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ब्लॉग: मोरबी पुल हादसे की जवाबदेही तय की जाए, जिन लोगों की अभी तक गिरफ्तारी हुई वे बहुत छोटी मछलियां हैं

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: November 1, 2022 13:55 IST

हादसे का ठीकरा टिकट काटने वाले कंपनी के छोटे कर्मचारियों पर फोड़ने से कोई फायदा नहीं है. जो बड़े आरोपी हैं, उन पर अभी तक हाथ डाला नहीं गया है. जिन लोगों की गिरफ्तारी हुई है, वे बहुत छोटी मछलियां हैं.

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दीपावली की खुशियां खत्म भी नहीं हुई थीं कि रविवार को गुजरात के मोरबी शहर में केबल का पुल ढहने से बड़ी संख्या में लोगों को प्राण गंवाने पड़े और पूरा देश शोक में डूब गया. इस हादसे की जांच होगी, कुछ गिरफ्तारियां हो जाएंगी, आर्थिक सहायता देने की घोषणाएं होंगी, शोक जताया जाएगा और कुछ दिन बाद सब कुछ शांत हो जाएगा. सौ से ज्यादा लोगों की मौत पर कुछ दिन बाद कोई बोलने वाला नहीं मिलेगा. 

देश में हादसे होते रहते हैं, जांच होती रहती है मगर न तो किसी को जिंदगी भर सबक सिखाने वाली सजा मिलती है और न ही हादसों की पुनरावृत्ति रोकने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाए जाते हैं. मोरबी का पुल हादसा स्तब्ध कर देने वाला है. पुल की देखरेख करने वाली कंपनी कमाई के चक्कर में इतनी अंधी हो गई कि उसने निर्दोष लोगों की मौत को न्यौता देकर अट्टहास किया. 

सौ लोगों की क्षमता वाले 142 साल पुराने केबल पुल पर कई गुना ज्यादा लोगों को प्रवेश दिया और छुट्टी की खुशियां देखते-देखते मातम में बदल गईं. मरने वालों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है. पुल पर कितने लोगों को प्रवेश दिया गया था, उसका आंकड़ा अभी सामने आने का है. यह पुल मोरबी तथा आसपास के लोगों के लिए महत्वपूर्ण पिकनिक स्पॉट था. उसकी देखरेख का जिम्मा दीवार घड़ी बनाने वाली एक कंपनी को दिया गया था. भवन, पुल, सड़क या अन्य तरह के निर्माण कार्य करने का कंपनी के पास कोई अनुभव नजर नहीं आता. 

इस कंपनी का जो ब्यौरा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है, उसके मुताबिक वह निर्माण क्षेत्र में तो दखल नहीं रखती. इसके बावजूद 2037 तक इस पुल की देखरेख का ठेका इस कंपनी को दे दिया गया. मरम्मत के लिए पुल छह महीने बंद रहा और 26 अक्तूबर को इसे फिर से खोला गया. आरोप तो यहां तक लग रहे हैं कि प्रशासकीय औपचारिकताएं पूरी किए बिना ही पुल को खोलने की इजाजत दे दी गई. 

यहां सवाल यह पैदा होता है कि जिस कंपनी को कथित रूप से निर्माण कार्य का कोई अनुभव नहीं है, उसे इंजीनियरिंग कौशल की मिसाल समझे जानेवाले इस ऐतिहासिक पुल के मेंटेनेंस का काम कैसे दे दिया गया. कंपनी को पुल का जिम्मा देते वक्त क्या इस बात का ध्यान रखा गया कि उसके पास इस काम के विशेषज्ञ इंजीनियर हैं या नहीं? सवाल यह भी पैदा होता है कि क्या सरकार ने इस बात पर नजर रखने के लिए किसी अधिकारी को जिम्मेदारी सौंपी थी कि कंपनी मेंटेनेंस की निर्धारित शर्तों का पालन कर रही है या नहीं? 

पुल 142 साल पुराना था और उसकी मरम्मत के लिए जिस विशेषज्ञता एवं कौशल की जरूरत होती है, वह निश्चित रूप से कहीं दिखाई नहीं दी. इस बेजोड़ केबल पुल की मरम्मत पर महज दो करोड़ रु. खर्च किए गए. इससे जाहिर है कि पुल की मरम्मत का काम सतही तौर पर किया गया. पुल पर आने वाले लोगों की क्षमता के हिसाब से मजबूती का ध्यान नहीं रखा गया. ऐसा नहीं है कि पुल पर पहली बार ही इतनी भीड़ जमा हो गई हो. 

चूंकि पुल एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल था, अत: वहां छुट्टी के दिनों में बड़ी संख्या में लोग आते थे. लोगों की बढ़ती भीड़ के मद्देनजर ही पुल की मरम्मत की जरूरत महसूस की गई लेकिन इस बात का ध्यान संभवत: नहीं रखा गया कि पुल पर सीमित संख्या में ही लोगों को प्रवेश दिया जाना चाहिए. हादसे का ठीकरा टिकट काटने वाले कंपनी के छोटे कर्मचारियों पर फोड़ने से कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि उसे संभवत: यह निर्देश ही नहीं दिया गया होगा कि क्षमता से ज्यादा टिकट बेचने नहीं हैं. 

इस हादसे को चौबीस घंटे से ज्यादा बीत चुके हैं, प्रथमदृष्टया जो बड़े आरोपी हैं, उन पर हाथ डाला नहीं गया है. जिन लोगों की गिरफ्तारी हुई है, वे बहुत छोटी मछलियां हैं. ये छोटी मछलियां हादसे के लिए न तो प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार हो सकती हैं और न ही हादसे पर ये लोग ज्यादा रोशनी डाल सकते हैं. ऐसे हादसे दिल दहला देते हैं लेकिन प्रशासन में बैठे जिम्मेदार लोगों के पत्थरदिल नहीं पसीजते. इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि जांच के नाम पर खानापूर्ति न हो और असली आरोपी बच न निकले.

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