प्रभु चावला
कहा जाता है कि दुनिया में सिर्फ सात ही कहानियां हैं, जिन्हें बदल-बदलकर सुनाया जाता है. इसी तरह बॉलीवुड में लगातार दोहराए जाने वाले सात लोग हैं- अक्षय कुमार, तीनों खान, दीपिका पादुकोण, कपूर परिवार और करण जौहर. ये लोग एक ही कहानी बार-बार दोहराते हैं. यह उक्ति हाल ही में तब सच साबित हुई, जब ‘हाउसफुल 5’ के ओपनिंग शो के अवसर पर पीवीआर ऑडिटोरियम खामोश दिखा. बावजूद इसके कि शीर्ष बुकिंग एप इसके 60 फीसदी टिकट बिकने की भ्रामक जानकारी दे रहा था, ऑडिटोरियम लगभग खाली था.
अक्षय कुमार की यह ताजातरीन कॉमेडी फिल्म, जिसमें अभिषेक बच्चन, संजय दत्त और नाना पाटेकर समेत कुल 19 फिल्म स्टारों की मौजूदगी है, छह जून के ओपनिंग डे पर मात्र 24 करोड़ का बिजनेस कर पाई. जाहिर है कि बॉलीवुड के स्टारों की चमक फीकी पड़ रही है, जिससे देश का 19000 करोड़ रुपए का मनोरंजन उद्योग खतरे में है.
विडंबना यह है कि जब हिंदी सिनेमा की स्थिति डगमगा रही है, तब दक्षिण भारतीय सिनेमा उभार पर है. यह बॉलीवुड में रचनात्मकता के सूखे के बारे में बताता है. ‘हेराफेरी’ और ‘वेलकम’ जैसी फिल्मों के कारण ‘खिलाड़ी’ अक्षय कुमार की एक समय छोटे शहरों में तूती बोलती थी, लेकिन ‘स्काई फोर्स’, ‘केसरी 2’ और अब ‘हाउसफुल 5’ जैसी उनकी फिल्में कुछ कमाल नहीं दिखा पाईं.
वर्ष 2024 में ‘स्त्री 2’, ‘भूलभुलैया 3’ और ‘सिंघम अगेन’ समेत कुल छह हिंदी फिल्में सौ करोड़ से अधिक का बिजनेस कर पाईं, जबकि 2023 में सौ करोड़ से ज्यादा का बिजनेस करने वाली हिंदी फिल्मों की संख्या सोलह थी. लगभग 9.6 करोड़ की सदस्यता वाला ओटीटी प्लेटफॉर्म मासिक सौ-दो सौ रुपए में बहुत कुछ दिखाता है, जो बहुत ही सस्ता सौदा है.
वर्ष 2023 में 400 फिल्में थियेटर की बजाय ओटीटी पर आईं, जो 2022 की तुलना में 30 फीसदी अधिक था. सिनेमाघरों में बॉलीवुड के इस खालीपन को प्रभास और एनटीआर जूनियर जैसे दक्षिण भारतीय सितारे भर रहे हैं, जबकि मलयालम और गुजराती फिल्मों की बाजार हिस्सेदारी बढ़ी है. दूसरी ओर, दक्षिण भारतीय फिल्में धमाका कर रही हैं.
‘पुष्पा 2’ के डब किए गए हिंदी संस्करण ने 889 करोड़ का, ‘कल्कि 2898 एडी’ ने 550 करोड़ का और ‘देवरा’ ने 300 करोड़ का बिजनेस कर बॉलीवुड की बेहतरीन फिल्मों को कहीं पीछे छोड़ दिया. हालांकि 567 करोड़ का बिजनेस कर छावा ने जताया कि बॉलीवुड अब भी अच्छी फिल्में दे सकता है, इस फिल्म में सामने आया मराठी गौरव दक्षिण भारतीय सिनेमा की सांस्कृतिक मजबूती से मिलता है.
जावेद अख्तर के मुताबिक, बॉलीवुड के शहरी संभ्रांतों की तुलना में अल्लू अर्जुन जैसे सांवले दक्षिण भारतीय अभिनेता ज्यादातर दर्शकों से सीधे जुड़ते हैं. फैशन और ग्लैमर को बेचने का बॉलीवुड का फोकस ग्रामीण दर्शकों को इन फिल्मों से दूर कर रहा है. राजनीतिक विचारधारा भी बॉलीवुड की फिल्मों के पिटने का एक कारण है.
कंगना की ‘इमरजेंसी’ और ‘द कश्मीर फाइल्स’ में राष्ट्रवादी स्वर हैं, लेकिन दर्शकों ने इन्हें खारिज किया. ऐसे ही शाहरुख और आमिर खान की फिल्मों को हिंदुत्ववादी समर्थक पसंद नहीं कर रहे. दीपिका पादुकोण, अक्षय कुमार और कंगना रनौत द्वारा ऑपरेशन सिंदूर की सराहना करने के बावजूद इन सितारों की फिल्में हिट नहीं हो रहीं, क्योंकि दर्शक विचारधारा पर आधारित फिल्में खारिज कर दे रहे हैं.
थकी हुई कहानियों, प्रेरित कर पाने में अक्षम धुनों और शहरी संभ्रांतों के बरक्स हिंदी प्रदेश की बड़ी आबादी के बीच के फर्क के कारण बॉलीवुड का सितारा अस्त होने को है. सिनेमाघरों में जाने वालों का आंकड़ा 2018 के 1.6 अरब से घटकर 2025 में 80 करोड़ रह गया.
अगर मुंबई अपनी नियति को भांपने में विफल रहती है तो बिल्कुल संभव है कि 2035 में बॉलीवुड भूतिया शहर में तब्दील हो जाए. तब तक सिंगल स्क्रीन पूरी तरह गायब हो जाएगी, मल्टीप्लेक्स के स्क्रीनों में दक्षिण की हिट फिल्में दिखाई जाएंगी और हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार यूट्यूब में ही रह जाएंगे.