Assembly Elections 2024: हरियाणा-दिल्ली में बदलेगा चुनावी परिदृश्य, कांग्रेस-आप अलगाव और इनेलो-बसपा में गठबंधन, क्या है समीकरण

By राजकुमार सिंह | Updated: July 22, 2024 05:20 IST2024-07-22T05:20:56+5:302024-07-22T05:20:56+5:30

Assembly Elections 2024: हरियाणा में कांग्रेस ने आप के लिए कुरुक्षेत्र सीट छोड़ी थी तो दिल्ली में आप ने उसके लिए तीन लोकसभा सीटें.

Assembly Elections 2024 delhi haryana polls chunav bjp congress aap narendra modi rahul gandhi cm arvind Election scenario will change blog Rajkumar Singh | Assembly Elections 2024: हरियाणा-दिल्ली में बदलेगा चुनावी परिदृश्य, कांग्रेस-आप अलगाव और इनेलो-बसपा में गठबंधन, क्या है समीकरण

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Highlightsहरियाणा में तो कांग्रेस अपने हिस्से की नौ में से पांच लोकसभा सीटें जीतने में सफल हो गई.दिल्ली में दोनों ही दलों का खाता तक नहीं खुल पाया.लगातार तीसरी बार भाजपा ने ‘क्लीन स्वीप’ किया.

Assembly Elections 2024: कांग्रेस-आप के अलगाव और इनेलो-बसपा में गठबंधन से आगामी विधानसभा चुनावों में हरियाणा और दिल्ली का राजनीतिक परिदृश्य बदला हुआ नजर आएगा. 18वीं लोकसभा का चुनाव कांग्रेस और आप ने दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़, गुजरात और गोवा में मिल कर लड़ा था, जबकि पंजाब में दोनों अलग-अलग लड़े. उधर बसपा ने अपने सबसे बड़े प्रभाव क्षेत्र उत्तर प्रदेश में भी अकेले दम चुनाव लड़ा, जिसके चलते उस पर भाजपा की ‘बी’ टीम होने का आरोप लगा और खाता तक नहीं खुल पाया. लोकसभा चुनाव में चंडीगढ़ के अलावा कहीं भी नतीजे कांग्रेस और आप की उम्मीदों के मुताबिक नहीं आए. हरियाणा में कांग्रेस ने आप के लिए कुरुक्षेत्र सीट छोड़ी थी तो दिल्ली में आप ने उसके लिए तीन लोकसभा सीटें.

हरियाणा में तो कांग्रेस अपने हिस्से की नौ में से पांच लोकसभा सीटें जीतने में सफल हो गई, लेकिन दिल्ली में दोनों ही दलों का खाता तक नहीं खुल पाया और लगातार तीसरी बार भाजपा ने ‘क्लीन स्वीप’ किया. उसके बाद से ही गठबंधन की व्यावहारिकता पर सवाल उठते रहे. आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल के जेल में होने के चलते पार्टी की ओर से तो संकेत ही दिए जाते रहे कि विधानसभा चुनाव अलग-अलग भी लड़ सकते हैं, लेकिन कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने स्पष्ट कह दिया कि गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए ही था.

हरियाणा में पूर्व मंत्री निर्मल सिंह और उनकी बेटी चित्रा सरवारा जैसे प्रमुख आप नेताओं को कांग्रेस में शामिल किया गया तो दिल्ली में दोनों दलों के नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच की तल्खियां जगजाहिर हैं. केजरीवाल जिस शराब नीति घोटाले में जेल में हैं, उस पर सबसे पहले सवाल उठाते हुए जांच की मांग दिल्ली कांग्रेस ने ही की थी.

ऐसे में दोनों ही राज्यों में नेता-कार्यकर्ता मिलकर चुनाव नहीं लड़ पाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. जाहिर है, अक्तूबर में होनेवाले हरियाणा विधानसभा चुनाव और फिर अगले साल फरवरी में होनेवाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में दोनों दल अलग-अलग लड़ेंगे. संभव है, इस सोच के पीछे पंजाब में लोकसभा चुनाव परिणाम भी रहे हों, जहां कांग्रेस ओर आप अलग-अलग लड़े तथा अच्छा प्रदर्शन किया.

तमाम जोड़तोड़ के बावजूद भाजपा पंजाब में खाता तक नहीं खोल पाई, लेकिन एक ही फॉर्मूला हर राज्य पर लागू नहीं हो सकता. पंजाब में आप सत्तारूढ़ है, तो कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल. ऐसे में अलग-अलग लड़ते हुए सत्ता विरोधी मतदाताओं के समक्ष कांग्रेस के रूप में एक विकल्प उपलब्ध रहा, वरना वे शिरोमणि अकाली दल और भाजपा की ओर रुख कर सकते थे, लेकिन हरियाणा और दिल्ली में वैसा नहीं है.

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