NHAI Toll Tax Hike: राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल टैक्स 3 से 5 प्रतिशत बढ़ा दिया गया है. भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के मुताबिक टोल टैक्स की नई दरें एक अप्रैल से ही लागू हो जानी चाहिए थीं लेकिन लोकसभा चुनावों के कारण इस कदम को रोकना पड़ा था. राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के इस कदम से आम आदमी पर निश्चित रूप से बोझ पड़ेगा. पर बोझ सिर्फ टोल टैक्स की रकम के रूप में ही नहीं, महंगाई की शक्ल में भी बढ़ेगा. प्राधिकरण टोल टैक्स की दरों में हर साल संशोधन करता है. संशोधन के नाम पर टोल टैक्स में वृद्धि ही होती है.
देश के कुछ राजमार्ग तो ऐसे हैं जिन पर वाहन चलाने के लिए प्रति किलोमीटर औसतन ढाई रु. टोल टैक्स अदा करना पड़ता है. देश के विकास के लिए अच्छी सड़कें बेहद जरूरी हैं. अगर सड़क संपर्क उच्च गुणवत्ता का हो तो न केवल यात्री परिवहन बल्कि माल ढुलाई भी आसान और तेज हो जाती है.
लेकिन मध्यम वर्ग के मजबूत आर्थिक सहयोग पर टिकी अर्थव्यवस्था में आम आदमी पर करों का बोझ लादने की भी एक सीमा होती है. भारत में जब कोई व्यक्ति वाहन खरीदता है तो वह जीएसटी, पर्यावरण से लेकर रोड टैक्स और उसके अलावा राज्य सरकारों एवं स्थानीय निकायों द्वारा वसूले जाने वाले टैक्स एवं विभिन्न शुल्कों के लिए अपनी जेब ढीली करता है.
वाहन खरीदते वक्त रोड टैक्स लेने का मकसद ही यही है कि अच्छी गुणवत्ता वाली सड़कों के विकास के लिए आर्थिक संसाधन जुटाए जाएं. उसके बावजूद उसे सड़क पर वाहन चलाने के लिए टोल टैक्स भी देना पड़ता है. सड़क बनाने के लिए सरकार एक बार टैक्स वसूल कर लेती है. उसके बाद सड़क बनाना और उसकी देखभाल करना संबंधित सरकारी विभागों की जिम्मेदारी है.
लेकिन निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ सड़कें विकसित करने की यूरोपीय देशों की अवधारणा भारत में भी आई और देश की तरक्की के लिए अच्छी सड़कों की जरूरत को महसूस करते हुए आम आदमी ने भी टोल टैक्स के रूप में एक और बोझ उठाना स्वीकार कर लिया. लेकिन जिस तरह से टोल टैक्स की दरें तय की जाती हैं और उनमें हर वर्ष वृद्धि की जाती है.
उससे वाहनधारक यह महसूस करने लगा है कि टोल टैक्स के माध्यम से उसका शोषण किया जा रहा है. यह भी कहा जाने लगा है कि राष्ट्रीय राजमार्ग सरकार के लिए सोने का अंडा देनेवाली मुर्गी बन गए हैं. इस बात में अतिशयोक्ति भी नहीं है. राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल टैक्स से सरकार काे होने वाली आमदनी पर नजर दौड़ाई जाए तो सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की कहावत सत्य साबित होती है.
2021 में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को टोल से 40 हजार करोड़ रु. की आमदनी हुई. 2019-20 में यह आंकड़ा 27682 करोड़ और 2020-21 में 28548 करोड़ रु. था. 2022-23 में टोल टैक्स से प्राधिकरण की झोली में 44 हजार करोड़ रु. से ज्यादा रकम आई और 2024-25 में टोल टैक्स से होने वाली आय 50 हजार करोड़ तक पहुंच जाने की उम्मीद है.
2027 तक सरकार का लक्ष्य है कि टोल टैक्स से मिलने वाला राजस्व 1.40 लाख करोड़ रु. तक पहुंच जाए. यह लक्ष्य हासिल करना कठिन नहीं है. देश में राष्ट्रीय राजमार्गों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है और उसके साथ ही टोल प्लाजा की संख्या भी बढ़ रही है. आम आदमी अच्छी सड़कों के लिए योगदान देने को तैयार है, लेकिन उस पर बोझ डालने की एक सीमा होनी चाहिए.
कई राजमार्गों पर टोल प्लाजा निर्धारित मापदंडों का उल्लंघन कर बनाए गए हैं. केंद्रीय सड़क परिवहन तथा राजमार्ग मंत्रालय का नियम कहता है कि दो टोल प्लाजा के बीच कम से कम 60 किमी की दूरी होनी चाहिए मगर इस नियम को ठेंगा दिखाया जा रहा है. सूचना के कानून के तहत दी गई जानकारी से खुद खुलासा हुआ है कि कई राजमार्गों पर दो टोल प्लाजा के बीच 60 किमी से कम दूरी है.
बनारस-प्रयागराज नेशनल हाईवे पर 35 किमी के दायरे में दो टोल प्लाजा हैं. नागपुर और छिंदवाड़ा के बीच नागपुर जिले की सीमा खत्म होने और म.प्र. की सीमा शुरू होने के नजदीक ही दो टोल प्लाजा हैं और उनके बीच भी दूरी मुश्किल से 20 किमी है.
इसके अलावा टोल टैक्स लेने के बावजूद सड़कों का रखरखाव निर्धारित मापदंडों के अनुरूप नहीं होता. सरकार को टोल टैक्स बढ़ाने के फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए, क्योंकि इससे महंगाई पर काबू पाने के उसके प्रयासों में मुश्किल होगी जिसका दुष्परिणाम आम आदमी के साथ अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा.