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तालिबान के 'बुरका फरमान' के खिलाफ महिलाओं ने काबुल में की आवाज बुलंद, बोलीं- "आखिर क्यों उन्हें चेहरे और शरीर को ढंकने के लिए मजबूर किया जा रहा है"

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: May 10, 2022 16:54 IST

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में प्रदर्शनकारी महिलाओं ने बुरका फरमान का विरोध करते हुए कहा कि आखिर क्यों उन्हें सार्वजनिक रूप से अपने चेहरे और शरीर को पूरी तरह से ढंकने के लिए मजबूर किया जा रहा है। प्रदर्शनकारी महिलाएं काबुल की सड़कों पर "जस्टिस, जस्टिस का नारा लगा रही थीं।

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ठळक मुद्देअफगानिस्तान में महिलाओं ने बुरके लिए जारी हुए तालिबान हुक्म के खिलाफ आवाज बुलंद की आखिर क्यों उन्हें सार्वजनिक रूप से चेहरे और शरीर को ढंकने के लिए मजबूर किया जा रहा हैप्रदर्शनकारी महिलाएं काबुल की सड़कों पर "जस्टिस, जस्टिस का नारा लगा रही थीं

काबुल: अफगानिस्तान में महिलाओं ने तालिबान शासन के खिलाफ आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी है। जानकारी के मुताबिक राजधानी काबुल में मंगलवार को करीब दर्जनों महिलाओं ने एक साथ तालिबानी शासन के बुर्का फरमान का जमकर विरोध किया।

प्रदर्शनकारी महिलाओं ने खुद को इंसान बताते हुए इस बात का विरोध किया कि आखिर क्यों उन्हें सार्वजनिक रूप से अपने चेहरे और शरीर को पूरी तरह से ढंकने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

प्रदर्शनकारी महिलाएं काबुल की सड़कों पर "जस्टिस, जस्टिस का नारा लगा रही थीं और कई महिलाओं ने बुरका फरमान के विरोध में अपना अपना चेहरा भी खुला रखा था।

प्रदर्शनकारी महिलाओं का कहना था कि बुर्का हमारा हिजाब नहीं है। आखिर हम क्यों खुद को पूरी तरह छुपाकर ही महफूज रह सकती हैं। हमें इस फरमान से बेहद आपत्ति है और इस फरमान को वापस लिया जाना चाहिए।

वहीं महिलाएं जब जुलूस की शक्ल में काबुल की सड़कों पर चल रही थीं तो तालिबान लड़ाकों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। इसके अलावा तालिबानी सुरक्षाकर्मियों ने इस घटना को कवर कर रहे पत्रकारों को भी रिपोर्टिंग करने से रोक दिया।

मालूम हो कि अफगानिस्तान के सर्वोच्च नेता और तालिबान प्रमुख हिबतुल्ला अखुंदजादा ने बीते हफ्ते ऐलान किया था कि तालिबानी शासन में महिलाएं तभी घर के बाहर कदम रखें, जब वो सिर से पैर तक पूरी तरह से ढकी हों।

उन्होंने इस्लामिक परंपरा का हवाला देते हुए कहा कि हमारे मजहब के लिए यही आदर्श होगा कि महिलाएं पारंपरिक बुर्के में ही घर की दहलीज को पार करें।

अफगानिस्तान में लागू हुए इस तालिबानी फरमान से महिलाओं को मिले लगभर वो सारे अधिकार तालिबानी शासन ने छिन लिये। जिसे अमेरिका ने साल 2001 में तालिबान शासन को हराकर कब्जे के बाद महिलाओं को दिये थे।

इसके अलावा तालिबान शासन के प्रमुख अखुंदज़ादा के द्वारा जारी किये गये उस फरमान की भी अंतरराष्ट्रीय जगत में बहुत निंदा हुई थी, जिसमें अखुंदज़ादा ने आदेश दिया था, "जिन महिलाओं के पास कोई महत्वपूर्ण कार्य न हो वो घर के बाहर कदम न रखें।"

बुरका फरमान के विरोध में प्रदर्शन कर रही महिलाओं में शामिल सायरा समा अलीमियार ने कहा, "आखिर हम भी इंसान हैं और उसी तरह से जीना चाहते हैं, न कि कोई हमें जानवर की तरह घर के एक कोने में बंदी बनाकर रखे और हम पर सितम करे।"

वहीं तालिबानी शासन की अगुवाई कर रहे अखुंदज़ादा ने बुरका फरमान के साथ तालिबानी अधिकारियों को यह आदेश भी दिया है कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी उनके हुक्म की तामील नहीं करता है और उसके घर की महिलाएं बुरका न पहने तो उस कर्मचारियों को फौरन बर्खास्त कर दें।

मालूम हो कि तालिबान ने अफगानिस्तान में दो अलग-अलग कार्यकालों के दौरान करीब 20 सालों में महिलाओं की शिक्षा, उनके द्वारा किये जा रहे सार्वजनिक कार्यों सहित अन्य तमाम सामाजिक व्यवस्था में हाशिये पर ढकेल दिया है। वहीं अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों में कई महिलाएं आज भी बुर्का पहनने के रिवाज का पालन कर रही हैं।

कई कई धार्मिक विद्वानों का मत है कि बुरके का इस्लाम से कोई संबंध नहीं है और यह तालिबान द्वारा महिलाओं के शोषण का एक जरिया मात्र है।

बीते साल अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय जगत से वादा किया था कि वो अपने पिछले शासनकाल की तरह कठोर इस्लामी शासन को लागू नहीं करेगा लेकिन वाजे के बावजूद तालिबान उसी रास्ते की ओर बढ़ रहा है, जहां से कट्टर इस्लामिक सोच का जन्म होता है।

टॅग्स :तालिबानTaliban Talibanअफगानिस्तानAfghanistanKabul
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