ब्लॉग: पानी सहेजने में मददगार हो सकते हैं प्राचीन तरीके

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: September 7, 2024 11:22 IST2024-09-07T11:16:19+5:302024-09-07T11:22:49+5:30

शुक्रवार को गुजरात में ‘जल संचय जनभागीदारी पहल’ की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आने वाली पीढ़ियां जब हमारा आंकलन करेंगी तो पानी के प्रति हमारा रवैया, शायद उनका पहला मानदंड होगा।

Ancient methods can be helpful in saving water | ब्लॉग: पानी सहेजने में मददगार हो सकते हैं प्राचीन तरीके

फोटो क्रेडिट- (एक्स)

Highlightsकुएं, तालाब, बावड़ियों का निर्माण बारिश के पानी को सहेजने के लिए किया जाता थाभूमिगत जल का स्तर भी बना रहता था और लोगों की दैनंदिन आवश्यकताएं भी उससे पूरी होती थीतालाब के किनारे की दीवारों पर वृक्षारोपण कर पर्यावरण संवर्धन भी किया जाता था

देश के कई हिस्से इन दिनों भीषण बारिश की समस्या से जूझ रहे हैं, खासकर गुजरात में तो हालात बहुत भयावह हैं। लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि देश को हर साल जल संकट का सामना करना पड़ता है, पेयजल के लिए अनेक इलाकों में त्राहि-त्राहि मच जाती है। इसलिए जल-संरक्षण को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना बिल्कुल दुरुस्त है कि जल-संरक्षण केवल नीतियों का नहीं बल्कि सामाजिक निष्ठा का भी विषय है।

शुक्रवार को गुजरात में ‘जल संचय जनभागीदारी पहल’ की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आने वाली पीढ़ियां जब हमारा आंकलन करेंगी तो पानी के प्रति हमारा रवैया, शायद उनका पहला मानदंड होगा। दरअसल हमारे देश में कमी पानी की नहीं है, बल्कि उसे सहेजने की है। पुराने जमाने से ही हमारे पूर्वज बारिश के पानी को सहेजने की कला जानते रहे हैं।

कुएं, तालाब, बावड़ियों का निर्माण बारिश के पानी को सहेजने के लिए किया जाता था, जिससे भूमिगत जल का स्तर भी बना रहता था और लोगों की दैनंदिन आवश्यकताएं भी उससे पूरी होती थी। तालाब के किनारे की दीवारों पर वृक्षारोपण कर पर्यावरण संवर्धन भी किया जाता था। लेकिन आधुनिक होते जमाने में हम अपनी प्राचीन तकनीकों को भूलते जा रहे हैं।

अभी बहुत दशक नहीं बीते, जब देश में जगह-जगह तालाब देखने को मिल जाते थे, लेकिन आधुनिक विकास और अतिक्रमण के चक्कर में हमने उनका इतनी तेजी से सफाया किया है कि अब वे ढूंढ़े नहीं मिलते। जहां कहीं इक्का-दुक्का वे बचे भी हैं तो प्रदूषित कचरे से हम उन्हें इतनी तेजी से पाटते जा रहे हैं कि वे मरणासन्न अवस्था में ही दिखाई देते हैं। भूजल स्तर लगातार गिरते जाने के कारण कुएं भी अब दम तोड़ रहे हैं. पहले हम कुओं से अपनी जरूरत भर का पानी ही रस्सी-बाल्टी के सहारे निकालते थे।

अब जगह-जगह खोदे गए बोरवेलों से पानी की बेतहाशा बर्बादी होती है और भूजलस्तर भयावह तेजी के साथ नीचे खिसकता जाता है।पहले जब सिंचाई के साधन नहीं थे तो मोटे अनाज का भरपूर उत्पादन किया जाता था, जो स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद होता था। सिंचाई सुविधा उपलब्ध होने के बाद हमने उन्हीं फसलों को ज्यादा बोना शुरू किया, जिन्हें पानी की ज्यादा आवश्यकता होती है।

नतीजतन भूजल स्तर भी गिरा और खेतों की उर्वरा शक्ति भी घटी। अब फिर से दुनिया मोटे अनाज के महत्व को समझ रही है और बारिश के पानी को सहेजने के प्रति भी लोग जागरूक हो रहे हैं। जैसा कि प्रधानमंत्री ने बताया, वृक्षारोपण भी बड़े पैमाने पर हो रहा है. उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री के संबोधन से लोग जलसंरक्षण के लिए और भी प्रेरित होंगे तथा पानी सहेजने के प्राचीन तरीकों पर फिर से ध्यान दिया जाएगा।

Web Title: Ancient methods can be helpful in saving water

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