नई दिल्ली: राष्ट्रीय संसदों पर वैश्विक डेटाबेस आईपीयू-पारलाइन के आंकड़ों के अनुसार, संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत की स्थिति 150 देशों से भी खराब है। 2024 के लोकसभा चुनाव में 74 महिला सांसद चुनी गईं, जो संसद में कुल सदस्यों की संख्या का 13.6 प्रतिशत है। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, 14 पार्टियों में महिलाएँ सांसद के रूप में चुनी गई हैं, जिसमें भाजपा सबसे आगे है, जहाँ 31 महिला सांसद हैं। इसके बाद कांग्रेस में 13 महिला सांसद और टीएमसी में 11 महिला सांसद हैं।
अंतर-संसदीय संघ (आईपीयू) -पारलाइन, जो राष्ट्रीय संसदों पर एक निःशुल्क संसाधन है, ने मई 2024 में एक रैंकिंग प्रकाशित की, जो संसदों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को दर्शाती है। 2019 में, 14.7 प्रतिशत सांसद महिलाएँ थीं, जिससे वैश्विक सूचकांक में भारत की रैंकिंग 145 हो गई। 2019 में महिला सांसदों की संख्या भारत में अब तक की सबसे अधिक थी। मई 2024 तक, महिला सांसदों की संख्या में गिरावट आई है, जिससे भारत की रैंकिंग गिरकर 150 हो गई है।
भारत में महिला सांसदों की वैश्विक औसत 26.5 प्रतिशत तथा दक्षिण और मध्य एशिया की औसत 19 प्रतिशत से भी कम है। भारत यूएई, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और यूके जैसे देशों से पीछे है। रवांडा, जिसकी संसद में महिला सांसदों की संख्या 61.3 प्रतिशत है, सूचकांक में सबसे ऊपर है। एशिया में भारत के पड़ोसी देश भी बेहतर स्थिति में हैं, जहाँ पाकिस्तान 116वें स्थान पर, चीन 89वें स्थान पर और नेपाल 55वें स्थान पर है।
2023 में, भारत ने महिला आरक्षण विधेयक (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) पारित किया, जो लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करेगा। परिसीमन और जनगणना आवश्यकताओं के कारण कम से कम 2029 तक यह विधेयक लागू हो जाएगा। यूएन वीमेन की भारत प्रतिनिधि सुसान फर्ग्यूसन के अनुसार, यह कोटा संसद में महिलाओं की बेहतर भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है। सबसे ज़्यादा महिला सांसदों वाले देश रवांडा में भी निर्वाचित पदों पर महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण है।