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ब्लॉग: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से बनेगा लोकसभा चुनाव का माहौल !

By अवधेश कुमार | Updated: October 13, 2023 10:48 IST

इस बार के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कुल 16 करोड़ 14 लाख मतदाता, 679 विधानसभा सीटों तथा लोकसभा सीटों के लिए कांग्रेस, भाजपा समेत अन्य दलों के कैंडिडेट का भाग्य इन्हीं के हाथ है।

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ठळक मुद्देविधानसभा चुनावों के पूर्व पीएम मोदी ने संसद का विशेष सत्र बुलाकर महिलाओं को आरक्षण दिया हैक्या इससे समीकरण बदलेंगे या उलट विपक्षी पार्टी को सीधा फायदा मिलेगा2018 में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा था

चुनाव आयोग ने भले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की औपचारिक घोषणा अब की है, लेकिन देश पहले से ही चुनावी मोड में है। काफी समय से राजनीति की पूरी रणनीति 2024 लोकसभा चुनाव के इर्द-गिर्द बनाई जा रही है। 

लोकसभा चुनावों के पूर्व यही विधानसभा चुनाव हैं और इसके परिणाम कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण होंगे। कुल 16 करोड़ 14 लाख मतदाताओं, 679 विधानसभा सीटों तथा 83 लोकसभा सीटों का महत्व समझना कठिन नहीं है। इन चुनावों के पूर्व मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाकर महिलाओं को लोकसभा एवं विधानसभाओं में आरक्षण के लिए नारी सम्मान वंदन कानून बना दिया है। 

इन चुनाव में करीब 7 करोड़ 80 लाख महिला मतदाता हैं। यह पता चलेगा कि महिलाओं को आरक्षण देने से ये कितना प्रभावित कर सकता है? यह चुनाव भाजपा, कांग्रेस तथा क्षेत्रीय पार्टी बीआरएस यानी भारत राष्ट्र समिति के लिए एक हद तक करो या मरो जैसा है। 

कांग्रेस के लिए इनमें प्रदर्शन से आईएनडीआईए (इंडिया) में राष्ट्रीय राजनीति यानी लोकसभा चुनाव की दृष्टि से उसकी हैसियत तय होगी। यदि कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया तो आईएनडीआईए का नेतृत्व उसके हाथों में आ सकता है। अच्छा नहीं रहा तो आईएनडीआईए में नेतृत्व की दावेदारी तथा सीटों के तालमेल में निचले पायदान पर खड़ी रहेगी। 

भाजपा के लिए भी यह महत्वपूर्ण है क्योंकि हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक के दो विधानसभा चुनावों में लगातार हार के बाद वह अगली पराजय का जोखिम नहीं ले सकती।

 यद्यपि 2018 में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान विधानसभा चुनावों में पराजय के बावजूद 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इन राज्यों में बहुमत हासिल कर जीत दर्ज की थी। लेकिन, लगातार पराजय से पार्टी समर्थकों और कार्यकर्ताओं में निराशा पैदा होगी तथा विपक्ष लाभ उठा सकता है। 

प्रश्न है कि क्या इन चुनाव में पार्टियां अपनी अपेक्षाओं के अनुरूप परिणाम लाने में सफल होंगी? चुनाव परिणाम की भविष्यवाणी हमेशा जोखिम भरी होती है इसलिए इससे बचना चाहिए।

यह सच है कि इस समय भाजपा के समर्थकों और कार्यकर्ताओं में अपनी राज्य सरकारों और वहां के नेतृत्व के विरुद्ध असंतोष और गुस्सा है क्योंकि शासन में उनकी व्यापक अनदेखी हुई है। जनता के अंदर किसी राज्य में भाजपा के विरुद्ध व्यापक गुस्स नहीं है, किंतु कार्यकर्ता और समर्थक पार्टी के लिए काम नहीं करेंगे या विरोध में चले जाएंगे तो विजय मुश्किल होती है। 

हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक इसका उदाहरण है। इस दृष्टि से देखें तो कांग्रेस के पास विजय का अवसर है। किंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बनी हुई है, उनके प्रति कार्यकर्ताओं-समर्थकों का विश्वास भी है।

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