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आतंकियों के सरपरस्तों के साथ गलबहियां और भारत पर जुर्माना!, टैरिफ तानाशाह बने डोनाल्ड ट्रम्प की दुनिया?

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 8, 2025 05:17 IST

भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम करवाया है. नई दिल्ली की पीठ में छुरा भोंकने के एवज में उन्होंने इस्लामाबाद से दोस्ती की.

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ठळक मुद्देआर्थिक कदम उठाए हैं, वे अमेरिका के नहीं, खुद उनके हित में हैं. मुश्किल दौर में भी अपनी रीढ़ तनी हुई रखते हैं.भारत पहले की तरह अपने रुख पर अडिग है.

प्रभु चावला 

कुछ घटनाएं इतिहास में दो बार घटित होती हैं: पहली बार कॉमेडी के रूप में और दूसरी बार प्रहसन के रूप में. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को दोनों रूपों में देखा गया है. रियलिटी टीवी के मेजबान से टैरिफ तानाशाह बने ट्रम्प ने विगत 30 जुलाई को भारतीय निर्यात पर 25 फीसदी टैरिफ का आर्थिक बम फोड़ा और अब उसमें 25 फीसदी का और इजाफा कर दिया है. दूसरी ओर लगातार वह झूठ बोलते रहे कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम करवाया है. नई दिल्ली की पीठ में छुरा भोंकने के एवज में उन्होंने इस्लामाबाद से दोस्ती की.

उन्होंने जो आर्थिक कदम उठाए हैं, वे अमेरिका के नहीं, खुद उनके हित में हैं. पाकिस्तानी जनरल सैयद आसिम मुनीर अहमद शाह के साथ ट्रम्प की सुनियोजित साजिश कायरता में लिपटी है, जो भारत को दु:स्वप्नों के पुराने दौर में ले गई है. वर्ष 1971 के बांग्लादेश युद्ध को याद कीजिए, जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने भारत को धमकाने के लिए एयरक्राफ्ट कैरियर यूएसएस इंटरप्राइज भेज दिया था. मगर इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुई थीं. इतिहास उन्हें याद रखता है जो मुश्किल दौर में भी अपनी रीढ़ तनी हुई रखते हैं.

इस बार इतिहास खुद को प्रहसन के रूप में नहीं, चेतावनी के रूप में दोहरा रहा है. लाल टाई वाले ट्रम्प निक्सन ही हैं और अमेरिका फिर पाकिस्तान के साथ खड़ा है. फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार अमेरिका टैरिफ और ट्वीट्स के साथ पाकिस्तान के साथ खड़ा है, जबकि भारत पहले की तरह अपने रुख पर अडिग है.

ट्रम्प की देहभाषा, मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति और बीमार मानसिकता का झूठ उन्हें लोकतंत्र के संरक्षक के बजाय वैश्विक दादा ही ज्यादा साबित करता है. और उनकी नीति अमेरिका फर्स्ट की नहीं, ट्रम्प फर्स्ट की है. पाकिस्तान की तरफ उनका झुकाव आतंक के ढांचों को नई ताकत दे रहा है. इससे 1970 के दौर की अमेरिकी नीति की पुनरावृत्ति हो रही है:

भारत को अलग-थलग करो, पाकिस्तान से दोस्ती गांठो और शांति बहाली का बहाना करो. लेकिन आज का भारत दब्बू देश नहीं है. यह करीब 3.9 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था, दुनिया का सबसे विशाल लोकतंत्र और ग्लोबल साउथ की आधारशिला है. भारत के 1.4 ट्रिलियन डॉलर का बाजार और ग्लोबल साउथ का नेतृत्व अमेरिकी राष्ट्रपति के टैरिफ वार के निशाने पर है.

मोदी के ‘2047 में विकसित भारत’ का लक्ष्य स्वायत्तता मांगता है, किसी की अधीनता नहीं. अंकटाड के मुताबिक, ट्रम्प के टैरिफ विकासशील देशों को अंतत: क्षेत्रीय गठबंधनों की ओर ले जाएंगे. भारतीय फार्मास्युटिकल्स और कपड़े एशिया व यूरोप का रुख कर सकते हैं. ट्रम्प के तेवर की ग्लोबल साउथ में तीखी प्रतिक्रिया हो सकती है.

भारत के नेतृत्व में ब्रिक्स देश अमेरिकी वर्चस्ववाद के खिलाफ खड़े हो सकते हैं. अकेला भारत नहीं, ब्रिक्स भी उभर रहा है, आसियान पूरे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए है और यूरोप नए सिरे से चीजों को समायोजित कर रहा है. अगर ट्रम्प का यह रवैया जारी रहा तो भारत ब्रिक्स के साथ रिश्ते मजबूत करेगा और अमेरिका को एक महत्वपूर्ण दोस्त के खोने का अफसोस करना पड़ेगा.

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