अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: किसानों ने शुरू से ही दिखाया है मजबूत प्रतिरोध

By अभय कुमार दुबे | Updated: February 9, 2021 09:31 IST2021-02-09T09:31:41+5:302021-02-09T09:31:41+5:30

कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध शुरू से नजर आया है. पहले बात पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों तक सिमटी थी जिसका असर अब दिल्ली तक आ पहुंचा है. कैसे हुई किसानों के आंदोलन की शुरुआत...पढ़ें पूरा लेखा-जोखा

Abhay Kumar Dubey blog: farrm laws farmers shown strong resistance from very beginning | अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: किसानों ने शुरू से ही दिखाया है मजबूत प्रतिरोध

कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन (फाइल फोटो)

Highlights कृषि कानूनों पर अध्यादेश जारी होने के ठीक बाद शुरू हो गया था किसानों का आंदोलन19 अगस्त को 31 किसान संगठनों ने एक संयुक्त मंच का गठन किया, फिर आई आंदोलन में तेजीपंजाब में इस समय स्थानीय निकायों के चुनाव, दो-तिहाई सीटों पर बीजेपी को उम्मीदवार नहीं मिल पाए

दिल्ली के किसान आंदोलन को समझने के लिए जरूरी है कि उसकी उस पृष्ठभूमि पर गौर किया जाए जो किसानों के राजधानी मार्च से पहले थी. पिछले साल अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के तीन दिन पहले यानी पांच जून को केंद्रीय मंत्रिपरिषद में कृषि कानूनों पर अध्यादेशों को पेश किया गया. 

सरकार ने सोचा होगा कि इनके खिलाफ आवाज नहीं उठ पाएगी क्योंकि किसी भी किस्म की राजनीतिक गोलबंदी महामारी के कारण प्रतिबंधित थी. लेकिन अध्यादेश जारी होने के नौ दिन के भीतर-भीतर किसानों ने रणनीतिक कुशलता का परिचय देते हुए आंदोलन की शुरुआत कर दी.

कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध की शुरुआत

यूनियनों के निर्देश पर 14 जून से 30 जून के बीच किसानों ने पूरा-पूरा दिन अपने घरों की छतों पर इन अध्यादेशों को वापस लेने की मांग वाली तख्तियों के साथ गुजारा.

19 अगस्त को 31 किसान संगठनों ने एक संयुक्त मंच का गठन कर लिया. किसानों के रोष का पहला सामना अकालियों और भारतीय जनता पार्टी को करना पड़ा. गांवों में उनके नेताओं के घुसने पर पाबंदी लगा दी गई. 15 से 22 अगस्त के बीच पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के गांव स्थित घर के सामने पक्का मोर्चा (बड़ा टेंट लगा कर धरना) लग गया. 

किसानों ने मौजूदा मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के निर्वाचन-क्षेत्र में भी पक्का मोर्चा लगाया. 15 सितंबर से ही सारे प्रदेश में ललकार रैलियों की शुरुआत कर दी गई. इससे इतना दबाव पैदा हुआ कि केंद्र सरकार में अकाली दल की प्रतिनिधि हरसिमरत कौर को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. 

25 से 30 सितंबर के बीच पंजाब में किसानों ने रेल रोको अभियान चलाया. अकाली दल पर दबाव और बढ़ा. हरसिमरत के इस्तीफे के बाद अकाली दल को भाजपा से अपना 27 साल पुराना गठजोड़ तोड़ना पड़ा.

कृषि कानून: बीजेपी नेताओं के घरों के सामने धरने

एक अक्तूबर से 21 अक्तूबर के बीच 30 से ज्यादा जगहों पर सवारी गाड़ियां और मालगाड़ियां रोकी गईं. भाजपा नेताओं के घरों के सामने पक्के धरने शुरू कर दिए गए. 25 अक्तूबर को दिल्ली चलो का आह्वान किया गया. 13 नवंबर को किसान संघों की केंद्र सरकार से पहली बातचीत हुई. 

वायदे के मुताबिक इसमें कृषि मंत्री को आना था, पर आए केवल अफसरान. किसान संघों ने समझ लिया कि सरकार बातचीत के नाम पर उन्हें झांसा दे रही है. इसलिए उन्होंने सरकार की तरफ से दूसरे निमंत्रण का इंतजार किए बिना दिल्ली कूच का फैसला किया, और 25 से 27 नवंबर के बीच किसान दिल्ली चल दिए.  

भाजपा की सरकार वाले हरियाणा में भी आंदोलन जारी था. दिल्ली कूच के लिए वहां से भी किसान चल दिए थे. अपने प्रतिरोध को दर्ज करने के लिए हरियाणा में किसानों ने सीधे-सीधे सत्ताधारियों को निशाना बनाने का फैसला किया. 

उन्होंने ऐलान किया कि वे भाजपा और जननायक जनता पार्टी के नेताओं की कोई मीटिंग नहीं होने देंगे. 23 दिसंबर को अंबाला में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने न केवल काले झंडों का सामना किया, बल्कि महाराजा अग्रसेन चौक से उनके काफिले को वापस जाना पड़ा. 

दुष्यंत चौटाला का हेलिपैड किसानों ने किया नष्ट

जेजेपी के नेता दुष्यंत चौटाला ने अपने जींद स्थित निर्वाचन क्षेत्र में अपने लिए एक हेलिपैड बना रखा था. किसानों ने उसे नष्ट कर दिया. कैथल में खट्टर सरकार में मंत्री कमलेश ढांढा के भागते हुए काफिले का किसानों ने काफी दूर तक पीछा किया. 

फतेहाबाद में सतलज-यमुना लिंक नहर के मुद्दे पर राजनीति करके किसानों का आंदोलन पंजाब और हरियाणा के बीच बांटने की सरकारी योजना किसानों के कड़े विरोध के कारण रद्द कर देनी पड़ी. कई गांवों के बाहर भाजपा और जेजेपी के नेताओं के प्रवेश को प्रतिबंधित करने वाले बोर्ड लगा दिए गए. 

दस जनवरी को करनाल में भाजपा की तरफ से की जाने वाली किसान पंचायत में मुख्यमंत्री खट्टर हेलिकॉप्टर से आने वाले थे ताकि सरकार का पक्ष रख सकें. लेकिन किसानों ने उनका उड़नखटोला उतरने ही नहीं दिया. आंसू गैस के गोलों से लैस डेढ़ हजार पुलिसवाले खड़े रह गए, लेकिन मुख्यमंत्री को वापस जाना पड़ा. सरकारी किसान पंचायत नहीं हो पाई. 

किसान आंदोलन: बीजेपी लाल किले की वारदात का नहीं उठा सकी लाभ 

हरियाणा में भाजपा 26 जनवरी को हुई लाल किले की वारदात का कोई राजनीतिक लाभ उठाने में नाकाम रही है. किसानों के विरोध के कारण पार्टी एक भी मीटिंग नहीं कर पाई है. किसानों के गुस्से को देखते हुए मुख्यमंत्री खट्टर ने केंद्रीय मंत्री अमित शाह को सलाह दी कि वे हरियाणा का अपना दौरा फिलहाल रद्द कर दें. 

जाहिर था कि करनाल की घटना के बाद सरकार को अपनी पुलिस पर विश्वास नहीं रह गया था कि वह किसानों के मुकाबले खड़ी रह कर सरकारी कार्यक्रम आयोजित करा सकती है.

पंजाब में इस समय स्थानीय निकायों के चुनाव चल रहे हैं. 14 फरवरी को आठ नगर निगमों और 109 नगर परिषदों/नगर पंचायतों के लिए वोट पड़ेंगे. 

भारतीय जनता पार्टी को इस बार दो-तिहाई सीटों पर उम्मीदवार भी नहीं मिल पाए हैं. न ही उनके नेता चुनाव प्रचार के लिए निकल पा रहे हैं. पिछले एक महीने में 20 भाजपा नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. यह सब किसान आंदोलन का असर है.

Web Title: Abhay Kumar Dubey blog: farrm laws farmers shown strong resistance from very beginning

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे