Ambedkar Jayanti 2025: भारत की संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की आपको सारे देश में प्रतिमाएं मिल जाएंगी. इन्हें देखकर हरेक हिंदुस्तानी प्रेरित होता है, पर डॉ. आंबेडकर की देश में पहली प्रतिमा देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के रानी झांसी रोड पर स्थित आंबेडकर भवन में 14 अप्रैल 1957 को स्थापित की गई थी. उसके बाद तो देशभर में बाबासाहब की अनेक प्रतिमाएं लगती रहीं. बाबासाहब की संसद भवन परिसर में प्रतिमा 2 अप्रैल 1967 को स्थापित हुई थी. उसका अनावरण किया था भारत के तब के राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने.
इस प्रतिमा को तैयार किया था महान मूर्तिशिल्पी बी.वी. वाघ ने. संसद भवन में लगी बाबासाहब की शानदार प्रतिमा में वाघ ने उन्हें जनता का आह्वान करते हुए दिखाया है. उनके एक हाथ में भारत के संविधान की प्रति भी है. बाबासाहब का संसद भवन के सेंट्रल हॉल में लगा चित्र सुश्री जेबा अमरोही ने बनाया था. इसका अनावरण देश के प्रधानमंत्री के रूप में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 12 अप्रैल 1990 को किया था.
बाबासाहब 20 अप्रैल, 1942 को पहली बार दिल्ली आए थे. उन्हें वाइसराय की कार्यकारी परिषद में पदभार संभालने के लिए दिल्ली बुलाया गया था. उस समय मौजूदा मावलंकर हाल के पीछे छोटी-छोटी अनेक कुटिया (बैरक्स) बनी हुई थीं. बाबासाहब दिल्ली में पहली रात 35 नंबर की कुटिया में ही रहे. उस रात मच्छरों की वजह से उन्हें नींद नहीं आई.
उसके बाद उन्हें जनपथ पर स्थित वेस्टर्न कोर्ट के कमरा नं. 2 में शिफ्ट कर दिया गया. कुछ दिनों के बाद बाबासाहब ने लोदी एस्टेट में कुछ सरकारी बंगले देखे. उन्हें लोदी एस्टेट पसंद नहीं आया. उसके बाद उन्हें 22 पृथ्वीराज रोड का बंगला दिखाया गया. यह उन्हें सही लगा। बाबासाहब के जीवन पर शोध कर रहे सुमनजी संघ मित्र कहते हैं कि उस समय पृथ्वीराज रोड का बंगला खंडहर की सूरत में था.
एकदम उजाड़. अंदर मकड़ी के बड़े-बड़े जाले बने थे, दरवाजों की लकड़ियां टूटी पड़ी थीं, प्लास्टर उखड़ा पड़ा था. उसे भूत-बंगला कहते थे. लेकिन वैज्ञानिक मानसिकता रखने वाले बाबासाहब ने इसमें रहना पसंद किया. उस बंगले में उनकी हजारों किताबें भी समा गईं. संविधान सभा की बैठकों में भाग लेने के लिए तैयारी बाबासाहब अपने घर में खुद ही किया करते थे.
हिंदू कोड बिल पर नेहरू सरकार की नीयत से क्षुब्ध होकर बाबासाहब ने कैबिनेट मंत्री का पद छोड़ दिया. उसके बाद वे 26 अलीपुर रोड (अब शाम नाथ मार्ग) पर शिफ्ट कर गए थे. इधर बाबासाहब ने अपनी जिंदगी के अंतिम पांच बरस गुजारे थे. इधर ही उनका 5 और 6 दिसंबर 1956 की रात को किसी समय निधन हुआ था.
बाबासाहब ने इधर रहते हुए ‘बुद्धा एंड हिज धम्मा’ नाम से अपनी कालजयी पुस्तक लिखी थी. इसमें उन्होंने भगवान बुद्ध के विचारों की व्याख्या की है. बाबासाहब द्वारा लिखी यह अंतिम पुस्तक है. यह ग्रंथ मूलतः अंग्रेजी में ‘द बुद्धा एंड हिज धम्मा’ नाम से लिखा गया. इसका हिंदी, गुजराती, तेलुगु, तमिल, मराठी, मलयालम, कन्नड़, जापानी सहित और कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है. प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन जी ने इस ग्रंथ का हिंदी अनुवाद किया.