Holi 2024: काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका में दिगंबर क्यों खलते हैं चिताभस्म से, जानिए भोलेनाथ से जुड़ी 'मसाने की होली' का माहात्म्य

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 4, 2024 07:05 AM2024-03-04T07:05:56+5:302024-03-04T07:05:56+5:30

काशी की होली भी बहुत मशहूर है क्योंकि होली के दिन काशी के लोग भगवान शिव के प्रतिनिधि के रूप में भांग-धतूरा की दिव्य आभा में खोकर 'मसाने की होली' खेलते हैं।

Holi 2024: Why do Digambars celebrate Holi in Manikarnika, the cremation ground of Bholenath Kashi, know here | Holi 2024: काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका में दिगंबर क्यों खलते हैं चिताभस्म से, जानिए भोलेनाथ से जुड़ी 'मसाने की होली' का माहात्म्य

फाइल फोटो

Highlightsकाशी के लोग शिव के प्रतिनिधि बनकर भांग-धतूरे की दिव्य आभा में खोकर 'मसाने की होली' खेलते हैंमान्यता है कि काशी में महादेव दिगंबर रूप में महाश्मशान मणिकर्णिका में चिताभस्म से होली खेलते हैंइसलिए कहा जाता है, 'चना-चबेना गंग जल, जो पुरवे करतार। काशी कबहुं न छाड़िये, विश्वनाथ दरबार'

Holi 2024: काशी यानी वाराणसी के बारे में मान्यता है कि यह नगरी पृथ्वी पर नहीं बल्कि भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है। इसलिए काशी को शिव की नगरी कहते हैं, मोक्ष की नगरी कहते हैं, आध्यात्म की नगरी कहते हैं।

अड़भंगी नगरी कहे जाने वाली काशी की होली भी बहुत मशहूर है क्योंकि होली के दिन काशी के लोग भगवान शिव के प्रतिनिधि के रूप में भांग-धतूरा की दिव्य आभा में खोकर 'मसाने की होली' खेलते हैं।

जी हां, मान्यता है कि मोक्षदायनी काशी में स्वयं भगवान शिव दिगंबर रूप में महाश्मशान मणिकर्णिका में चिताभस्म से होली खेलते हैं। तभी तो काशी यानी बनारस के बनारस के मन-मिजाज को परखते हुए अक्सर कहा जाता है, "चना-चबेना गंग जल, जो पुरवे करतार। काशी कबहुं न छाड़िये, विश्वनाथ दरबार।"

कहा जाता है कि फाल्गुन के महीने में इसी काशी में शिव स्वंय प्रगट होते हैं होली खेलने के लिए। आज हम यहां काशी के उसी 'मसाने की होली' के माहात्म्य के बारे में बता रहे हैं।

काशी में चिताभस्म से होली खेलने के पीछे की किंवदंती

कहते हैं एक समय भगवान भोलेनाथ का कैलाश पर्वत पर तप साधना करते हुए अचानक ध्यान भंग हो आया। उसी समय महादेव के मन में तीव्र इच्छा हुई कि वो माता पार्वती के साथ होली खेलें। लेकिन मां पार्वती उस समय अपने मायके गई हुई थीं। प्रभु त्रिपुरारी यथाशीघ्र मां गोरी के पास पहुंचने की उत्कंठा में नन्दी और अन्य गणों समेत कैलाश से पैदल ही ससुराल को चल दिये।

होती का पर्व आने में अभी कुछ दिन शेष गये थे परन्तु भोलेनाथ की इच्छा का सम्मान करते हुए माता गोरी को भी अबीर गुलाल लेकर मायके से ससुराल कैलाश की ओर चल पड़ी लेकिन रास्ते में काशी में ही प्रभु शिव और गौरी का मिलन हुआ। महाकाल शिव ने देखा कि मां पार्वती के हाथों में रंग, अबीर और गुलाल की थाली है। उन्होंने माता गौरी से कहा कि वो होली अबीर या रंगों से नहीं खेलेंगे। प्रभु के इस संवाद को सुनकर मां  पार्वती सोच में पड़ गई कि अब वो क्या करें?

प्रभु शिव चिंतामग्न मां पार्वती के पास गये और बोले कि हम इस समय काशी में हैं और यहां पर मेरा प्रिय स्थान महाश्मशान है। इसलिए मैं आपके साथ चिताभस्म से ही होली खेलूंगा। इतना कहने के बाद प्रभु शिव ने जलती हुई चिता से राख उठाई और मां पार्वती पर फेंक दिया। उसके बाद गौरीशंकर ने ऐसी दिव्य होली खेली कि सारे ब्रह्मांड के देवता उनके आगे नतमस्तक हो गये।

काशी की उस होली में प्रभु के कंठ से लिपटे सर्प भी फुफकार मारने लगे, जिसेके कारण शिव की शीश पर विराजमान शशि जोलने लगे। जूट में समाई मां गंगा से अमृत की धारा बहने लगी। होली का आवेश कुछ ही समय में इतना तीव्र हो गया कि भोलेनाथ दिगम्बर हो गये और प्रभु की उस अवस्था में देखकर माता पार्वती अपनी हंसी रोक न सकीं।

काशी की रंगभरी एकादशी यानी चिताभस्म की होली

पुराणों में वर्णित फाल्गुन शुक्ल एकादशी के उस दिन को रंगभरी एकादशी कहा जाता है। काशी में भस्म होली खेलने के बाद ही रंगों की होली खेलने का परंपरा है। महाश्मशान मणिकर्णिका में चौबीसों घंटें चिताओं के जलने और शवयात्राओं के आने का सिलसिला चलता रहता है और उसी के बीच काशी के लोग खेलते हैं 'मसाने की दिगंबर होली'।

काशी में हर साल महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर लोग बाबा मशाननाथ को भस्म, अबीर, गुलाल और रंग चढ़ाते हैं। जलती चिताओं के बीच डमरु बजते हैं और बाबा मसाननाथ की  भव्य आरती उतारी जाती है। उसके बाद लोग धीरे-धीरे 'हर हर महादेव' का जयघोष करते हुए चिताओं के बीच आ जाते हैं और फिर शुरू होती है चिताभस्म की होली। 

Web Title: Holi 2024: Why do Digambars celebrate Holi in Manikarnika, the cremation ground of Bholenath Kashi, know here

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