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ब्लॉग: साइबर ठगी के नए-नए हथकंडों के प्रति जागरूकता जरूरी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 30, 2023 12:12 IST

सरकार तो धोखाधड़ी रोकने के लिए ठगी में शामिल मोबाइल नंबरों को निलंबित करने सहित अन्य उपायों पर काम कर ही रही है, आम नागरिकों का भी दायित्व है कि वे उस बारे में खुद जागरूक हों और दूसरों को भी जागरूक करें, तभी साइबर अपराधियों के चंगुल से बचा जा सकता है।

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डिजिटल धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं के बीच यह जानकारी सुकून देने वाली है कि साइबर अपराध, ठगी में शामिल 70 लाख फोन काटे गए हैं। वित्तीय सेवा सचिव विवेक जोशी ने मंगलवार को बताया कि सरकार ने डिजिटल धोखाधड़ी पर रोक लगाने के मकसद से साइबर अपराध या वित्तीय धोखाधड़ी में शामिल अब तक 70 लाख मोबाइल नंबर निलंबित किए हैं।

उल्लेखनीय है कि साइबर धोखाधड़ी के बारे में लोगों के बीच लगातार जागरूकता फैलाए जाने के बावजूद ऐसी घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। अभी तक ठगों द्वारा लोगों से किसी बहाने ओटीपी, पासवर्ड या अन्य संवेदनशील जानकारियां लेकर ही ठगी को अंजाम दिया जाता था, जिससे अधिकांश लोग इस बारे में सतर्क हो गए थे।

लेकिन अब ओटीपी के लिए कोई फोन या मैसेज आए बिना ही लोगों के बैंक खातों से रकम गायब हो रही है, जिससे लोगों को जागरूक करने के पारंपरिक तरीके नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं।

आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (एईपीएस) के जरिये होने वाली धोखाधड़ी के हाल ही में सामने आए मामलों ने इस खतरे की ओर ध्यान दिलाया है। अकेले बेंगलुरु में इस तरह के सौ से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। इसमें अपराधियों की कार्यप्रणाली ऐसी थी कि स्टाम्प और पंजीकरण विभाग के पोर्टल कावेरी 2.0 पर अपलोड होने वाले दस्तावेजों से वे लोगों के आधार नंबर और उनके अंगूठे की छाप हासिल करके ठगी की वारदात को अंजाम देते थे।

पीड़ितों को पता तब चलता था जब उनके पास बैंक से उनके खाते से पैसे निकाले जाने का मैसेज आता था। ठगी की यह कार्यप्रणाली पहली बार 2018 में हैदराबाद में सामने आई थी, जब मोबाइल का सिम कार्ड बेचने वाले एक दुकानदार ने लोगों को धोखा देने के लिए उनकी उंगलियों के निशान और मोबाइल नंबरों की नकल की थी।

हालांकि ठगी की यह घटनाएं सामने आने के बाद पोर्टल कावेरी 2.0 से उंगलियों की छाप को अस्पष्ट करने के निर्देश जारी किए गए हैं लेकिन हम इतनी अधिक जगहों पर अपने बायोमीट्रिक विवरण छोड़ते जाते हैं कि अपराधियों के लिए उन्हें हासिल करना ज्यादा मुश्किल नहीं हो सकता। रिपोर्टें तो ऐसी भी आई हैं कि 81.5 करोड़ भारतीयों का आधार डाटा चोरी हो गया है और इसे ‘डार्क नेट’ पर डाल दिया गया है।

हालांकि आधार कार्ड में लॉक-अनलॉक करने जैसे सुरक्षा प्रबंध होते हैं, जिसका उपयोग करके अपने कार्ड को दुरुपयोग होने से बचाया जा सकता है लेकिन सवाल यह है कि कितने लोग ऐसे सुरक्षा उपायों से वाकिफ हैं? इसलिए डिजिटल धोखाधड़ी के नए-नए तरीकों के बारे में लोगों को जानकारी देते हुए उनसे बचने के उपायों के बारे में लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी है।

सरकार तो धोखाधड़ी रोकने के लिए ठगी में शामिल मोबाइल नंबरों को निलंबित करने सहित अन्य उपायों पर काम कर ही रही है, आम नागरिकों का भी दायित्व है कि वे उस बारे में खुद जागरूक हों और दूसरों को भी जागरूक करें, तभी साइबर अपराधियों के चंगुल से बचा जा सकता है।

टॅग्स :Cyber Crime Police Stationक्राइम
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