चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए स्वीकार्य समाधान पर दिया जोर
By भाषा | Published: January 28, 2021 04:35 PM2021-01-28T16:35:17+5:302021-01-28T16:35:17+5:30
(के जे एम वर्मा)
बीजिंग, 28 जनवरी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की राह में भारत के लिए अड़ंगा डालने वाले चीन ने संस्था में सुधार को लेकर संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों के बीच स्वीकार्य समाधान का आह्वान किया है।
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने बुधवार को कहा कि संयुक्त राष्ट्र सदस्यों के नेतृत्व में सुधार दिखना चाहिए। इसके लिए सघन लोकतांत्रिक वार्ता का पालन करते हुए और सर्वसम्मति बनाकर सभी पक्षों के लिए स्वीकार्य समाधान निकालना चाहिए।
जोआना वरोनेका तथा अलया अहमद सैल अल थानी के साथ वांग ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75 वें सत्र के लिए यूएनएससी सुधार पर अंतरसरकारी वार्ता (आईजीएन) की सह अध्यक्षता करते हुए यह बात कही।
वरोनेका और अल थानी संयुक्त राष्ट्र में क्रमश: पोलैंड और कतर के स्थायी प्रतिनिधि हैं।
सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए ‘जी-4’ समूह बनाने वाले भारत, जर्मनी, ब्राजील और जापान ने संयुक्त राष्ट्र की शक्तिशाली संस्था में लंबित सुधारों को आगे बढ़ाने के वास्ते निर्णायक कदम का आह्वान किया है।
पिछले साल जी-4 के मंत्रियों ने संयुक्त राष्ट्र के 75 वें सत्र के दौरान यूएनएससी सुधारों के लिए निर्णायक कदम उठाए जाने का आह्वान किया था। इस बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर भी थे।
चीन के विदेश मंत्रालय ने पिछले साल जी-4 के मंत्रियों के आह्वान पर कहा था कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों में इस पर आम सहमति नहीं है। वरोनेका और अल थानी के साथ बैठक में वांग ने कहा कि सुरक्षा परिषद का सुधार संयुक्त राष्ट्र के भविष्य और इसके सदस्य देशों के महत्वपूर्ण हितों से संबंधित है।
उन्होंने कहा कि सुधार में निष्पक्षता और न्याय दिखना चाहिए, विकासशील देशों की आवाज और भागीदारी बढ़नी चाहिए। छोटे और मझोले आकार के देशों को भी सुरक्षा परिषद की निर्णय लेने वाली प्रक्रिया में हिस्सेदारी का मौका मिलना चाहिए तथा अफ्रीका के खिलाफ ऐतिहासिक अन्याय को सुधारना चाहिए।
‘शिन्हुआ’ समाचार एजेंसी के मुताबिक उन्होंने कहा कि व्यवस्थित तरीके से सुधार होना चाहिए और सदस्य राष्ट्रों की एकजुटता की रक्षा होनी चाहिए।
भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में सुधार की मांग कर रहा है और उसका कहना है कि 1945 में गठित संस्था 21 वीं सदी की हकीकत को पूरा नहीं करती है।
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