Digital Arrest: शायद ही ऐसा कोई दिन हो जब देश के विभिन्न हिस्सों से डिजिटल अरेस्ट और ऑनलाइन ठगी के मामले सामने न आते हों! हर दिन अखबारों में छपता है, टीवी पर सूचना दी जाती है, फोन पर सरकारी संदेश आते रहते हैं, सोशल मीडिया पर रील्स भरे पड़े हैं कि भारत में डिजिटल अरेस्ट नाम की कोई चीज है ही नहीं. सामान्य बुद्धि भी यही कहती है कि किसी को डिजिटल तौर पर अरेस्ट कैसे किया जा सकता है? इसके बावजूद यदि लोग डिजिटल अरेस्ट का शिकार बन रहे हैं तो निश्चय ही वे खुद इसके लिए जिम्मेदार हैं. लेकिन मामला केवल इतना ही नहीं है.
सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि यदि आपने कभी कुछ गलत नहीं किया है तो आप डरते क्यों हैं. अब अभी दिल्ली का ही मामला देखिए. एक पूर्व बैंकर को ठगों ने फोन किया कि पुलवामा हमले, आतंकी गतिविधियों के लिए वित्तपोषण और मादक पदार्थ की तस्करी में उनके आधार कार्ड का इस्तेमाल किया जा रहा है. सवाल उठता है कि इस तरह के आरोप से डरने की जरूरत क्या है?
आप इस तरह की किसी हरकत में शामिल नहीं हैं तो आपके मन में पहला सवाल यह आना चाहिए कि यह फोन किसी ठग का है या फिर आधार कार्ड का किसी ने फर्जी तरीके से इस्तेमाल किया है. तो कोई भी समझदार व्यक्ति सीधे स्थानीय पुलिस के पास पहुंचेगा और बताएगा कि इस तरह के फोन आए हैं और हकीकत यह है कि किसी भी गलत काम से मेरा कोई लेना-देना नहीं है.
मगर ज्यादातर लोग पुलिस के पास नहीं जाते. सवाल यह है कि क्यों नहीं जाते? क्या उन्हें यह डर सताता है कि किसी पुरानी हरकत का कोई राज न खुल जाए? हो सकता है कि इस तरह का कोई राज हो ही नहीं लेकिन वे डर के कारण पुलिस के पास न जा रहे हों, तो यह भी गलत है. अब दिल्ली वाले मामले में देखिए कि ठगों ने अपने शिकार से 23 करोड़ रुपए ठग लिए!
इतनी बड़ी धनराशि ठगों को भेज देना क्या संदेह पैदा नहीं करता है? दो साल पहले एक उद्योगपति का भी मामला सामने आया था जिसने कोई सात करोड़ रुपए ठगों को ट्रांसफर कर दिया था! अब होना तो यह चाहिए कि जब ऐसा कोई बड़ा मामला आए तो इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि यह पैसा आया कहां से था?
दूसरा, व्यापक पैमाने पर प्रचार किया जाना चाहिए कि यदि आप किसी की धमकी में आकर पैसे ट्रांसफर करते हैं और इस तरह के फोन की जानकारी तत्काल स्थानीय पुलिस को नहीं देते हैं तो इसे भी अपराध माना जाएगा. वैसे जानकारियों के प्रचार-प्रसार की भरपूर कोशिश सरकार तो कर ही रही है, मगर वक्त की जरूरत को ध्यान में रखते हुए युवाओं को सामने आना होगा.
हर गली और हर मोहल्ले के युवा एकत्रित हों और घर-घर जाकर बताएं कि डिजिटल अरेस्ट नाम का कोई कानून भारत में नहीं है. यदि वीडियो कॉल पर भी कोई व्यक्ति आपको थाने का दृश्य दिखाता है, कोर्ट का दृश्य दिखाता है तो सौ फीसदी मानिए कि वह फर्जी है. साइबर क्रिमिनल जिन हथकंडों का भी इस्तेमाल करते हैं, उसके बारे में अब मोहल्ला स्तर पर जनजागृति की जरूरत है.
भारत में साइबर ठगी के मामले लगातर बढ़ते जा रहे हैं. आंकड़े वाकई चौंकाने वाले हैं. इसी साल संसद में बताया गया था कि 2024 में साइबर अपराधियों ने लोगों से 22 हजार 845 करोड़ रुपए ठग लिए. जबकि वर्ष 2023 में ठगी की यह राशि 7 हजार 465 करोड़ रुपए थी. ये आंकड़े बताते हैं कि 2023 की तुलना में 2024 में ठगी की राशि तीन गुना हो गई.
आंकड़े यह भी बताते हैं कि 2023 में साइबर धोखाधड़ी के 24 लाख 42 हजार 978 मामले दर्ज किए गए जबकि 2024 में यह संख्या 36 लाख 37 हजार पर पहुंच गई. संभव है कि जागृति के कारण रिपोर्ट ज्यादा दर्ज हुई है लेकिन यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि साइबर अपराधी ठगी के नए-नए रास्ते तलाश रहे हैं.
अभी दिक्कत यह है कि साइबर अपराध के खिलाफ हमारा सुरक्षा तंत्र बहुत मजबूत स्थिति में नहीं है. साइबर अपराधी इस बात का पूरा फायदा उठा रहे हैं. हम डिजिटल दुनिया में जी रहे हैं और हमें सतर्कता के उच्चतम बिंदु पर होना चाहिए ताकि कोई भी ठग हमें अपना शिकार न बना सके. साइबर सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की तो है ही, सतर्कता की पूरी जिम्मेदारी हमें निभानी होगी.