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Artificial Intelligence AI-Social Media: अक्ल से पैदा नकली दिमाग सुविधा या जंजाल?

By राजेश बादल | Updated: February 12, 2025 05:47 IST

Artificial Intelligence AI-Social Media: आशंकाओं के बीच यह गंभीर प्रश्न भी खड़ा हो गया है कि क्या हम सारे संसार के लिए निर्धारित नैतिक, मानवीय और लोकतांत्रिक मूल्यों का विनाश करने पर तो उतारू नहीं हैं?

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ठळक मुद्देआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर चल रही ताजा बहस तो कम से कम यही संकेत देती है. डीपसीक अपनी एक खास चीनी गंध के साथ इसका मुकाबला करने को तैयार है.सिर्फ चीनी हितों की रक्षा का ध्यान रखने के लिए तैयार किया गया है.

Artificial Intelligence AI-Social Media: इंसानियत के लिए बेहद संवेदनशील और निर्णायक दौर चल रहा है. ज्यों-ज्यों कृत्रिम बुद्धिमत्ता और सोशल मीडिया के नए अवतार आ रहे हैं, वे समूची  मानव बिरादरी के लिए कई पेंच भी पैदा कर रहे हैं. यह पेंच भविष्य की तस्वीर को अत्यंत चमकदार बनाते हैं तो इस तस्वीर को खंडित करने की आशंकाएं भी विकराल रूप ले रही हैं. इन आशंकाओं के बीच यह गंभीर प्रश्न भी खड़ा हो गया है कि क्या हम सारे संसार के लिए निर्धारित नैतिक, मानवीय और लोकतांत्रिक मूल्यों का विनाश करने पर तो उतारू नहीं हैं?

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर चल रही ताजा बहस तो कम से कम यही संकेत देती है. चैटजीपीटी बनाने वाले अमेरिकी स्टार्टअप ओपनएआई का संपादकीय सामग्री के चुनाव का तरीका संसार के अनेक देशों को रास नहीं आ रहा है. दूसरी ओर चीनी अवतार डीपसीक अपनी एक खास चीनी गंध के साथ इसका मुकाबला करने को तैयार है.

यह सिर्फ चीनी हितों की रक्षा का ध्यान रखने के लिए तैयार किया गया है. भारत जैसे कुछ-कुछ तटस्थ मुल्क ठिठके हुए हैं. न तो उनका अपना कोई ऐसा प्लेटफॉर्म है और न इतनी आसानी से आनन-फानन में तैयार हो सकता है. अलबत्ता भारतीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव यह दावा कर रहे हैं कि भारत शीघ्र ही अपना अवतारी संस्करण लाएगा. तब तक चैटजीपीटी के लिए भारत का बाजार तो खुला ही है.

जब ओपनएआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सैम ऑल्टमैन भारत में आकर कहते हैं कि भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में वर्ल्ड लीडर बन रहा है तो अप्रत्यक्ष रूप से उसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि भारत को अपना अलग से प्लेटफॉर्म खड़ा करने की आवश्यकता क्या है? यह वही ऑल्टमैन हैं, जो डेढ़ साल पहले तक कह रहे थे कि भारत में एआई की वृद्धि दर निराशाजनक है.

लेकिन जब बीते एक बरस में एआई का इस्तेमाल करने वाले तीन गुना बढ़ गए तो सैम ने भी अपने सुर बदल लिए  हैं. सरकारी दावे के अनुरूप यदि भारत का अपना प्लेटफॉर्म आ गया तो ओपनएआई के कारोबार का क्या होगा? इस समय भारत में चैटजीपीटी के उपयोगकर्ता विश्व में किसी भी अन्य देश की तुलना में सर्वाधिक हैं.

लेकिन मुद्दा ओपनआई के संपादकीय कंटेंट का भी है. भारत में खबरिया घरानों ने उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है. कुछ और घराने भी अपने कॉपीराइट कंटेंट को बिना अनुमति इस्तेमाल करने के कारण चैटजीपीटी से नाराज हैं. उनका तर्क है कि बड़ी मेहनत से उन्होंने यह कंटेंट तैयार किया और उसने यह पका-पकाया कंटेंट अपने प्लेटफॉर्म पर इस्तेमाल कर लिया.

यह अनुचित है. चैट जीपीटी का तर्क है कि उसने उसी सामग्री का उपयोग किया है, जो पहले से ही सार्वजनिक मंचों पर आ चुकी है. पर यह उसका तर्क बड़ा मासूम लगता है. यदि कोई अपने कॉपीराइट कंटेंट का उपयोग अपनी आमदनी बढ़ाने में कर रहा है तो यह उसका भारतीय संविधान में प्रदत्त अधिकार है.

उसी कंटेंट को चैटजीपीटी भी शेयर करेगा तो मूल कंपनी घाटे में रहेगी क्योंकि चैटजीपीटी भी तो पैसा कमाएगा. उस कंटेंट से अपनी आय बढ़ाएगा, जिस कंटेंट को उसने किसी दूसरे प्लेटफॉर्म से चुराया है. यह सरासर गलत है. इसी आधार पर ओपनएआई पर विभिन्न देशों में एक दर्जन से ज्यादा मुकदमे चल रहे हैं.

चैटजीपीटी इसलिए भी भारत में अपने बाजार को फिलवक्त नहीं खोना चाहेगा कि भारत सरकार अभी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को प्रोत्साहित करने के लिए बढ़ावा दे रही है. वह करीब चालीस फीसदी सब्सिडी दे रही है. मान लें कि मौजूदा कीमत 261 रुपए एक घंटे के कंटेंट की है तो सब्सिडी के बाद किसी भी उपभोक्ता को सिर्फ 100 रुपए ही देने होंगे.

यह किसी भी एआई अवतार के लिए बहुत बड़ी सुविधा है. सूत्र कहते हैं कि सैम ऑल्टमैन ने भारत के हितों का ध्यान रखने का भी वादा भारत सरकार से किया है. इससे मतलब राष्ट्रीय हितों से है. अब दूसरी तरफ आते हैं. चीनी अवतार डीपसीक भी चीन से बाहर लोकप्रिय हो रहा है. पाकिस्तान, बांग्लादेश, रूस, नेपाल और अनेक देशों में यह बेहद लोकप्रिय हो रहा है.

बताने की जरूरत नहीं कि यह चैटजीपीटी का मुकाबला कर रहा है. डीपसीक के बारे में कहा जाता है कि इसकी मेमोरी हाथी की तरह है. यह आपकी हर गतिविधि को याद रखता है. इसे आप अपने पर्सनल सेक्रेटरी की तरह भी उपयोग में ला सकते हैं. लेकिन चीन का डीपसीक इस्तेमाल करते समय यह ध्यान में रखना होगा कि वह ऐसी कोई भी जानकारी आपको नहीं देगा, जो चीन में लोकतंत्र को बढ़ावा देती हो. मसलन 1989 में थियानमन चौक पर लोकतंत्र बहाली की मांग को लेकर छात्रों पर गोलियां बरसाई गई थीं और बड़ी संख्या में छात्र मारे गए थे.

अब इस घटना के बारे में आप डीपसीक से कुछ चाहेंगे तो आपको कुछ नहीं मिलेगा. इसी तरह ताइवान के बारे में चीनी नजरिये से जानकारी उपलब्ध कराएगा. चैटजीपीटी इस मामले में तनिक उदार है, लेकिन उससे भी आप ऐसी अपेक्षा नहीं कर सकते कि वह अमेरिका के खिलाफ हर जानकारी मुहैया कराएगा. ऐसी स्थिति में भारत के लिए अपना प्लेटफॉर्म विकसित करना आवश्यक है.

इन आधुनिकतम नकली दिमागों से हमारी सारी समस्याएं हल हो जाएंगी. कम से कम अमेरिकी उद्योगपति मार्क एंडरसन तो यही कहते हैं. वे इस विषय के जानकार भी माने जाते हैं. जून 2023 में लिखे एक लेख में वे कहते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस दुनिया को नष्ट नहीं करेगा. एक और जानकार रे कुर्जवील भी ऐसा ही मानते हैं.

मगर मेरी चिंता तो 2023 में ही चीन, अमेरिका और तीस अन्य देशों की ओर से स्वीकार किए गए ब्लेचली घोषणापत्र को लेकर है. यह घोषणापत्र कहता है कि एआई मनुष्य को मनुष्य के खिलाफ बांट देगा और प्रतिद्वंद्वी देशों को विनाशकारी टकराव बिंदु तक ले जाएगा.

यदि इक्कीसवीं सदी का वैश्विक तानाशाही तंत्र दुनिया पर विजय भी हासिल कर ले तो बहुत संभव है कि उसका संचालन उसी तानाशाह के हाथ से फिसलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के हाथों में आ जाए और वह परमाणु बम तक चलाने का फैसला अपनी बुद्धि के आधार पर कर ले. एक अधिनायक इस एआई को खुद अपनी सत्ता हथियाने से कैसे रोक सकता है?

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