दुर्भाग्य से, धार्मिक होना सांप्रदायिक (कम्युनल) माना जाने लगा है। व्युत्पत्ति की दृष्टि से धर्म अस्तित्व के गुणों या मूल स्वभाव अथवा प्रकृति को व्यक्त करता है जो धारण करने/ होने/ जीने/ अस्तित्व को रेखांकित करते हैं। इस तरह यह भी कह सकते हैं कि धर्म ...
महर्षि पतंजलि यदि योग को चित्त वृत्तियों के निरोध के रूप में परिभाषित करते हैं तो उनका आशय यही है कि बाहर की दुनिया में लगातार हो रहे असंयत बदलावों को अनित्य मानते हुए अपने मूल अस्तित्व को उससे अलग करना क्योंकि वे बदलाव और ‘टैग’ तो बाहर से आरोपित हैं ...
सोशल मीडिया का वास्तविक और मूर्त रूप इंटरनेट और मोबाइल के आने और उनके प्रसार के बाद जिस तरह है उसने जीने का सलीका ही उलट-पलट दिया है। जीवन के साथ उसका रिश्ता जीवन के लगभग सभी आयामों में फैलता-पसरता गया है। ...
भारत की एकता भाषा पर ही नहीं टिकी है परंतु प्राचीन इतिहास में भाषिक विभिन्नता राष्ट्रीय एकता के रास्ते कभी बाधा रही हो ऐसा उल्लेख नहीं मिलता है। किसी भी समाज में शिक्षा को सब तक पहुंचाना देश की मानव-क्षमता के पूर्ण और प्रभावी उपयोग के लिए बेहद जरूरी ...
स्वतंत्रता के यज्ञ में आहुति देने वाले वीर पूरब, पश्चिम, उत्तर, और दक्षिण हर ओर से आए थे। वे हर धर्म और जाति के थे और देश के साथ उनका लगाव उन्हें जोड़ रहा था। उनके सपनों का भारत एक समग्र रचना है। ...
पूरी दुनिया में 22 अप्रैल को 'अर्थ डे' के तौर पर मनाया जाता है। पृथ्वी को आने वाली पीढ़ियों के लिए कैसे बचाया जाए और इसके संसाधनों को कैसे भविष्य के लिए बचाया जा सके, ये इसी मसले पर बात करने का दिन है। ...
दिल्ली जैसे प्रतिष्ठित केंद्रीय विश्वविद्यालय और ऐसे ही अनेक संस्थानों में अध्यापकों के हजारों पद लंबे समय से खाली पड़े हैं और अतिथि’ (एडहॉक/ गेस्ट) अध्यापकों के जरिए जैसे-तैसे काम निपटाया जा रहा है. ...
पुराण की मानें तो देवता भी इस भूमि पर जन्म लेने की स्पृहा रखते हैं. आधुनिक इतिहास की दृष्टि से इसका महत्व जो भी हो पर उपलब्ध साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्य ‘भारत’ नामक एक सप्राण रचना की पुष्टि करते हैं जो यहां के निवासियों के मन-प्राण में अभी भी जी ...