Sita Navami 2023: सीता नवमी व्रत से मिलता है अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त-पूजा विधि और महत्व
By रुस्तम राणा | Updated: April 25, 2023 18:13 IST2023-04-25T18:13:54+5:302023-04-25T18:13:54+5:30
इस बार सीता नवमी का पावन पर्व 29 अप्रैल 2023 को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस पावन तिथि पर राजा जनक की पुत्री माता सीता का प्राकट्य हुआ था, उस दिन विधि-विधान से देवी सीता की पूजा करने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

Sita Navami 2023: सीता नवमी व्रत से मिलता है अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त-पूजा विधि और महत्व
Sita Navami 2023: सीता नवमी को देवी सीता की जयंती के रूप में मनाया जाता है। माँ सीता भगवान श्रीराम की पत्नी थी। यह पर्व रामनवमी के एक महीने बाद मनाया जाता है। यह दिन जानकी नवमी के नाम से भी प्रसिद्ध है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, सीता नवमी वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है। इस बार सीता नवमी का पावन पर्व 29 अप्रैल 2023 को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस पावन तिथि पर राजा जनक की पुत्री माता सीता का प्राकट्य हुआ था, उस दिन विधि-विधान से देवी सीता की पूजा करने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
सीता नवमी शुभ मुहूर्त 2023
नवमी तिथि प्रारंभ - 28 अप्रैल 2023 को सायंकाल 04:01 बजे
नवमी तिथि का समापन - 29 अप्रैल 2023 को सायंकाल 06:22 बजे
सीता नवमी की पूजा का शुभ मुहूर्त - 29 अप्रैल को प्रात:काल 10:59 से दोपहर 01:38 बजे तक
सीता नवमी की पूजा विधि
प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठें और इसके बाद तन और मन से पवित्र होने के बाद अपने घर के ईशान कोण में एक चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर माता जानकी और भगवान राम की प्रतिमा या फोटो लगाएं। इसके बाद सियाराम को फल, फूल, चंदन, आदि अर्पित करें और फिर शुद्ध घी का दीया जलाएं और माता जानकी के मंत्र ‘ॐ सीतायै नमः’ का पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ जप करें। इसके अलावा सीता नवमी के दिन माता जानकी की पूजा में विशेष रूप से लाल रंग के फूल और श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें।
सीता जन्म की पहली पौराणिक कथा
माता सीता के जन्म को लेकर पौराणिक कथा प्रचलित हैं। कथा के अनुसार एक बार मिथिला राज्य में भयंकर सूखा पड़ गया था। जिसे देख राजा जनक बहुत परेशान थे। उस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें ऋषियों ने यज्ञ करने को कहा। यज्ञ के खत्म होने के बाद राजा जनक ने धरती पर हल भी चलाया।
मान्यता है कि जब राजा जनक हल चला रहे थे तभी अचानक उन्हें धरती में से सोने का संदूक मिला। संदूक में मिट्टी में लिपटी हुई एक सुंदर कन्या दिखी। राजा जनक ने उस कन्या को उठाकर हाथों में लिया। कन्या का स्पर्श होते ही उन्हें पिता प्रेम की अनुभूति हुई। राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने उस कन्या को अपनी पुत्री बनाने का निर्णय लिया और उसे 'सीता' का नाम दिया।