सूरत:गुजरात की एक महिला ने राज्य के उच्च न्यायालय से मांग की है कि वह सरकार को उसे नो कास्ट नो रिलीजन का प्रमाणपत्र जारी करने का आदेश दें। यह महिला सूरत की रहने वाली 36 वर्षीय काजल गोविंदभाई मंजुला है। जिन्होंने अपने वकील धर्मेश गुर्जर के द्वारा इस संबंध में कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है। याचिका में यह कहा गया है कि मद्रास हाई कोर्ट के स्नेहा प्रथिबराजा केस की तर्ज पर उन्हें भी 'नो कास्ट नो रिलीजन' सर्टिफिकेट जारी किया जाए।
क्यों चाहती हैं मंजुला नो कास्ट नो रिलीजन सर्टिफिकेट?
दरअसल काजल मंजुला मूल रूप से गुजरात के एक ब्राह्मण परिवार से आती हैं, जिन्होंने नो कास्ट नो रिलीजन सर्टिफिकेट के लिए 30 मार्च को गुजरात हाईकोर्ट में अपनी याचिका दाखिल की थी। मंजुला का कहना है कि समाज में जाति व्यवस्था के चलते उन्हें कई सारी समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।
अपने इस क्रांतिकारी विचार से देश को देना चाहती हैं उदाहरण
कई बार उनके साथ जाति के कारण भेदभाव पूर्ण व्यवहार किया गया है। याचिका में आगे कहा कि याचिकाकर्ता राजगोर ब्राह्मण समाज से आती है उसके बाद भी उन्हें समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ा है। मंजुला ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि वह भविष्य में अपनी जाति, उप-जाति, धर्म का विवरण कहीं नहीं चाहती हैं। इस क्रांतिकारी विचार के माध्यम से मंजुला देश को एक उदाहरण देना चाहती हैं।
पहले छोड़ चुकी हैं अपना गोत्र
यही वजह है कि अब वह अपने साथ में धर्म और जाती की पहचान नहीं रखनी चहाती है। इसलिए मंजुला ने इस संबंध में कोर्ट से यह मांग की है कि अदालत सरकार को उन्हें नो कास्ट नो रिलीजन सर्टिफिकेट प्रमाणपत्र जारी करने का आदेश दे। याचिका में उन्होंने बताया है कि इससे पहले वह गुजरात सरकार के राजपत्र में अगस्त 2021 में गोत्र ‘शीलू’ हटाने के लिए अपना नाम भी निकलवा चुकी हैं।