पितृपक्ष: जानिए रावण संहिता में बताये गये पितृ दोष के लक्षण और उपाय

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: September 9, 2022 04:08 PM2022-09-09T16:08:32+5:302022-09-09T16:17:21+5:30

पितृ दोष के विषय में शंकर के शिष्य और लंकापति रावण ने स्वयं लिखित संहिता में विस्तार से चर्चा की है। रावण संहिता में क्या है पितृ दोष के लक्षण, क्यों होता है पितृ दोष और इसके अलावा पितृ दोष के दूर करने का व्यापक उपाय बताया गया है।

Pitru Paksha: Know the symptoms and remedies of Pitru Dosh mentioned in Ravan Samhita | पितृपक्ष: जानिए रावण संहिता में बताये गये पितृ दोष के लक्षण और उपाय

फाइल फोटो

Highlightsलंकापति रावण ने स्वरचित संहिता में पितृपक्ष और पितृदोष के बारे में विस्तार से चर्चा की हैरावण संहिता के अनुसार पितृपक्ष में पितृ दोष को दूर किये जाने के कई महत्वपूर्ण उपाय हैं रावण 'जटाट वीगलज्जल प्रवाह पावित स्थले' जैसे अद्भुत शिवताण्डव स्तोत्र का भी रचनाकार है

वाराणसी:पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। पितृपक्ष में दिवंगत पुरखों का श्राद्ध और तर्पण दोनों ही किया जाता है। श्राद्ध, श्रद्धा से उपजा शब्द है, जिसका अर्थ होता है पितृपक्ष में पितरों के प्रति हम अपनी कृतज्ञता प्रगट करें और यथोचित सम्मान के साथ उनका श्राद्ध और तर्पण करें। पिंडदान के माध्यम से पितरों का श्राद्ध किया जाता है। हिंदू धर्म की मान्यता है कि पितृ जिस भी लोक में होंगे, उन्हें तर्पण से शांति और मुक्ति मिलेगी।

रावण, हिंदू समाज में बेहद निंदनीय नाम जाता है क्योंकि बाल्मिकी रामायण के अनुसार उसने पिता के वचन की रक्षा के लिए वनगमन करने वाले श्रीराम की भार्या अर्थात पत्नी सीता का छलपूर्वक अपहरण कर लिया था। जिसके कारण राम-रावण युद्ध हुआ और उस युद्ध में अमृतपान किये रावण का वध करके राम ने अशोक वाटिका से सीता को मुक्त कराया था।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण जितना अहंकारी और मद में चूर था। वो उतना ही प्रकांड विद्वान भी था। विद्वता और पांडित्य में रावण के बराबर कोई दूसरा विद्वान भी नहीं था। शिव भक्त रावण ने ही 'जटाट वीगलज्जल प्रवाह पावित स्थले' जैसे अद्भुत शिवताण्डव स्तोत्र की रचना की थी। स्वयं शिव रावण की भक्ति के वशीभूत रहा करते थे।

उसी रावण द्वारा रचित रावण संहिता भी है, जिसमें अद्वितीय ज्योतिषीय और तांत्रिक रहस्यों का वर्णन किया गया है। इसी रावण संहिता में पितृदोष के बारे में भी चर्चा की गयी है, चूंकि यह पितृपक्ष काल है, इसलिए हम आपको बता रहे हैं यहां रावण संहिता में वर्णित पितृ दोष के लक्षण एवं उपाय।

क्या हैं पितृ दोष के लक्षण, क्यों होता है पितृ दोष। क्या हैं पितृ दोष के दूर करने के उपाय। यह सारी बातें रावण ने स्वयं की संहिता में बहुत विस्तार से बताई है। रावण संहिता में वर्णित पितृ दोष का लक्षण बहुत ही भयानक माना गया है।

जिसके कारण जीवन में विभिन्न प्रकार के संकट आते हैं। पितृ दोष के बहुत सारे लक्षण हैं, जिससे आसानी से समझा जा सकता है कि कौन से लोग पितृ दोष के शिकार हैं। ऐसी स्थिति में पितृ दोष के उपाय अवश्य करने चाहिए। रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के कुछ विशेष लक्षणों में

1. संतान बाधा या संतान की समस्या होना
2. विवाह में बाधा उत्पन्न होना या न होना
3. आर्थिक परेशानी और धन का अभाव
4. स्वास्थ्य का खराब रहना या शरीर का कमजोर होना
5. गृह कलह या स्वजनों में वैमनस्यता
6. मानसिक रूप से परेशान रहना या मानसिक विकार से गृसित रहना
7. पिता या स्वजनों से संबंध ठीक नहीं होना

यह सभी लक्षण बताते हैं कि व्यक्ति पितृ दोष से ग्रसित है। इसके अतिरिक्त भी पितृ दोष के अनेक प्रकार के लक्षण होते हैं। मूल रूप से कहा जाए तो जीवन में दैहिक, भौतिक और मानसिक पीड़ा का प्रमुख कारण पितृ दोष हो सकता है। रावण संहिता में पितृ दोष को दूर करने के लिए अनेकों उपाय बताए गए हैं। तो जानिए रावण संहिता के अनुसार कैसे हो सकते हैं पितृ दोष से मुक्त।

पितृ दोष से बचना चाहते हैं, पितरों को सदैव प्रसन्न रखना चाहते हैं और उनसे आशीर्वाद की कामना रखते हैं तो रावण संहिता के अनुसार पितृ दोष के उपाय अवश्य करें। याद रखें हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि मनुष्य पर जब तक पितरों की कृपा नहीं होती है, वह किसी भी कार्य में सफलता नहीं हो पाता है।

वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में तीन प्रकार के ऋण होते हैं। जिसमें पहला देव ऋण, दूसरा ऋषि ऋण और तीसरा पितृ ऋण माना जाता है। मनुष्य को इन तीनों ऋणों से मुक्ति पाने के लिए विभिन्न प्रकार के यज्ञ अनुष्ठान, तीर्थ, पूजन, दान और कर्म करने होते हैं। शास्त्र कहता है कि मनुष्य के जीवन में पितृ देवताओं का बहुत बड़ा आशीर्वाद और स्नेह बराबर बना रहता है।

इसलिए हर दिन और विशेषकर पितृ पक्ष में तो शास्त्र विधान के अनुसार बताये गये ऐसे कार्यों को करना चाहिए, जिनसे हम पितृ ऋण से मुक्त हो सकें। रावण संहिता में पितृ दोष से मुक्त होने के कुछ विशेष उपाय बताए गए हैं, वो कुछ इस तरह से हैं।

1. वेदपाठी विद्वान ब्राह्मण को तिल का दान करें।
2. निर्धन कन्या का विवाह करवाएं और उस विवाह में होने वाले सारे खर्च का वहन करें, इससे पितृ दोष दूर होता है।
3. पूरे परिवार के साथ प्रतिदिन भगवत गीता का पाठ करें, पितृदोष से शांति मिलती है।
4. प्रातः स्नान करने के बाद सूर्य को जल दें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
5. घर में पीपल और वटवृक्ष लगाने से पितृ दोष दूर होता है।
6. इष्ट देवता यानी कुल देवता की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ करें, पितृ देवता प्रसन्न होते हैं।
7. गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदी में काले तिल का प्रवाह करें, पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
8. महामृत्युंजय मंत्र का पाठ प्रतिदिन करें और नवग्रह शांति पाठ भी करें, पितृ देवता प्रसन्न होते हैं।
9. श्राद्ध पक्ष में पितरों का तर्पण अवश्य करें।
10. गया, काशी, प्रयागराज में पिंड दान करने के पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

एक प्रमुख प्रश्न यह है कि मनुष्य के जीवन में पितृदोष कब तक प्रभावी रहता है। रावण संहिता के अनुसार जब तक मनुष्य अपने पितरों की शांति न कराएं, तब तक उनके जीवन में पितृ दोष बना रहता है। पितृ तर्पण और पिंडदान के द्वारा जब तक मुक्त नहीं हो जाते, मनुष्य के जीवन में पितृदोष का सामना करना पड़ता है। इसलिए पितृपक्ष में सभी मनुष्यों को पितृ दोष दूर करने के उपाय अवश्य करने चाहिए।

सवाल है कि पितृ दोष की पूजा कहां पर करनी चाहिए, तो इसका सीधा सा जवाब है कि आप पितृ दोष की पूजा अपने घर में कर सकते हैं लेकिन यदि शीघ्र पितृ दोष से शांति और मुक्ति पाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको गयाजी, काशी, प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, बद्रीनाथ, रामेश्वरम आदि तीर्थों में जाकर पितृ दोष की पूजा करनी होगी। 

हिंदू शास्त्रों के मुताबिक इन तीर्थ स्थलों पर पितृ दोष की पूजा करने से पितरों को शांति और मुक्ति का लाभ शीघ्र मिलता है और पितृ दोष की यह पूजा भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से शुरू होती है। श्राद्ध पक्ष के दौरान पितृ दोष की पूजा करवाने का विशेष फल मिलता है। शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध पक्ष में पितृ दोष की पूजा करने से पितृदोष शांत हो जाता है। इसलिए श्राद्ध पक्ष में पितरों का तर्पण एवं पिंडदान आदि करके यथा विधि से पूजन करना चाहिए।

पितृदोष और कालसर्प दोष को लेकर लोगों के मन में एक भ्रम बना रहता है कि पितृ दोष और कालसर्प दोष एक समान है। जी नहीं, ऐसा कभी न सोचें। पितृ दोष एवं कालसर्प दोष में बहुत भारी अन्तर होता है। कुण्डली में दोनों दोष कुछ-कुछ समानता रखते हैं लेकिन उसके बाद भी पितृदोष कालसर्प दोष से बहुत अलग होता है।

जब जन्म कुंडली में राहु एवं केतु के मध्य में सभी ग्रह आ जाते हैं तो इससे कालसर्प दोष का निर्माण होता है। ज्योतिष परंपरा में लगभग 12 प्रकार के कालसर्प दोष होते हैं। वहीं पितृ दोष तब होता है, जब जन्म कुंडली के नौवें भाव में सूर्य एवं केतु अथवा सूर्य एवं राहु का जुड़ाव होता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कालसर्प दोष और पितृ दोष में यही सामान्य अंतर पाया जाता है। लेकिन कुंडली में पितृ दोष एवं कालसर्प दोष को गहराई से समझने के लिए किसी अच्छे ज्योतिष विशेषज्ञ से उसका अध्ययन करवाया जाना आवश्यक माना जाता है।

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