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Papmochani Ekadashi: पापमोचिनी एकादशी व्रत आज, जानिए क्या है भगवान विष्णु की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 19, 2020 7:20 AM

Papmochani Ekadashi: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पापमोचिनी एकादशी की कथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताई है।

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ठळक मुद्देपापमोचिनी एकादशी पर करें भगवान विष्णु की पूजा, है बड़ा महत्वहोलिका दहन और चैत्र नवरात्रि के बीच पड़ती है पापमोचिनी एकादशी

Papmochani Ekadashi 2020: आज पापमोचिनी एकादशी व्रत है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार एक साल में 24 एकादशी व्रत होते हैं और सभी का अलग-अलग महत्व है। चैत्र कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहा गया है।

ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी पापों और कष्टों का नाश होता है। साथ ही साधक को मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। यह एकादशी होलिका दहन और चैत्र नवरात्रि के बीच पड़ती है। इस दिन भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है।

Papmochani Ekadashi: पापमोचिनी एकादशी पूजा विधि

व्रत के दिन तड़के उठना चाहिए और स्नान आदि कर साफ-सुथरे वस्त्र पहनने के बाद पूजा की तैयारी शुरू करनी चाहिए। हालांकि, व्रत की तैयारी दशमी के दिन ही शुरू कर देनी चाहिए। इस दिन सात्विक भोजन करना चाहिए।

एकादशी के दिन अब पूजा की तैयारी करें। एक साफ चौकी पर गंगाजल छिड़के और पीला या लाल वस्त्र डालकर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर वहां स्थापित करें। भगवान विष्णु को पीले फूल की माला और पुष्प आदि अर्पित करें। साथ ही उन्हें मिठाई आदि भी अर्पित करें और फिर एकादशी की कथा सुने या पढ़ें। 

पूजा के बाद भगवान विष्णु की आरती करें भोग लगाएं। शाम को भी भगवान विष्णु की आरती करें। व्रत के अगले दिन द्वादशी को प्रात: काल में फिर स्नान करें और भगवान विष्णु की पूजा करें। ब्राह्मणों-जरूरतमंदों को इसके बाद भोजन कराएं और दक्षिणा आदि देकर विदा करें। 

इसके बाद पारण करें। पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति के लिए पारण का शुभ समय 20 मार्च (शुक्रवार) को दिन में 01 बजकर 41 मिनट से शाम को 04 बजकर 07 मिनट तक का है।

Papmochani Ekadashi: पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा

पापमोचिनी एकादशी की कथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताई है। पापमोचिनी एकादशी कथा के अनुसार प्राचीन समय में चित्ररथ नाम का एक रमणिक वन था। इस वन में देवराज इन्द्र गंधर्व कन्याओं तथा देवताओं सहित स्वच्छंद विहार करते थे।

एक बार च्वयवन नाम के ऋषि भी वहां तपस्या करने पहुंचे। वे ऋषि शिव उपासक थे। इस तपस्या के दौरान एक बार कामदेव ने मुनि का तप भंग करने के लिए उनके पास मंजुघोषा नाम की अप्सरा को भेजा। 

वे अप्सरा के हाव भाव, नृत्य, गीत तथा कटाक्षों पर काम मोहित हो गए। रति-क्रीडा करते हुए 57 साल व्यतीत हो गए। एक दिन मंजुघोषा ने देवलोक जाने की आज्ञा मांगी। उसके द्वारा आज्ञा मांगने पर मुनि को अहसास हुआ उनके पूजा-पाठ आदि छूट गये। उन्हें ऐसा विचार आया कि उनको रसातल में पहुंचाने का एकमात्र कारण अप्सरा मंजुघोषा ही हैं। क्रोधित होकर उन्होंने मंजुघोषा को पिशाचनी होने का शाप दे दिया।

शाप सुनकर मंजुघोषा ने कांपते हुए ऋषि से मुक्ति का उपाय पूछा। तब मुनिश्री ने पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने को कहा। इसके बाद च्वयवन ऋषि ने भी पापमोचिनी एकादशी का व्रत किया ताकि उनके पाप भी खत्म हो सके। व्रत के प्रभाव से मंजुघोष अप्सरा पिशाचनी देह से मुक्त होकर देवलोक चली गई और ऋषि भी तप करने लगे।

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