आम आदमी के असली मुद्दों से मुंह चुराती चुनावी राजनीति?

By राजकुमार सिंह | Updated: November 18, 2024 05:35 IST2024-11-18T05:34:23+5:302024-11-18T05:35:13+5:30

Assembly Elections 2024:  चुनाव प्रचार में किसी राजनीतिक दल और नेता के मुंह से महंगाई पर चिंता तक मुखर नहीं हुई. समाधान तो बहुत दूर की बात है.

Assembly Elections 2024 Electoral politics shies away from real issues common man blog raj kumar singh | आम आदमी के असली मुद्दों से मुंह चुराती चुनावी राजनीति?

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Highlightsअक्तूबर महीने में बढ़ कर 6.21 हो गई, जो सितंबर में 5.49 प्रतिशत थी.आंकड़े यह भी बताते हैं कि खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ी है.रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के संतोषजनक माने जानेवाले छह प्रतिशत से भी ऊपर निकल गई है.

Assembly Elections 2024: महाराष्ट्र और झारखंड के मतदाताओं ने नई सरकार के लिए किसे चुना- 23 नवंबर को मतगणना से पता चल जाएगा, लेकिन हमारी राजनीति मतदाताओं की वास्तविक समस्याओं से किस कदर कट चुकी है, यह चुनाव प्रचार में फिर साबित हो गया. चुनाव प्रचार के बीच ही आंकड़ा आया कि महंगाई दर पिछले 14 महीनों के उच्च स्तर पर पहुंच गई है. इसमें भी खाद्य पदार्थों की महंगाई दर सबसे ज्यादा है, लेकिन चुनाव प्रचार में किसी राजनीतिक दल और नेता के मुंह से महंगाई पर चिंता तक मुखर नहीं हुई. समाधान तो बहुत दूर की बात है.

आम आदमी के जीवन को सबसे ज्यादा और सीधे प्रभावित करनेवाले मुद्दे हैं: महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बिजली-पानी-सड़क संबंधी विकास. 12 नवंबर को जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति अक्तूबर महीने में बढ़ कर 6.21 हो गई, जो सितंबर में 5.49 प्रतिशत थी.

आंकड़े यह भी बताते हैं कि खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ी है और अब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के संतोषजनक माने जानेवाले छह प्रतिशत से भी ऊपर निकल गई है. पिछले साल इसी महीने में मुद्रास्फीति दर 4.87 प्रतिशत थी. एनएसओ के आंकड़े बताते हैं कि दरअसल खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति अक्तूबर, 2024 में बढ़कर 10.87 प्रतिशत हो गई, जो सितंबर में 9.24 प्रतिशत थी.

पिछले साल अक्तूबर में यह दर 6.61 प्रतिशत थी. आश्चर्यजनक रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में मुद्रास्फीति दर शहरी क्षेत्रों से भी ज्यादा है. दो वक्त की रोटी तो आम आदमी की अनिवार्य आवश्यकता है. फिर क्यों पांच साल बाद होनेवाले चुनावों में भी राजनीतिक दलों ने आम आदमी को यह बताना जरूरी नहीं समझा कि उसे दो वक्त की रोटी सुनिश्चित करने के लिए वे बेलगाम महंगाई पर नियंत्रण के लिए क्या करेंगे?

बेरोजगारी भी राष्ट्रीय समस्या है. मुंबई की बदौलत ही सही, महाराष्ट्र देश के कर संग्रह में लगभग 40 प्रतिशत योगदान देता है. फिर भी वह गरीबी, बेरोजगारी, सूखा और किसानों द्वारा आत्महत्या की समस्याओं के चक्रव्यूह में क्यों फंसा हुआ है? आदिवासी बहुल झारखंड भी खनिज संपदा की दृष्टि से संपन्न राज्य है, पर यह बात उसके निवासियों की बाबत नहीं कही जा सकती.

पृथक राज्य के सपने और उसे पूरा करने के लिए लंबे चले संघर्ष का उद्देश्य नेताओं और नौकरशाहों के लिए अवसर सृजित करना तो नहीं ही रहा होगा. फिर ऐसा क्यों है कि पृथक राज्य बनने के 24 साल बाद भी झारखंड की जनता को मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं? जब तक राजनीतिक और शासकीय व्यवस्था सामाजिक-आर्थिक विकास को अपना एजेंडा नहीं बनाएगी, तब तक देश और प्रदेश समस्याओं के चक्रव्यूह में ही फंसे रहेंगे.

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