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ब्लॉग: हिमाचल में जीत के बाद प्रियंका गांधी के समर्थक है सातवें आसमान पर, क्या यह चुनाव तय करेगा कांग्रेस का भविष्य?

By हरीश गुप्ता | Updated: December 10, 2022 08:39 IST

ऐसे में भाजपा के पास खुश होने का एक और कारण है कि दिल्ली में आप की जीत हुई और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में सामूहिक रूप से मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों के बीच एकता नहीं है।

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ठळक मुद्देपार्टी की हिमाचल में भारी जीत के बाद प्रियंका गांधी के समर्थक काफी शुश है।ऐसे में इस जीत का श्रेय पार्टी प्रियंका गांधी को दे रही है। चुनाव में यह देखे गए है कि मीम और 'आप' को अल्पसंख्यकों की वोट मिल रही है।

नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश में पार्टी की जीत के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के समर्थक सातवें आसमान पर हैं. वह अकेली स्टार प्रचारक थीं क्योंकि न तो सोनिया गांधी और न ही राहुल गांधी ने चुनावी सभाओं को संबोधित किया है. प्रियंका ने अपनी टीम चुनी जिसमें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, राज्यसभा सांसद राजीव शुक्ला, सचिन पायलट, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुछ अन्य शामिल थे. 

हिमाचल में पार्टी के जीत के श्रेय पर क्या बोले राजीव शुक्ला

कांग्रेस की जीत के बाद जब राजीव शुक्ला से पूछा गया कि क्या जीत का श्रेय प्रियंका गांधी वाड्रा को जाता है, तो उन्होंने पलट कर कहा, ‘बिल्कुल. और किसको?’ जब से प्रियंका गांधी ने राजनीति में प्रवेश किया है, उनकी कोई विशेष उपलब्धि नहीं थी. यूपी और पंजाब में उनके प्रयोग सफल नहीं हुए. 

लेकिन हिमाचल की जीत ने उनके नाम में चार चांद लगा दिए हैं. राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने पार्टी के पूर्व अध्यक्ष के लिए भले ही कुछ सद्भावना पैदा की हो लेकिन असली परीक्षा 2023-24 में होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में होगी.

विपक्षी एकता दूर की कौड़ी

भाजपा 15 साल बाद एमसीडी चुनावों में सत्ता से बाहर हो गई और हिमाचल में असफल रही है. बेशक, इसने गुजरात में इतिहास रचा और यह उसके लिए खुशी मनाने का कारण है. भाजपा के पास खुश होने का एक और कारण है कि दिल्ली में आप की जीत हुई और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों में सामूहिक रूप से मुकाबला करने के लिए विपक्षी दलों के बीच एकता नहीं है. 

तृणमूल और आम आदमी पार्टी ने संसद में समन्वय के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा बुलाई गई बैठक में भले ही भाग लिया हो लेकिन बसपा, टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस, जद (एस) और अन्य सहित कई दल इससे चूक गए और इस तरह के प्रयासों का कोई मतलब नहीं है क्योंकि ये सभी दल कांग्रेस पार्टी के वोट बैंक में ही सेंध लगा रहे हैं. 

मीम और 'आप' को मिल रहे है अल्पसंख्यक वोट 

वहीं एआईएमआईएम राज्य दर राज्य अच्छी खासी तादाद में अल्पसंख्यक वोट हासिल कर रहा है. आप ने भी गुजरात में ऐसा ही किया जहां उसे 13 प्रतिशत के करीब वोट मिले और 30 सीटों पर उसने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया. वह जहां भी संभव हो कांग्रेस को बेदखल करने के लिए बेताब है. हिमाचल में कांग्रेस की जीत ने उसके नेतृत्व को राहत दी होगी. इसलिए विपक्षी एकता दिवास्वप्न बन रह सकती है.

सोनिया-नीतीश की असामान्य मुलाकात

सोनिया गांधी और बिहार के मुख्यमंत्री और जद (यू) सुप्रीमो नीतीश कुमार तथा राजद नेता लालू प्रसाद यादव के बीच 10 जनपथ पर बंद दरवाजे की बैठक का विवरण अब सामने आया है. पता चला है कि यह बंद दरवाजे की बैठक बिल्कुल भी नहीं थी. 

पांच साल के बाद यह बैठक कुछ समय पहले हुई थी और नीतीश कुमार ने इसकी पहल की थी. इस बैठक का उद्देश्य नजदीकी लाना था क्योंकि जद (यू) नेता ने 2017 में राजद-कांग्रेस गठबंधन से बाहर निकलकर भाजपा से हाथ मिला लिया था. 

मूड नहीं होने के बावजूद भी मिली सोनिया गांधी

अब पता चला है कि लालू प्रसाद यादव ने ऐन समय पर सोनिया गांधी को फोन करके मिलने का अनुरोध किया था. सोनिया गांधी कहीं जाने के लिए तैयार हो रही थीं और रविवार होने के कारण मिलने की इच्छुक नहीं थीं. लेकिन वे मान गईं. लालू और नीतीश अपनी-अपनी कारों में अलग-अलग आए और जब तक वे 10 जनपथ पहुंचे, तब तक सोनिया गांधी अपने कमरे से बाहर आ चुकी थीं. 

केवल 10 मिनट के लिए हुई थी मुलाकात

पता चला है कि उन्होंने खड़े-खड़े ही लालू और नीतीश कुमार से बमुश्किल 10 मिनट बात की, क्योंकि उन्हें देर हो रही थी. उन्होंने अभिवादन किया और उन्हें ठीक से होस्ट नहीं कर पाने के लिए क्षमा मांगी क्योंकि उन्हें ऐन वक्त पर सूचना मिली थी. यदि नीतीश कुमार का उद्देश्य 2024 में विपक्ष के नेता के रूप में उभरना था, तो यह हासिल नहीं हुआ. 

यह नीतीश कुमार के लिए एक संकेत है कि कांग्रेस 2017 की तरह आसानी से उन्हें अपना स्थान नहीं दे सकती है. नीतीश कुमार हरियाणा में इनेलो की एक रैली में भाग लेने के बाद दिल्ली आए थे और सोनिया गांधी से तत्काल मिलना चाहते थे. बैठक जरूर हुई लेकिन नतीजा बहुत उत्साहजनक नहीं रहा.

लोस के लिए नए चेहरों को मैदान में उतारेगी भाजपा

भाजपा की वॉर मशीन 2023 में 10 राज्यों में विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी कर रही है. अगर भाजपा मुख्यालय से आ रही खबरों की मानें तो पार्टी ने लोकसभा चुनाव में कम से कम 60-70 नए चेहरों को मैदान में उतारने का फैसला किया है. 

पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा की भाजपा की तिकड़ी राज्य इकाई प्रमुखों के साथ नियमित बैठकें कर रही है और व्यापक आंतरिक सर्वेक्षणों के आधार पर नए चेहरों की पहचान कर रही है. 

ज्यादा उम्र वाले नेताओं को नहीं मिलेगी भाजपा में जगह

पता चला है कि कई केंद्रीय मंत्रियों सहित 75 वर्ष से अधिक आयु के सभी नेताओं को रिप्लेस किया जाएगा. उदाहरण के लिए, यूपी के विधायक राजेश्वर सिंह को पहले ही गाजियाबाद लोकसभा सीट के लिए काम करने को कहा जा चुका है, जिसका प्रतिनिधित्व वर्तमान में जनरल वीके सिंह कर रहे हैं. 

2024 में हिसार लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में है कुलदीप बिश्नोई

15 से अधिक वर्तमान सांसद 75 वर्ष की आयु सीमा पार करने वाले हैं. इसी तरह कुलदीप बिश्नोई, जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए, 2024 में हिसार लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं. यह बृजेंद्र सिंह के भविष्य पर सवालिया निशान लगाएगा, जो मौजूदा सांसद हैं और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे हैं. 

गुजरात के पूर्व डिप्टी सीएम नितिन पटेल को अब मेहसाणा से मैदान में उतारा जा सकता है. भाजपा नेतृत्व लोकसभा चुनाव के लिए सीटों और नए चेहरों की पहचान करने के लिए महाराष्ट्र के नेताओं के साथ लंबी बैठकें कर रहा है.

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