ब्लॉग: जितने सहज हैं, उतने ही विलक्षण भी हैं भगवान शिव

By गिरीश्वर मिश्र | Published: March 8, 2024 10:18 AM2024-03-08T10:18:30+5:302024-03-08T10:18:37+5:30

Maha Shivratri 2024: विष को गले में स्थान दे कर शिव ‘नीलकंठ’ हुए थे। यानी उनके पास विष भी अमृत बन कर रहा। अपने मानस में सिर उठाते विष को वश में करना ही शिवत्व है। 

Maha Shivratri 2024 Lord Shiva is as unique as he is simple | ब्लॉग: जितने सहज हैं, उतने ही विलक्षण भी हैं भगवान शिव

ब्लॉग: जितने सहज हैं, उतने ही विलक्षण भी हैं भगवान शिव

‘शिव’ अर्थात् शुभ, कल्याणप्रद और मंगलकारी. शिव के प्रति आकर्षण बड़ा प्राचीन है। ऐतिहासिक दृष्टि से शिव पूर्ववैदिक काल से चर्चित देवता हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ी पुरातात्विक खोज में मिली पाशुपत (योग) मुद्रा शिव का ही बोध कराती है। वेद में रुद्र के रूप में शिव का उल्लेख मिलता है। तमिल शैव सिद्धांत भी अत्यंत प्राचीन है। सातवीं सदी में नयनार भक्त कवि (तिरुमराई, पेरिय पुराणम, तेवारम, तिरुमुलर की तिरूमंत्रम), लिंगायत समुदाय तथा नाथ-सम्प्रदाय जिसके गुरु गोरखनाथ थे, सभी परम शिव भक्त रहे हैं।

कश्मीर में उत्पलदेव, अभिनवगुप्त, क्षेमराज, आदि द्वारा प्रत्यभिज्ञा (अद्वैत) दर्शन का विकास हुआ, वसु गुप्त ने शिवसूत्र रचा, शिव पुराण तथा लिंग पुराण आदि ग्रंथों में भी शैव चिंतन के विविध रूप मिलते हैं।

भारतीय साहित्य, दर्शन और लोक जीवन में शिव केंद्रीय रूप में प्रतिष्ठित हैं। समग्रता के पर्याय बन चुके शिव भारतीय देश-काल में सतत व्याप्त दिखाई पड़ते हैं। इतिहास में झांकें तो लोक जीवन में शिव की स्मृति चारों ओर छाई मिलती है।

कई जन जातियों में भी शिव की पूजा होती है। शिव तक पहुंचना सरल है और उनकी पूजा-अर्चना का विधान भी सादगी भरा और सुग्राह्य है। अक्षत, चंदन, धतूरा, आक, गंगाजल और विल्वपत्र से उनका पूजन होता है। अभिषेक उन्हें विशेष रूप से प्रिय है। श्रावण मास में रुद्राभिषेक का विधान बड़ा लोकप्रिय है।

विराट भारतीय मानस के प्रतिरूप सरीखे परम उज्ज्वल ज्योतिरूप शिव जितनी सहजता से उपलब्ध हैं उतने ही विलक्षण भी हैं। वे मुक्त भाव से विचरण करते हैं और सभी चाहने वालों को मुक्ति देते हैं, विश्वेश्वर विश्वनाथ जो ठहरे। वे महाकाल और अविमुक्त भी हैं। शिवत्व के निखार को व्यक्त करने वाला रूप नीलकंठ का है। जब देवता और असुरों के द्वारा समुद्र-मंथन हो रहा था तो उससे अनेक रत्न तो निकले ही, साथ में विष भी निकला।

सभी त्राहि माम करने लगे तब सभी देवों ने शिव से उसे शांत करने को कहा। तब उन्होंने विषपान कर सृष्टि को नष्ट होने से बचाया। यह अकेले शिव के औदार्य के बस का ही काम था। तभी वे ‘महादेव’ कहलाए। विष मृत्यु का ही पर्याय है और उस पर विजय के कारण वे ‘मृत्युंजय’ भी कहे गए। कहते हैं विषपान के बाद शिवजी हिमालय की गुफा में बैठकर ध्यानस्थ हो गए थे।

तभी देवतागण उनकी स्तुति करने पहुंचे। शिवजी ने बताया कि स्थूल विष को धारण करना तो कोई  बड़ी बात नहीं। संसार में रहते हुए जो विषैले अनुभव होते हैं उनको अपने में पचाना अधिक बड़ा पुरुषार्थ है। विष को गले में स्थान दे कर शिव ‘नीलकंठ’ हुए थे। यानी उनके पास विष भी अमृत बन कर रहा। अपने मानस में सिर उठाते विष को वश में करना ही शिवत्व है। 

Web Title: Maha Shivratri 2024 Lord Shiva is as unique as he is simple

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