विजय विद्रोही
बिहार चुनाव के पहले चरण का बम्पर मतदान पूरे चुनाव को जलेबी बना रहा है. सबसे बड़ा सवाल यही है कि ज्यादा वोटर किसे निपटाने या किसे बचाने बूथ तक पहुंचे. पहले चरण में कुल 18 जिलों में मतदान हुआ इसमें से दस जिलों में तो बम्पर वोटिंग हुई लेकिन बाकी आठ जिलों में भी पहले के मुकाबले ज्यादा वोटिंग हुई. इसका मतलब क्या निकाला जाए? एक तर्क यह है कि पूरे बिहार में कोई एक मुद्दा काम करता नजर आ रहा है. दूसरा तर्क यह है कि महिलाओं ने नीतीश कुमार को विदाई वोट दिया है. तीसरा तर्क है कि जेन-जी ने तेजस्वी यादव को नौकरी लगने का अग्रिम मिठाई वोट दिया है.
कुछ लोग इसे सुनियोजित वोट चोरी से जोड़ रहे हैं. उनका कहना है कि उन जिलों में सबसे ज्यादा वोटिंग हुई हैं जहां सबसे ज्यादा वोट काटे गए थे. तो शुरुआत इसी आरोप की पड़ताल से करते हैं. वोट प्रतिशत का बढ़ना एसआईआर के कारण संभव हो सकता है. पहली सूची 7.89 करोड़ वोटर की थी जिसे बाद में घटाकर 7.42 करोड़ कर दिया गया.
स्वाभाविक है कि एक भी वोट नहीं बढ़ने की सूरत में भी वोट प्रतिशत में इजाफा होना ही है, क्योंकि मृतकों के और डुप्लीकेट नाम हटा दिए गए हैं. लेकिन वोटिंग प्रतिशत बढ़ने का सिर्फ यही एक कारण नहीं हो सकता है. फिर बाकी का अतिरिक्त वोट किसके खाते में गया? महिला वोटर बड़ी तादाद में निकलीं. क्या मान कर चला जाए कि दस हजारी योजना काम कर गई?
जब तक चुनाव आयोग महिला वोटर का आंकड़ा सामने नहीं रखता तब तक निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता. लेकिन सवा करोड़ महिलाओं के खाते में कुल मिलाकर करीब 12 हजार करोड़ रुपए जमा करना नीतीश कुमार के हक में जरूर जाना ही चाहिए. अगर ऐसा है तो क्या अगली किस्त का ऐलान दूसरे चरण से पहले हो जाएगा.
उसमें ज्यादा से ज्यादा जीविका दीदी को शामिल करने की कोशिश होगी? पहला चरण कुल मिलाकर नीतीश कुमार के नाम आमतौर पर कहा जा रहा है. तो क्या वे एनडीए के सबसे बड़े दल के रूप में सामने आ सकते हैं? महिलाओं के साथ-साथ युवा वोटरों का उत्साह भी देखा गया. माना जा रहा है कि दस हजारी महिला योजना के अलावा अगर किसी अन्य मुद्दे की चर्चा होती रही है तो वह तेजस्वी यादव के हर परिवार में एक को सरकारी नौकरी का वादा है. इसी तरह जीविका दीदी समूह की संयोजिका एक लाख दीदियों को तीस हजार रुपए की सरकार नौकरी देना की भी घोषणा है.
इस हिसाब से देखें तो बम्पर वोटिंग का क्या बड़ा हिस्सा महागठबंधन के खाते में भी जा सकता है. लेकिन यहां जाति का सवाल भी खड़ा होता है. अब भले ही एक तरफ दस हजारी योजना हो, दूसरी तरफ घर-घर नौकरी का वादा हो, तीसरी तरफ प्रशांत कुमार की स्वराज पार्टी की पलायन रोकने की बात हो लेकिन इस त्रिकोण पर जाति का चौथा त्रिकोण क्या बिल्कुल भी असर नहीं दिखाएगा?
ऐसा संभव नहीं लगता. अचानक से बिहार जाति से उठकर वोट देने लगेगा, रेवड़ियों का हिसाब-किताब देखकर तय करने लगेगा ऐसा सोचना खुद को अंधेरे में रखना ही होगा. तो क्या यह माना जाए कि दोनों महागठबंधनों ने अपने-अपने हिस्से के वोटरों को बूथ तक लाने में कामयाबी हासिल की और वोट फीसद बढ़ गया. क्या कांटे के मुकाबले की आशंका ने दोनों गठबंधनों के मतदाताओं को प्रेरित किया.
क्या यह डर हर जाति के मतदाता को खींच लाया कि अपनी अपनी जाति के ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवारों को विधानसभा पहुंचाना है. कुछ का कहना है कि चूंकि एसआईआर के बाद का पहला चुनाव था लिहाजा हर वोटर यह निश्चित कर लेना चाहता था कि उसका वोट पड़ जाए ताकि आगे के लिए कोई दिक्कत नहीं आए.
अंत में सवाल उठता है कि पहले चरण की वोटिंग का दूसरे चरण की वोटिंग पर कितना असर पड़ेगा. एक बात तय है कि दूसरे चरण में भी बम्पर वोटिंग होगी. हो सकता है कि पहले चरण का रिकॉर्ड भी टूट जाए. पहले चरण की वोटिंग ने दोनों गठबंधनों को कोर्स करेक्शन का मौका दे दिया है. पहले चरण के वोटिंग फीसद ने दोनों गठबंधनों की धड़कनें बढ़ा दी हैं. बिहार में कुछ भी हो सकता है. जो होगा हैरान करने वाला होगा. यह बात तय लगती है.