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ब्लॉग : बैंक मुट्ठीभर लोगों के इस्तेमाल का साधन न बन जाएं

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 14, 2023 10:50 IST

बैंकों से बड़ी रकम कर्ज के रूप में लेकर धोखाधड़ी करने वालों की संख्या 2019 में 10209 थी जो इस वर्ष के अंत तक बढ़कर 14159 हो गई। ये वो लोग हैं जिन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को चूना लगाने का प्रयास किया।

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ठळक मुद्देजानबूझकर अदा न करने वाले 1105 मामलों में 64920 करोड़ रु. की रकम जब्त की गईवित्त राज्यमंत्री भागवत कराड ने एक चिंताजनक जानकारी भी अपने जवाब में साझा कीबड़ी रकम कर्ज के रूप में लेकर धोखाधड़ी करने वालों की संख्या 2019 में 10209 थी जो इस वर्ष के अंत तक बढ़कर 14159 हो गई

नई दिल्ली: बैंक से कर्ज लेकर धोखाधड़ी करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है लेकिन ऐसे लोगों के बच निकलने की संभावना भी सरकारी मशीनरी की चुस्ती के कारण कम होती जा रही है। सरकार ने मंगलवार को राज्यसभा में जानकारी दी कि बैंक से कर्ज लेने के बाद उसे जानबूझकर अदा न करने वाले 1105 मामलों में 64920 करोड़ रु. की रकम जब्त की गई है तथा 150 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। 

वित्त राज्यमंत्री भागवत कराड ने इसके साथ ही एक चिंताजनक जानकारी भी अपने जवाब में साझा की। बैंकों से बड़ी रकम कर्ज के रूप में लेकर धोखाधड़ी करने वालों की संख्या 2019 में 10209 थी जो इस वर्ष के अंत तक बढ़कर 14159 हो गई। ये वो लोग हैं जिन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को चूना लगाने का प्रयास किया। निजी बैंकों से भी धोखाधड़ी करनेवालों की संख्या में भारी वृद्धि देखी गई है। चार साल पहले निजी बैंकों को धोखा देनेवालों की संख्या 1956 थी जो इस साल मार्च तक बढ़कर ढाई हजार से अधिक हो गई. बैंकों से कर्ज लेकर उसका दुरुपयोग करने और बाद में उसे अदा न करने के मामले को रोकना बहुत जरूरी है। हालांकि बैंक न्यूनतम जोखिम उठाकर कर्ज देते हैं। 

वे कर्ज देने के पहले यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि कर्ज लेने वाले की आर्थिक क्षमता कैसी है. बैंक कर्ज लेने वाले की संपत्ति, आय के स्रोत और उन तमाम कामों या योजनाओं के दस्तावेज मांगकर यह देखते हैं कि कर्ज सही उद्देश्य के लिए मांगा जा रहा है या नहीं। इसके बावजूद बैंकों को कर्ज लेकर ठगने के मामले अगर बढ़ रहे हैं तो उसके तीन मुख्य कारण हो सकते हैं. पहला यह कि कर्ज देने के नियमों में कुछ लोगों के लिए सीमा से परे जाकर ढिलाई की जाती है, दूसरा, कर्ज लेने वालों के साथ बैंकों के कुछ भ्रष्ट तत्वों की सांठगांठ तथा तीसरा, कर्ज वितरण के संबंध में बैंकों द्वारा बनाए गए नियमों में खामियां। 

वित्त राज्य मंत्री ने राज्यसभा में जो आंकड़े दिए, उससे स्पष्ट है कि कर्ज के रूप में बड़ी रकम लेने वाले ही बैंकों से धोखाधड़ी करते हैं. कम रकम लेनेवाला वर्ग आमतौर पर मध्यमवर्गीय होता है और वह ईमानदारी से कर्ज अदा करता है। मध्यम वर्ग को अपनी प्रतिष्ठा तथा विश्वसनीयता की बहुत चिंता होती है। नौकरीपेशा वर्ग अगर कर्ज लेता है तो उसकी नियमित अदायगी उसके वेतन से हो जाती है। ऐसा नहीं है कि कर्ज के रूप में बड़ी रकम लेने वाला हर व्यक्ति बैंक से धोखाधड़ी करता हो। कई बार ऐसा होता है कि जिस उद्देश्य के लिए कर्ज लिया जाता है, वह पूरा नहीं होता और कर्जदार ऋण चुकाने में असफल हो जाता है। अक्सर व्यवसाय या उद्योगों के लिए हासिल किए जाने वाले कर्ज के साथ ऐसा होता है लेकिन कई लोग गलत इरादे से कर्ज लेते हैं और उसे अदा नहीं करते। ये लोग सक्षम होने के बावजूद ऋण बैंकों को लौटाते नहीं हैं। वे इस मुगालते में रहते हैं कि कर्ज वसूली की प्रक्रिया बड़ी जटिल होती है और बैंक लंबे समय तक उनसे वसूली करने में सक्षम नहीं हो सकते। वे इस गलतफहमी में भी रहते हैं कि कर्ज वसूल करने में विफल रहने पर उसे बट्टे खाते में डाल दिया जाएगा। 

नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या के अलावा एबीजी शिपयार्ड के संचालकों कमलेश अग्रवाल एवं अश्विनी कुमार जैसे नामों की लंबी सूची है जिन्होंने भारतीय बैंकों का हजारों करोड़ रु. डुबाया है। ये लोग विदेश में जाकर गिरफ्तारी से बचे हुए हैं। प्रत्यर्पण की संधियों के बावजूद उन्हें लाना मुश्किल हो रहा है क्योंकि सारी प्रक्रिया बेहद जटिल है। निजी तथा सार्वजनिक बैंकों में जमा पूंजी कुछ अमीरों या बड़े औद्योगिक व व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की नहीं है। बैंकों में आम आदमी की गाढ़ी कमाई का पैसा जमा रहता है और वह अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है। बैंक में यदि बड़ा आर्थिक घोटाला होता है या अन्य किसी प्रकार की जबर्दस्त आर्थिक हानि होती है तो उसका सीधा प्रभाव आम आदमी पर पड़ता है। सरकार की तमाम सतर्कता के बावजूद अगर बैंकों का बट्टा खाता (एनपीए) बढ़ता जा रहा है, धोखाधड़ी के मामले आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल के बावजूद बढ़ रहे हैं तो जाहिर है कि बैंकिंग प्रणाली में भारी खामियां हैं। यह भी कहा जा सकता है कि कर्ज देने की समूची प्रक्रिया में व्यापक बदलाव की जरूरत है। बैंकों के साथ-साथ सरकार का भी यह दायित्व है कि बैंकों में जमा आम आदमी की पूंजी सुरक्षित रहे और बैंक कुछ लोगों को लाभान्वित करने का माध्यम न बन जाएं।

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