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जासूसी का फैलता जाल और ठगी के हैरतअंगेज तरीके

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: January 29, 2025 06:36 IST

कोई भी अत्याधुनिक गैजेट्‌स हो, आपको सुविधा प्रदान करने वाली हर चीज कम्पनियों के लिए जासूसी का माध्यम बन सकती

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हेमधर शर्मा

अधिकांश लोगों ने महसूस किया होगा कि इंटरनेट पर किसी चीज के बारे में सर्च करते ही तत्काल हमें उससे संबंधित विज्ञापन दिखने शुरू हो जाते हैं. कई बार तो यह सोचकर भी ताज्जुब होता है कि जिस चीज के बारे में हम दोस्तों के बीच चर्चा भर करते हैं, उसके भी विज्ञापन हमें कैसे दिखने लगते हैं! पहले हम इसे अपना वहम या संयोग मात्र मानकर अपने संदेह को खारिज करने की कोशिश करते थे, लेकिन अब यह पता चल गया है कि यह वहम या संयोग मात्र नहीं है.

देश में कैब सेवा प्रदान करने वाली दो बड़ी कम्पनियों को केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) ने नोटिस भेज कर पूछा है कि एक ही समय पर एक ही जगह से समान जगह के लिए कैब बुक करने पर आईफोन और एंड्रॉयड फोन में किराया अलग-अलग क्यों है? यहां तक कहा जा रहा है कि कम बैटरी वाले मोबाइल फोन पर लगातार ज्यादा किराया दिखता है! क्या ऐसा इसलिए ताकि जल्दबाजी में उपभोक्ता ज्यादा पैसे चुकाकर भी कैब बुक करने के लिए मजबूर हो जाए?

इजराइल ने पिछले दिनों अपने कुछ अकल्पनीय कारनामों के जरिये दिखा दिया है कि अत्याधुनिक तकनीक में ऐसे-ऐसे काम करने की क्षमताएं हैं, जिसकी हम कल्पना तक नहीं कर सकते. माना तो यह जा रहा था कि इससे आम आदमी का विकास होगा लेकिन हकीकत में आम आदमी की कीमत पर उद्योगपतियों का विकास हो रहा है.तकनीक का जब इतना विकास नहीं हुआ था, तब भी उपभोक्ता सामग्री बनाने वाली कम्पनियां अपने उत्पादों की बिक्री के लिए नायाब उपायों की खोज में लगी रहती थीं.

कहते हैं एक बार एक टूथपेस्ट निर्माता कम्पनी ने खपत बढ़ाने के लिए अपने टूथपेस्ट के होल को चौड़ा कर दिया था, ताकि थोड़ा दबाने पर भी ज्यादा पेस्ट निकले. पुरानी पीढ़ी के लोगों को याद होगा कि किसी उपकरण में खराबी आने पर किस तरह वे उसके कल-पुर्जे खोलकर उसे दुरुस्त कर लेते थे. क्या यह अकारण है कि उपकरणों को आज इस तरह से बनाया जाता है कि उन्हें खोला ही न जा सके! मोबाइल की बैटरी खराब होने पर उसे बदलने का काम तो अभी नई पीढ़ी भी करती रही है.

क्या आपने सोचा है कि अब स्मार्टफोन ऐसे क्यों बन रहे हैं कि उससे बैटरी अलग ही न की जा सके! यूज एंड थ्रो का बढ़ता चलन आम आदमी का शौक नहीं बल्कि मजबूरी है. इससे होने वाला प्रदूषण पर्यावरण के लिए भले अभिशाप हो, कम्पनियां इसे वरदान मानती हैं, क्योंकि कचरे के पहाड़ खड़े होने का मतलब है खपत ज्यादा हो रही है और ज्यादा खपत अर्थात ज्यादा मुनाफा.

इसी खपत को बढ़ाने के लिए कम्पनियां हमारे निजी जीवन में ताकझांक करती हैं. अब यह बात रहस्य नहीं रह गई है कि जब हम अपने फोन का इस्तेमाल नहीं करते हैं तब भी यह हमारी बातें सुन रहा होता है क्योंकि विभिन्न एप्प डाउनलोड करते वक्त ही हमसे माइक्रोफोन की परमीशन मांग चुके होते हैं. कोई भी अत्याधुनिक गैजेट्‌स हो, आपको सुविधा प्रदान करने वाली हर चीज कम्पनियों के लिए जासूसी का माध्यम बन सकती है.

इसलिए अगली बार जब आप यह मानकर निश्चिंत हों कि किसी से अकेले में बात कर रहे हैं तो यह ध्यान जरूर रखिएगा कि आपके पैंट की जेब में रखे स्मार्टफोन या दीवार पर लगी स्मार्ट टीवी के भी कान होते हैं।

टॅग्स :Cyber Crime Police Stationसोशल मीडियाsocial media
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