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ब्लॉग: गांधीजी को पसंद था छात्रों से मिलना-जुलना

By आरके सिन्हा | Updated: October 2, 2023 09:50 IST

महात्मा गांधी जब पहली बार 12 मार्च 1915 को राजधानी दिल्ली आए तो सेंट स्टीफंस कॉलेज में ठहरे थे। दिल्ली प्रवास के दौरान सेंट स्टीफंस कॉलेज में रुकने का आग्रह उनके करीबी सहयोगी दीनबंधु सीएफ एंड्रयूज ने किया था।

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ठळक मुद्देगांधी जी पहली बार 12 मार्च 1915 को राजधानी दिल्ली आए थे तो सेंट स्टीफंस कॉलेज में ठहरे थेउनसे सेंट स्टीफंस कॉलेज में रुकने का आग्रह दीनबंधु सीएफ एंड्रयूज ने किया थाउस दौरान गांधी जी ने कॉलेज में छात्रों और फैकल्टी के साथ समसामयिक मुद्दों पर चर्चा की थी

महात्मा गांधी को विद्यार्थियों से मिलना-जुलना और उनसे बातें करना पसंद था। वे स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में भी अक्सर जाते थे। वे एक बार मास्टरजी की भी भूमिका में आ गए थे। वे पहली बार 12 मार्च 1915 को राजधानी दिल्ली आए तो सेंट स्टीफंस कॉलेज में ठहरे थे।

उस दौरान गांधी जी ने वहां पर छात्रों और फैकल्टी से मुलाकात की थी। उनके साथ सामयिक सवालों पर लंबी चर्चाएं कीं। दरअसल उनसे दिल्ली प्रवास के दौरान सेंट स्टीफंस कॉलेज में रुकने का आग्रह उनके करीबी सहयोगी दीनबंधु सीएफ एंड्रयूज ने किया था।

दीनबंध एंड्रयूज उसी दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी से जुड़े हुए थे, जिसने सेंट स्टीफंस कॉलेज और सेंट स्टीफंस अस्पताल की स्थापना की थी।

यह जानकारी भी कम ही लोगों को है कि गांधीजी मास्टरजी की भी भूमिका में रहे। राजधानी में उनकी पाठशाला चलती थी। वे अपने छात्रों को अंग्रेजी और हिंदी पढ़ाते थे। उनकी कक्षाओं में सिर्फ बच्चे ही नहीं आते थे, उसमें बड़े-बुजुर्ग भी रहते थे। वे 1 अप्रैल 1946 से 10 जून 1947 तक राजधानी के वाल्मीकि मंदिर परिसर में 214 दिन रहे।

वे शाम के वक्त मंदिर से सटी वाल्मीकि बस्ती में रहने वाले परिवारों के बच्चों को पढ़ाते थे। उनकी पाठशाला में खासी भीड़ हो जाती थी। गांधीजी अपने उन विद्यार्थियों को फटकार भी लगा देते थे, जो कक्षा में साफ-सुथरे ढंग से तैयार हो कर नहीं आते थे। वे स्वच्छता पर विशेष ध्यान देते थे।

वे मानते थे कि स्वच्छ रहे बिना आप शुद्ध ज्ञान अर्जित नहीं कर सकते। यह संयोग ही है कि इसी मंदिर से सटी वाल्मीकि बस्ती से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्तूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की भी शुरुआत की थी।

बहरहाल, वह कमरा जहां पर बापू पढ़ाते थे, अब भी पहले की तरह ही बना हुआ है। इधर एक चित्र रखा है, जिसमें कुछ बच्चे उनके पैरों से लिपटे नजर आते हैं। आपको इस तरह का चित्र शायद ही कहीं देखने को मिले।

बापू की कोशिश रहती थी कि जिन्हें कतई लिखना-पढ़ना नहीं आता वे भी कुछ लिख-पढ़ सकें। इस वाल्मीकि मंदिर में बापू से विचार-विमर्श करने के लिए पंडित नेहरू से लेकर सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान भी आते थे।

सीमांत गांधी यहां बापू के साथ कई बार ठहरे भी थे। अब भी इधर बापू के कक्ष के दर्शन करने के लिए देखने वाले आते रहते हैं। वाल्मीकि समाज की तरफ से प्रयास हो रहे हैं कि इधर गांधी शोध केन्द्र की स्थापना हो जाए।

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