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52 साल से सूखा?, महिला विश्व कप हमसे बस एक ही कदम की दूरी पर, क्या इस बार टीम कब्जा करेगी?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: November 1, 2025 05:17 IST

महिला क्रिकेट विश्व कप की शुरुआत 1973 में हुई. तब से लेकर भारत दो बार (2005 और 2017 में) फाइनल में पहुंचा मगर चैंपियन नहीं बना

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ठळक मुद्देबस अब तो  यही उम्मीद है कि हमारी बेटियां विश्वकप जीतने का सपना संभव कर दिखाएं.विश्व खिताब सात बार ऑस्ट्रेलिया के हिस्से में और चार बार इंग्लैंड के हिस्से में गया.खबरें आईं कि महिला क्रिकेट के मुकाबले की जगह अंतिम समय में बदल दी गई.

दुनिया में महिला क्रिकेट विश्व कप हुए 52 साल बीत गए लेकिन भारत का इंतजार खत्म ही नहीं हो रहा है. क्या इस बार भारतीय टीम विश्व कप पर कब्जा करेगी? इससे बेहतर मौका और नहीं मिलेगा जब हमारी टीम सेमीफइनल में सात बार की चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को रिकॉर्ड रन चेस कर हराकर फाइनल में पहुंची है. बस अब तो  यही उम्मीद है कि हमारी बेटियां विश्वकप जीतने का सपना संभव कर दिखाएं.

महिला क्रिकेट विश्व कप की शुरुआत 1973 में हुई. तब से लेकर भारत दो बार (2005 और 2017 में) फाइनल में पहुंचा मगर चैंपियन नहीं बना. ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड की टीमों का दबदबा ऐसा रहा कि विश्व खिताब सात बार ऑस्ट्रेलिया के हिस्से में और चार बार इंग्लैंड के हिस्से में गया. सन् 2000 में केवल एक बार न्यूजीलैंड ने विश्व कप पर कब्जा करने में सफलता पाई थी.

यह तीसरा मौका है जब भारत फाइनल में पहुंचा है. इसका श्रेय जेमिमा रोड्रिग्स (127 नाबाद) और कप्तान हरमनप्रीत ( 89 रन ) को दिया जाना चाहिए जिनकी तीसरे विकेट के लिए  167 नाबाद रनों की भागीदारी की बदौलत और दूसरे खिलाड़ियों की छोटी लेकिन उपयोगी पारियों से भारत ने ऑस्ट्रेलिया जैसी ताकतवर टीम, जो अपने पिछले सभी 15 विश्वकप मैच जीत चुकी थी,

उसे सेमी फाइनल में हराकर फाइनल में जगह बनाई,  एक बार फिर 2017 की याद ताजा हो गई जब हरमनप्रीत ने सेमी फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ही  171 रनों की नाबाद पारी खेली थी और टीम फाइनल में पहुंच गई थी. मगर दुर्भाग्य से इंग्लैंड के हाथों भारत नौ रन से पराजित हो गया था.

लेकिन इस बार भारतीय टीम के तेवर को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि भारतीय बेटियां विश्व कप को अपने हाथों में जरूर उठाएंगी. वास्तव में भारत में महिला क्रिकेट ने बड़ी लंबी दूरी तय की है. सबसे पहले तो लड़कियों को यह विश्वास जमाने में समय लगा कि वे भी लड़कों की तरह शानदार क्रिकेट खेल सकती हैं.

महिला क्रिकेट की उपेक्षा का क्या हाल था, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है. महिला टीमों को छोटे स्टेडियम दिए जाते थे. 2013 में जब महिला क्रिेकेट मैच का प्रसारण शुरू हुआ था तो स्टेडियम में  स्कूली बच्चों को यूनिफॉर्म में बैठा दिया गया था. कई बार ऐसी भी खबरें आईं कि महिला क्रिकेट के मुकाबले की जगह अंतिम समय में बदल दी गई.

जैसे-जैसे महिला क्रिकेट खिलाड़ियों ने यह साबित किया कि वे किसी से कम नहीं हैं तो दर्शकों को महिला क्रिकेट रास आने लगा. अब उम्मीद यही है कि दो नवंबर को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ होने वाला फाइनल रोमांचक होगा लेकिन जीत हमारी होगी. 

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