गुजरात के इस मस्जिद की हिलती हैं मीनारें, इंजीनियर्स और आर्किटेक्ट भी हैं हैरान
By मेघना वर्मा | Updated: January 2, 2018 16:57 IST2018-01-02T14:57:18+5:302018-01-02T16:57:21+5:30
इस मस्जिद की सिलेंडर के आकार की मीनारें हिलाने पर हिल जाती हैं, लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है कि आज तक कोई भी प्राकृतिक आपदा इस मस्जिद को हानि नहीं पहुंचा सकी है।

गुजरात के इस मस्जिद की हिलती हैं मीनारें, इंजीनियर्स और आर्किटेक्ट भी हैं हैरान
हमारे देश का इतिहास जितना पुराना है उतनी ही पुरानी है यहां की मान्यता। सिर्फ जाति या धर्म ही नहीं बल्कि यहां की ऐतिहासिक इमारतों से भी जुड़ी बहुत सी मान्यताएं और उनकी बनावट ऐसी है जो लोगों को 21 वीं सदी में भी अचम्भे में डाल देती हैं। ऐसा ही कुछ अचम्भित कर देने वाला निर्माण है अहमदाबाद स्थित सीदी बशीर मस्जिद का निर्माण। जिसे झूलती मीनार के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण यह है कि मस्जिद की किसी भी मीनार को हिलाने पर दूसरी वाली अपने आप कुछ अंतराल पर हिलने लगती है। ये झूलती मीनारें इंजीनियर्स, आर्किटेक्ट और लोगों के लिए आज भी रहस्य बनी हुई हैं।
बताया जाता है कि ब्रिटिश काल में इस रहस्य को समझने के लिए ब्रिटेन से इंजीनियर्स को बुलाया गया था। मीनारों के आसपास खुदाई भी की गई थी, लेकिन सारी कोशिशें बेकार रहीं। जानकर आश्चर्य होगा कि अनेकों बार भूकंप के झटकों से यहां की जमीन हिली, लेकिन ये मीनारें जस की तस खड़ी रहीं।
मस्जिद का निर्माण
इस मस्जिद का निर्माण सारंग ने कराया था, जिसने सारंगपुर की स्थापना की थी। सन् 1461-64 के बीच बनी इस मस्जिद के उस समय सीदी बशीर पर्यवेक्षक थे। उनकी मृत्यु के बाद इसी मस्जिद के नजदीक उनको दफनाया गया, जिसके कारण इस मस्जिद का नाम सीदी बशीर के नाम से जुड़ गया।
क्या है रहस्य
कई वर्षों से इन मीनारों के हिलने का कारण खोजने की कोशिश जारी है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि ये मीनारें अनजाने में ही झूलने वाली बन गईं, जिसे आगे चलकर प्रमाणित भी किया गया। एक शोध के द्वारा निकले निष्कर्ष में पाया गया कि ये मीनारें लचकदार पत्थरों के द्वारा बनाई गई हैं। जिन्हें बालू से आपस में जोड़ा गया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा पत्थर सबसे पहले राजस्थान में पाया गया था। इस रिपोर्ट में लिखा गया है कि इस प्रकार के पत्थर कुदरती तौर पर फेलस्पार के घुल जाने से बनते हैं। फेलस्पार एक ऐसा पदार्थ हैं, जो हल्के से हल्के एसिड में घुल जाता है।
जब रासायनिक प्रक्रिया में कुछ धातुओं का भस्म पानी के संपर्क में आता है तो लवण और एसिड पैदा करते हैं, यही एसिड फेलस्पार को घोलने के लिए पर्याप्त है। इस तरह से बलुआ पत्थरों के कणों के बीच खाली जगह उत्पन्न हो जाती है। इसी कारण बलुआ पत्थर लचकदार हो जाता है। पत्थर का यह लचीलापन उसके कणों के साइंस पर आधारित है। पत्थर में जितने बड़े कण मौजूद होंगे, पत्थर उतना ही ज्यादा लचीला होगा।
इनकी संरचना में ही है इनके हिलने का राज
बता दें कि इस मस्जिद की मीनारें सिलेंडर के आकार की बनी हैं, जो इनके हिलने में मदद करती हैं। यही कारण है कि जब इन्हें हिलाने के लिए ताकत लगाई जाती है तो शक्ति को रोकने के लिए इनमें कोई ऐसा आधार नहीं है, जैसा इमारतों में होता है। इन मीनारों की वास्तुकला भी इसके हिलने में मदद करती है। इन सिलेंडरनुमा मीनारों के अंदर सीढ़ियां सर्पाकार हैं। इसके पायदान पत्थरों को गढ़कर बनाए गए हैं। इनका एक किनारा मीनार की दीवार से जुड़ा है तो दूसरा छोर मीनार के बीचों-बीच एक पतले स्तंभ की रचना करता है। पत्थरों की गढ़ाई बेहतरीन है। आज भी इनके जोड़ खुले नहीं हैं।
इससे यह बात साबित होता है कि निर्माण में कोई कमी नहीं है। जब मीनारों पर धक्का लगाया जाता है तो उसका असर दो दिशाओं पर होता है, एक तो ताकत लगाने की दिशा के विपरीत और दूसरा सर्पाकार सीढ़ियों की दिशा में नीचे से ऊपर की ओर, और यही कारण है कि मीनार आगे-पीछे हिलने लगती हैं।