तर्क, प्रमाण और अनुभव की कसौटियों पर खरे उतरने वाले व्याकरण, न्याय, आयुर्वेद, योग, नाट्यशास्त्र और ज्योतिष आदि के अन्यान्य ज्ञान क्षेत्रों में उपलब्ध सामग्री मनुष्य मात्र की विरासत है जिसका संरक्षण और संवर्धन वरीयता के साथ होना चाहिए. भारतीय संस्कृत ...
तीन महीनों से चल रहे आंदोलन और प्रदर्शन के दौर को सभी देखते रहे, पर वह ऐसा मोड़ लेगा, यह अप्रत्याशित था. इस पर जरूर आश्चर्य होता है कि सरकारी खुफिया महकमे को इसकी भनक तक नहीं थी या फिर वह सूचना की अनदेखी कर गया. ...
आज राजनीतिक दलों और सरकारों के सामने यह एक बड़ा और महत्वपूर्ण प्रश्न खड़ा हो रहा है कि वे कहां तक और किस तरह स्वयं को जन सामान्य के लिए प्रासंगिक सिद्ध कर पा रहे हैं. सरकार और जनप्रतिनिधि होने का दावा करने वाले को जनता के लिए और उसकी दृष्टि में प्रास ...
चुनाव कराने के लिए आवश्यक व्यवस्था करने पर खर्च भी खूब बैठता है जो अंततोगत्वा जनता पर ही भारी पड़ता है. सरकारी अमले के लिए भी उनके अपने मूल दायित्व के साथ यह अतिरिक्त काम का बोझ होता है जिसके कारण चुनाव के दौरान अन्य दायित्वों की उपेक्षा होना स्वाभाव ...
इस तरह की कामचलाऊ व्यवस्था में जहां स्थानीय समस्याओं और देशज ज्ञान की उपेक्षा हो रही है, वहीं दूसरी ओर संस्थाओं के अनियंत्रित विस्तार से गुणवत्ता के नियंत्नण की समस्या भी खड़ी हो रही है. प्रचलित व्यवस्था में वर्षो से लगातार आ रहे तरह-तरह के व्यवधा ...
एक तकनीकी दस्तावेज के रूप में संविधान से परिचय और समझदारी सरल नहीं है. इससे आम आदमी इससे दूरी बनाए रखता है. दूसरी ओर राजनीति के चतुर सुजान जाने-अनजाने इसके प्रावधानों की मनचाही व्याख्या भी करते रहते हैं. ...
मूलभूत समस्या यह है कि संविधान की जानकारी कौन कहे, उसकी सामान्य साक्षरता भी आम आदमी को ही नहीं, पढ़े-लिखे लोगों को भी नहीं है. एमपी और एमएलए जैसों को ही नहीं, मंत्नी पद का दायित्व संभालने वालों में भी इसकी कमी है. इसके चलते अक्सर अर्थ का अनर्थ होता र ...