अमेरिका जल रहा है और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प दुनिया की आग बुझाने का दावा कर रहे हैं. इस विराट मुल्क के इतिहास में संभवतया पहली बार ऐसी स्थिति बनी है. अमेरिका का रोम-रोम कर्ज से बिंधा हुआ है और किसी नियंता के माथे पर उसकी फिक्र तक नहीं दिखाई देती. ऋण की रफ्तार इतनी तेजी से बढ़ी है कि सारे अर्थशास्त्री हैरत में हैं. दिसंबर 2024 में अमेरिका का कुल कर्ज बढ़कर 3061 लाख करोड़ रुपए हो चुका था. ठीक पांच साल पहले यानी 2025 में यह कर्ज 2212 लाख करोड़ रुपए और उससे केवल 3 साल पहले 2017 में यह 2016 लाख करोड़ रुपए था.
दिलचस्प यह कि 2008 में यह आंकड़ा 826 लाख करोड़ और 2001 में 429 लाख करोड़ रुपए मात्र था. जाहिर है कि अमेरिका की वित्तीय हालत लगातार बिगड़ती रही है. बराक ओबामा के राष्ट्रपति शासन तक तो फिर भी गनीमत थी. उनके बाद तो हालात बद से बदतर होते गए हैं. डोनाल्ड ट्रम्प तो अमेरिकी धन को जिस तरह उड़ा रहे हैं, वह चौंकाता है.
एक अमेरिकी अर्थशास्त्री ने तो चेतावनी देते हुए कहा है कि अमेरिका बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है. यदि तत्काल उपाय नहीं किए गए तो वित्तीय मोर्चे पर मुल्क में हाहाकार मच जाएगा. हम केवल अमेरिका के अर्थतंत्र की बात ही नहीं करना चाहते. यह इस सभ्य लोकतंत्र में पहली बार हुआ है जब 2700 शहरों में लगभग एक करोड़ लोगों ने डोनाल्ड ट्रम्प के विरोध में सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया है.
इससे कुछ समय पहले भी एक साथ हजारों शहरों में ट्रम्प के रवैये के खिलाफ लाखों लोग सड़कों पर आ गए थे. इन आंदोलनों के जरिये अमेरिका की साक्षर और जम्हूरियत प्रेमी अवाम डोनाल्ड ट्रम्प के सामंती स्वभाव और कार्यशैली का बार-बार विरोध कर रही है. वह राष्ट्रपति के रूप में उनके निर्णयों को अहंकारी और तानाशाही मानती है.
डोनाल्ड ट्रम्प ने अनेक राज्यों में अपने गवर्नर्स से रार मोल ली है. यह गवर्नर्स डोनाल्ड ट्रम्प को फूटी आंखों नहीं सुहाते. मीडिया के साथ डोनाल्ड ट्रम्प के इस दूसरे कार्यकाल में भी तलवारें तनी हैं. उनकी झूठ बोलने की आदत और अधिनायकवादी रुख के खिलाफ पिछले कार्यकाल में पत्रकारों और संपादकों से उनके रिश्ते बेहद कड़वे थे.
मगर इस बार तो चुनाव जीतने के बाद उनकी लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से गिरा है. अमेरिकी इतिहास में कभी कोई राष्ट्रपति इतनी जल्दी इतना अधिक बदनाम नहीं हुआ.क्या यह हैरान करने वाली बात नहीं है कि डोनाल्ड ट्रम्प को प्रतिपक्ष के इतने सशक्त विरोध का सामना करना पड़ रहा है कि लाखों कर्मचारियों के भूखों मरने की नौबत आ गई है?
करीब साढ़े सात लाख कर्मचारी छोटी-छोटी दैनिक वेतन वाली नौकरियां कर रहे हैं या घर-घर भोजन के डिब्बे पहुंचा रहे हैं. एक अक्तूबर से देश में शटडाउन चल रहा है और यह इतिहास का दूसरा सबसे लंबा शटडाउन है. बीस अक्तूबर को डोनाल्ड ट्रम्प का फंडिंग प्रस्ताव सीनेट में ग्यारह बार मतदान के बाद खारिज हो गया.
इससे पहले दिसंबर 2018 में सबसे लंबा 35 दिन का शटडाउन हुआ था. संदर्भ के तौर पर बता दूं कि भारत में जिस तरह एक अप्रैल से नया वित्तीय साल प्रारंभ होता है, उसी तरह अमेरिका में एक अक्तूबर से यह सिलसिला शुरू होता है. अगर एक अक्तूबर तक सरकार का बनाया बजट मंजूर नहीं होता तो सारे सरकारी कामकाज बंद हो जाते हैं.
इस बार भी ऐसा ही हुआ है. रिपब्लिकन सरकार के प्रतिपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी से ओबामा स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम में सब्सिडी पर गंभीर मतभेद हैं. डेमोक्रेट स्वास्थ्य बीमा की राशि बढ़ाना चाहते हैं ,पर ट्रम्प सरकार का खजाना खाली है. अगर वह सब्सिडी बढ़ाती है तो ट्रम्प सरकार के बहुत से खर्चों पर पहाड़ टूट पड़ेगा. इसलिए वह बच रही है.
स्थिति इतनी खराब है कि दो दिन पहले 8000 से अधिक हवाई उड़ानें अस्त-व्यस्त हो गईं और लगभग डेढ़ सौ उड़ानें रद्द करनी पड़ी हैं. अब तक कुल 24000 से अधिक विमानों का संचालन लड़खड़ा गया है. यह एक सभ्य और दुनिया के सबसे अमीर मुल्क का दृश्य है. सेना, पुलिस, बॉर्डर सिक्योरिटी और एयर ट्रैफिक कंट्रोल के लोग वेतन नहीं मिलने से अवकाश पर हैं.
परमाणु हथियारों से जुड़े कोई 1500 अधिकारी और कर्मचारी छुट्टी पर भेज दिए गए हैं. सोचिए कभी भारत में ऐसा दृश्य उपस्थित हो तो क्या हो? बारह साल पहले जब अमेरिका में 16 दिन का शटडाउन हुआ था तो कनाडा के साथ लगती 8891 किलोमीटर लंबी सीमा पर रक्षा के लिए सिर्फ एक व्यक्ति तैनात था. वह भी साफ-सफाई के लिए.
यह दिलचस्प है कि डोनाल्ड ट्रम्प अपने देश की इस दुर्दशा से रत्ती भर परेशान नजर नहीं आते. वे अपने खर्चों में कोई कटौती नहीं कर रहे हैं. अपने प्रतिपक्ष के साथ संवाद करने के बजाय वे अपनी प्रचार एजेंसियों को निर्देश दे रहे हैं कि डेमोक्रेट के खिलाफ प्रोपेगंडा जंग छेड़ दें और लोगों को बताएं कि शटडाउन के लिए डेमोक्रेट ही जिम्मेदार हैं.
वे भारत को धमकाने पर उतारू हैं, रूस के राष्ट्रपति पुतिन के विरुद्ध आग उगलते हैं और चीन को टैरिफ की चेतावनी देते हैं. यह विचित्र है कि एक अधिनायक अपने देश की आवाज नहीं सुन रहा है और सारी दुनिया उस पर हंस रही है.