शरद पूर्णिमा 2018 : यहां जानें क्या है सही तिथी और क्यों चांद की रोशनी में रखकर खाई जाती है खीर
By मेघना वर्मा | Updated: October 17, 2018 10:02 IST2018-10-16T15:54:28+5:302018-10-17T10:02:38+5:30
Sharad Purnima Date & Time, Shubh Muhurt, Puja Vidhi, Significance in Hindi : मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन लंकापति रावण भी चांद की रोशनी को दर्पण के माध्यम से अपने नाभि पर ग्रहण करता था।

Sharad Purnima Date & Time, Shubh Muhurt, Puja Vidhi, Significance in Hindi
हिन्दू धर्म के अनुसार हर महीने आने वाली पूर्णिमा को हमेशा ही शुभ माना गया है मगर अश्विन मास की पूर्णिमा यानी शरद पूर्णिमा को सबसे उत्तम बताया जाता है। इस साल यह शरद पूर्णिमा 26 अक्टूबर को पड़ रही है। बताया जाता है कि इस दिन किया हुआ हर काम शुभ फल देता है साथ ही छोटे से उपाय आपकी बड़ी-बड़ी विपत्तियां भी टाल देते हैं। पौराणिक मान्याताओं के अनुसार ये वही दिन है जब मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन धन के प्राप्ति के योग भी बताए जाते हैं।
माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन का चांद से एक विशेष प्रकार की औषधि निकलती है जो आपके खाने के माध्यम से आपमें चली जाए तो कई तरह के रोगों से आपको मुक्ति मिल जाती है। आप भी जानिए क्या है शरद पूर्णिमा की तिथि, कहानी और इसका पौराणिक महत्व।
क्या है पौराणिक मान्यता
हिन्दू धर्म के लोग इस दिन को कोजागर व्रत के रूप में भी मनाते हैं। इसी दिन को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। माना जाता है कि इसी दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। मान्यता तो ये भी है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। इन पौराणिक कारणों की वजह से शरद पूर्णिमा का बेहद महत्व बताया जाता है। लोगों का मानना है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही चांद से अमृत झड़ता है जिसके सेवन से कई तरह की बीमारियां दूर होती है। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा के दिन लोग खीर बनाकर उसे चांद की रोशनी में रखते हैं फिर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
लंकापति रावण भी मिलती थी शक्ति
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन लंकापति रावण भी चांद की रोशनी को दर्पण के माध्यम से अपने नाभि पर ग्रहण करता था। इससे उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।
शरद पूर्णिमा व्रत विधि
बहुत से लोग शरद पूर्णिमा के दिन व्रत या उपवास भी करते हैं। इस दिन सुबह वह अपने इष्ट देव की पूजा करते हैं। इन्द्र और महालक्ष्मी की पूजा करके उनके सामने घी का दीपक जलाया जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को खीर का भोजन भी कराया जाता है। रात में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद भोजन करना चाहिए। आप चाहें तो खीर बनाकर उसे चांद की रोशनी में भी रख सकते हैं।