ब्लॉगः मानसिक जगत को शांत और स्थिर रखने के लिए जरूरी है योग

By गिरीश्वर मिश्र | Published: June 21, 2022 12:54 PM2022-06-21T12:54:52+5:302022-06-21T12:56:47+5:30

महर्षि पतंजलि यदि योग को चित्त वृत्तियों के निरोध के रूप में परिभाषित करते हैं तो उनका आशय यही है कि बाहर की दुनिया में लगातार हो रहे असंयत बदलावों को अनित्य मानते हुए अपने मूल अस्तित्व को उससे अलग करना क्योंकि वे बदलाव और ‘टैग’ तो बाहर से आरोपित हैं, आत्म पर आरोपित हैं न कि (वास्तविक) आत्म हैं।

Blog Yoga is necessary to keep the mental world calm and stable | ब्लॉगः मानसिक जगत को शांत और स्थिर रखने के लिए जरूरी है योग

ब्लॉगः मानसिक जगत को शांत और स्थिर रखने के लिए जरूरी है योग

आज के सामाजिक जीवन को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि हर कोई सुख, स्वास्थ्य, शांति और समृद्धि के साथ जीवन में प्रमुदित और प्रफुल्लित अनुभव करना चाहता है। इसे ही जीवन का उद्देश्य स्वीकार कर मन में इसकी अभिलाषा लिए आत्यंतिक सुख की तलाश में सभी व्यग्र हैं और सुख है कि अक्सर दूर-दूर भागता नजर आता है। आज हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब हर कोई किसी न किसी आरोपित पहचान की ओट में मिलता है। दुनियावी व्यवहार के लिए पहचान का टैग चाहिए, पर टैग का उद्देश्य अलग-अलग चीजों के बीच अपने सामान को खोने से बचाने के लिए होता है। टैग जिस पर लगा होता है उसकी विशेषता से उसका कोई लेना-देना नहीं होता। आज हमारे जीवन में टैगों का अम्बार लगा हुआ है और टैग से जन्मी ढेरों भिन्नताएं हम सब ढोते चल रहे हैं। मत, पंथ, पार्टी, जाति, उपजाति, नस्ल, भाषा, क्षेत्र, इलाका समेत जाने कितने तरह के टैग भेद का आधार बन जाते हैं और हम उसे लेकर एक-दूसरे के साथ लड़ने पर उतारू हो जाते हैं। हम भूल जाते हैं कि टैग से अलग भी हम कुछ हैं और इनसे इतर हमारा कोई वजूद है। पर बाहर दिखने वाला प्रकट रूप ही सब कुछ नहीं होता। कुछ आंतरिक और सनातन स्वभाव भी है जो जीवन और अस्तित्व से जुड़ा होता है।

हमारी पहचान (टैग) हमें दूसरों से अलग करती है और सार्वभौमिक मनुष्यता और चैतन्य के बोध से दूर ले जाती है। धरती पर रहने वाले सभी मनुष्य शारीरिक बनावट में एक से प्राणी हैं। सभी जन्म लेते हैं, जीते हैं और अंत में मृत्यु को प्राप्त करते हैं। जीवन-काल में हममें चेतना होती है। हम सभी पीड़ा और दुःख महसूस करते है। जो भौतिक सूचना हमारी आतंरिक और बाह्य ज्ञानेंद्रियों से मिलती है, हम सब उसका निजी अनुभव करते हैं। विकसित मस्तिष्क के चलते मनुष्य के पास तर्क, बुद्धि, संवेग, कल्पना और स्मृति की क्षमताएं भी होती हैं जिनके साथ संस्कार बनते हैं। इन सबके साथ मनुष्य भावनाओं और संवेगों की अनोखी दुनिया में भी जीता है।

दुर्भाग्य से बाहर की दुनिया का प्रभाव इतना गहरा और सबको ढंक लेने वाला होता है कि वही हमारा लक्ष्य या साध्य बन जाता है और उसी से ऊर्जा पाने का भी अहसास होने लगता है। हम अपनी अंतश्चेतना को भूल बैठते हैं। मनन करने की क्षमता का माध्यम और परिणाम आत्म-नियंत्रण से जुड़ा हुआ है। भारतीय परंपरा में आत्म-नियंत्रण पाने के उपाय के रूप में अभ्यास और वैराग्य की युक्तियां सुझाई गई हैं। इसमें अभ्यास आंतरिक है, वैराग्य बहिर्मुखी। अर्थात अंदर और बाहर दोनों का संतुलन होना आवश्यक है। अभ्यास का आशय योग का अभ्यास है जो हमें अपने मानसिक जगत को शांत और स्थिर रखने के लिए जरूरी है। दूसरी ओर बाह्य जगत के साथ अनुबंधित होने से बचाने के लिए वैराग्य (या अनासक्ति) भी अपनानी होगी। वस्तुतः दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और एक के बिना दूसरा संभव नहीं है। बाहर की दुनिया ही यदि अंदर भी भरी रहे तो अंतश्चेतना विकसित नहीं होगी। इसलिए अभ्यास (योग) वैराग्य का सहायक या अनुपूरक समझा जाना चाहिए। इसके लिए विवेक की परिपक्वता चाहिए जिसके लिए जगह बनानी होगी। आज के दौर में अंतश्चेतना और बाह्य चेतना दोनों की ओर ध्यान देना जरूरी है। आनंद की तलाश तभी पूरी हो सकेगी जब हम अपने ऊपर नियंत्रण करें और परिवेश के साथ समर्पण के साथ उन्मुख न हों बल्कि संतुलित रूप से जुड़ें।

महर्षि पतंजलि यदि योग को चित्त वृत्तियों के निरोध के रूप में परिभाषित करते हैं तो उनका आशय यही है कि बाहर की दुनिया में लगातार हो रहे असंयत बदलावों को अनित्य मानते हुए अपने मूल अस्तित्व को उससे अलग करना क्योंकि वे बदलाव और ‘टैग’ तो बाहर से आरोपित हैं, आत्म पर आरोपित हैं न कि (वास्तविक) आत्म हैं। आदि शंकराचार्य ने इन्हें उपाधि कहा है जो आती-जाती रहती है। मिथ्या किस्म की चित्त-वृत्तियां जिनको महर्षि पतंजलि ने क्लिष्ट चित्त-वृत्ति की श्रेणी में रखा है, भ्रम और अयथार्थ को जन्म देती हैं। तब हम उनके प्रभाव में स्वयं को वही (भ्रम रूप/टैग!) समझने लगते हैं। इससे बचने का उपाय योग है और उससे द्रष्टा अपने स्वरूप में वापस आ पाता है। योग द्वारा आत्मनियंत्रण स्थापित होना हमारी घर वापसी की राह है। तब हम अपने में स्थित हो पाते हैं यानी स्वस्थ होते हैं। योग को अपनाना अपने समग्र अस्तित्व की तलाश है जो हमारे उत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त करता है।

Web Title: Blog Yoga is necessary to keep the mental world calm and stable

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