारूढ़ पार्टी ने एक मनोवैज्ञानिक युद्ध भी छेड़ा हुआ है

नई दिल्ली: 2023 के आखिरी दिनों में यह प्रश्न हवा में लटका रहा कि क्या विपक्ष इस बार अपनी एकता का सूचकांक किसी हद तक दिखा पाएगा? विपक्ष जानता है कि कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, बिहार और महाराष्ट्र की कुल मिला कर 158 सीटों पर एनडीए अपनी जीत के प्रति बहुत आश्वस्त नहीं है। अगर विपक्ष प्रभावी रणनीति बना कर इन चार राज्यों में भाजपा को और घटा सके तो वह 2024 को 2019 बनने से रोक सकता है. लेकिन क्या वह ऐसा कर पाएगा?

विपक्षी एकता की संभावनाओं को कमजोर करने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी ने एक मनोवैज्ञानिक युद्ध भी छेड़ा हुआ है। इस रणनीति को परवान उस समय चढ़ाया गया जब नीतीश कुमार ने विधानसभा में स्त्री-संबंधी एक ऐसा वक्तव्य दिया, जिसकी उनसे उम्मीद नहीं थी. इसके तुरंत बात एक दोहरा हमला शुरू हो गया। एक तरफ तो यह बार-बार कहा गया कि मुख्यमंत्री का दिमागी संतुलन बिगड़ गया है और उनका स्वास्थ्य लालू यादव का परिवार एक खुफिया दवा देकर खराब कर रहा है ताकि तेजस्वी यादव को जल्दी से जल्दी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन किया जा सके। 

दूसरी तरफ यह कहा गया कि नीतीश इंडिया गठबंधन में अपनी उपेक्षा से नाराज हैं और इसीलिए वे एक बार फिर पलटी मार कर एनडीए में जाने वाले हैं. पहली नजर में ही ये दोनों बातें विरोधाभासी लग सकती हैं। अगर नीतीश को दिमागी रूप से कमजोर कर दिया गया है तो फिर वे पलटी मारने जैसी नियोजित कार्रवाई को कैसे अंजाम दे सकते हैं। मनोवैज्ञानिक युद्ध का एक दूसरा प्रकरण भी काबिले गौर है। एक नैरेटिव यह चलाया जा रहा है कि कांग्रेस दो गुटों में विभक्त हो गई है। एक गुट राहुल गांधी का है, और दूसरा प्रियंका गांधी का। दोनों में जंग छिड़ी हुई है। छिटपुट घटनाओं को जोड़जाड़ कर इस गुटबाजी का खाका खींचा जा रहा है। खास बात यह है कि विपक्ष की एकता के कई तरफदार भी इस नैरेटिव में फंसते दिखाई पड़ रहे हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह मनोवैज्ञानिक युद्ध कितना प्रभावी है।

इसी साल देश के संसदीय विपक्ष ने अपनी एकता के लिए एक राष्ट्रीय मोर्चा बनाया। इसका नाम इंडिया रखा गया। इससे भाजपा के हलकों में कुछ बेचैनी पैदा हुई। दरअसल, इंडिया गठबंधन का बनना पिछले दस वर्षों में हुई एक बेहद अहम घटना है। इससे राजनीति का मौजूदा पैटर्न बदल सकता है. 2014 में कांग्रेस सत्तारूढ़ दल थी और भाजपा विपक्ष में रहकर मोदी के नेतृत्व में उसे चुनौती दे रही थी। विपक्ष की किसी एकता की गुंजाइश ही नहीं थी। 2019 में जब कांग्रेस ने देखा कि उसने कर्नाटक, छत्तीसगढ़, म.प्र. और राजस्थान में भाजपा को सरकार बनाने से रोक दिया है, तो उसे लगा कि वह अकेले ही मोदी को हरा सकती है। इस मुगालते के कारण विपक्षी एकता की कोशिश ही नहीं की गई। हालांकि इंडिया गठबंधन सीटों का तालमेल करने में काफी देर कर रहा है, फिर भी अगर मध्य जनवरी तक वह कुछ तालमेल कर पाया तो वह भाजपा की योजनाओं को कुछ परेशान कर सकता है।

साल की तीसरी बड़ी घटना अयोध्या उत्सव की तैयारी और उसका प्रचार है। 22 जनवरी को प्रधानमंत्री रामलला के मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा करेंगे। भाजपा को लगता है कि चुनाव से ठीक पहले होने वाले इस समारोह का लाभ उसे वोटों की बढ़ोत्तरी के रूप में मिलेगा।

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