मशहूर प्रगतिशील लेखिका फहमीदा रियाज़ का निधन हो गया। वो 72 वर्ष की थी और पिछले कुछ महीने से बीमार थीं। साहित्य जगत में नारीवादी योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। वो मानवाधिकारों के लिए भी सक्रिय रहीं। उनके 15 से ज्यादा फिक्शन और कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। फहमीदा के निधन से उर्दू साहित्य जगत में शोक व्याप्त है।
फहमीदा रियाज़ की पहली साहित्यिक किताब 1967 में प्रकाशित हुई थी जिसका नाम 'पत्थर की जुबान' था। उनके अन्य कविता संग्रह में धूप, पूरा चांद, आदमी की ज़िंदगी इत्यादि शामिल हैं। उन्होंने कई उपन्यास भी लिखे जिनमें जिंदा बहर, गोदवरी और करांची प्रमुख हैं। उनकी कविताओं में क्रांति और बगावत की झलक मिलती है।
जब उनका दूसरा कविता संग्रह बदन दरीदा 1973 में प्रकाशित हुआ तो उनपर कविता में वासना और अश्लीलता के इस्तेमाल के आरोप लगे। उस वक्त तक ऐसे विषय महिला लेखिकाओं से लिए दूर की कौड़ी माने जाते थे। उन्होंने अनुवाद के जरिए भी उर्दू साहित्य को समृद्ध किया है।
फहमीदा रियाज का जन्म मेरठ में जुलाई 1946 में एक साहित्यिक परिवार में हुआ था। उन्होंने जीवन भर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। जनरल जिया-उल-हक के शासन काल में वो 6 साल भारत में रही।
1988 में पहली पीपीपी सरकार में फहमीदा को नेशनल बुक काउंसलि ऑफ पाकिस्तान की मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया। बेनजीर भुट्टो के दूसरे कार्यकाल के दौरान वो संस्कृति मंत्रालय से भी जुड़ी रही। 2009 में उन्हें उर्दू डिक्शनरी बोर्ड का मुख्य संपादक नियुक्त किया गया था।