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Pitru Paksha: काशी के पिशाच मोचन कुंड पर क्यों होता है त्रिपिंडी श्राद्ध, जानिए यहां

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: September 11, 2022 1:49 PM

पिशाच मोचन कुंड काशी के लहुराबीर क्षेत्र में स्थित है। वैसे तो इस कुंड की महत्ता साल भर रहती है लेकिन पितृपक्ष में इसकी महत्ता विशेषतौर पर बढ़ जाती है क्योंकि यहां पर त्रिपिंडी श्राद्ध होता है।

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ठळक मुद्देमोक्षदायिनी काशी का पितृपक्ष में विशेष महत्व है क्योंकि यहां के पिशाचमोचन कुंड पर होता त्रिपिंडी श्राद्धमान्यता है कि यहां पर पिंडदान करने से अकाल मृत्यु प्राप्त हुए लोगों की आत्मा को मुक्ति मिल जाती है पिशाच मोचन कुंड का उल्लेख गरुड़ पुराण में भी मिलता है, जिसे विमलोदत्त कुंड भी कहा जाता है

वाराणसी: मोक्ष की नगरी काशी का पितृपक्ष में विशेष महत्व है। प्राचीन काशी में सैकड़ों की संख्या में कुंड या सरोवर हुआ करते थे। इन्हीं में से एक है पिशाच मोचन कुंड, जहां पर पितृपक्ष में होता है त्रिपिंडी श्राद्ध। पिशाच मोचन कुंड, काशी के लहुराबीर क्षेत्र में स्थित है। वैसे तो इस कुंड की महत्ता साल भर रहती है लेकिन पितृपक्ष में इसकी महत्ता विशेषतौर पर बढ़ जाती है।

पिशाच मोचन कुंड के बारे में मान्यता है कि यहां पर पिंडदान और तर्पण करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों की भटकती आत्माओं को मोक्ष मिलता है। इस कुंड पर पर एक पीपल का पेड़ है, जिसके बारे में मान्यता है कि अकाल मृत्यु से भटकती आत्माओं को यहीं पर विश्राम दिया जाता है।

पिशाच मोचन कुंड का उल्लेख गरुड़ पुराण में भी किया गया है। वहीं काशी खंड के मुताबिक पिशाच मोचन कुंड की उत्पत्ति गंगा के धरती पर आने से भी पहले से हुई है। पिशाच मोचन को विमलोदत्त कुंड भी कहते हैं। विमलोदत्त कुंड को सभी कुंडों में सुंदर और पुण्यदायिनी माना जाता है।

कहा जाता है कि यह कुंड रामावतार से भी पहले का है। पितृपक्ष में यहां प्रातःकाल से सूर्यास्त तक पितरों के तर्पण की पूजा विधि चलती है, जिससे पितरों को मुक्ति मिलती हैं। इस सिलसिले में एक कहावत बेहद प्रचलित है, "प्रयाग मुण्डे, काशी ढूंढे, गया पिण्डे" यानी प्रयागराज, काशी और गयाजी में किये गये पिंडदान से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

हिंदू मान्यता के अनुसार अकाल मृत्यु के विषय में कहा गया है कि मृतकों के स्वजनों को सबसे पहले पिशाच मोचन कुंड पर पिंडदान और तर्पण करना है, उसके बाद ही गयाजी में किया गया पिंडदान स्वीकार्य होता है। पिशाच मोचन कुंड पर पिंड दान और तर्पण क्रिया कराने वाले पुरोहितों के पास उनके जजमानो की बाकायदा बहिखाता रखी होती है।

यह जानकर थोड़ा अटपटा जरूर लगेगा या इसे आप अंध विश्वास की श्रेणी में भी रख सकते हैं लेकिन यह सत्य है कि यहां पर अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों की भटकती आत्माओं को श्राद्ध करने के बाद कुंड के पीपल के विश्राम दे दिया जाता है। मान्यता है कि इस क्रिया से भटकती आत्माओं को शांति मिलती है और वो सदैव के लिए भटकाव से मुक्ति पा जाती हैं।

अकाल मृत्यु वाले पितरों की आत्मा के शान्ति के लिए यहां पिंडदान इसलिए होता है क्योंकि शास्त्रों के मुताबिक काशी पृथ्वी पर न होकर भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित है और काशी को भगवान विष्णु की नाभि भी माना गया है। वहीं गयाजी को विष्णुक्षेत्र कहा जाता है। इसलिए गयाजी से पहले काशी में किये गये पिंडदान का विशेष महत्व है।

दंतकथाओं के अनुसार प्राचीन काल में एक पिशाच नामक ब्राह्मण काशी में आया और शिव की घोर तपस्या-प्रार्थना की। उसका शरीर कई रोगों से घिरा हुआ था। तब यहां रामायण की रचना करने वाले महर्षि बाल्मीकि भी मौजूद थे। रोगी ब्राह्मण ने कपिलेश्वर महादेव मंदिर में शिव का भयंकर तप किया। भगवान शंकर उसकी तपस्या से बेहद प्रसन्न हुए और इसके फलस्वरूप उसका रोग धीरे-धीरे ठीक हो गया।

उसके बाद भोलेनाथ ने उस ब्राह्मण को काशी से जाने के लिए कहा। तब उसने शिव से कहा कि प्रभु जिस युग में आप स्वयं विद्यमान हैं, तब मेरी यह दुर्दशा हो गई थी तो आने वाले युग में आपके भक्तों का क्या होगा। प्रभु शिव ब्राह्मण की शंका को समझ गये। कहा जाता है कि शिव ने ब्राह्मण से प्रसन्न होकर स्वयं इस कुंड का निर्माण किया। शिव ने कहा, भूलोक पर जो भी इस पिशाच मोचन कुंड पर अपने पितरों का तर्पण और पिंडदान करेगा, उन पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाएगी।

काशी के पिशाच मोचन कुंड पर कई तरह के श्रद्ध होते हैं, जिनमें अकाल मृत्यु, त्रिपिंडी श्राद्ध, गया श्राद्ध, वार्षक श्राद्ध, षोडसी, तीर्थ श्राद्ध, नारायण बलि, निमित्त पारवण और तिथि श्राद्ध विधान प्रमुख हैं। जिस भी शख्स की अकाल मृत्यु हो जाती है, उनके परिजनों को यहां नारायण बलि और त्रिपिंडी श्राद्ध करना चाहिए।

वहीं सामान्य मृत्यु  प्राप्त होने वाले व्यक्ति के परिजनों के लिए निमित्त पारवण और तिथि श्राद्ध का विधान है। यहां पर पिंडदान की प्रक्रिया कर्मकांडी ब्राम्हणों की अगुवाई में की जाती है। पितरों का जौ के आटे की गोलियां, काले तिल, कुश और गंगाजल आदि से विधिपूर्वक पिण्डदान, श्राद्धकर्म और तर्पण किया जाता है।

पिंडदान करने से पहले परिवार के सदस्यों को क्षोरकर्म करवाना होता है। जिसका मतलब होता है कि नाई वहीं कुंड पर उनके सिर के बाल, दाढ़ी व मूंछ को छूरी की सहायता से हटा देता है। उसके बाद परिजन कुंड में स्नान करते हैं और फिर पुरोहित मंत्रोच्चार के साथ पितरों का श्राद्धकर्म करवाते हैं। श्राद्धकर्म के बाद परिजन गाय, कौए और कुत्तों को आहार देते हैं और यह बेहद जरूरी परंपरा मानी जाती है।

पिशाच मोचन कुंड पर हर साल लगभग दो लाख से अधिक लोग अपने परिजनों का पिंडदान करने के लिए देश-विदेश से आते हैं। पिशाच मोचन तीर्थ पर बड़ी संख्या में विदेशी भी पहुंचे हैं, अपने अकाल मृत स्वजनों के पिंडदान और श्राद्ध के लिए।

काशी में शिव सहित समस्त देवी-देवताओं का वास माना जाता है। काशी को धर्म और आध्यात्म की नगरी कहा जाता है। जो लोग अकाल मृत्यु पाये स्वजनों के मोक्ष की कामना करते हैं, उन्हें काशी के पिशाच मोचन कुण्ड पर त्रिपिंडी श्राद्ध और नारायण बली करवाना बेहद आवश्यक है।

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