Muharram 2019: मुहर्रम क्यों मनाया जाता है, कर्बला में 1400 साल पहले क्या हुआ था और कौन थे इमाम हुसैन, जानिए

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 10, 2019 09:47 IST2019-09-10T09:47:27+5:302019-09-10T09:47:27+5:30

मुहर्रम खुशी का नहीं बल्कि गम का महीना है। इसी महीने की 10वीं तारीख को क्रूर शासक यजीद के खिलाफ इमाम हुसैन कर्बला की जंग में शहीद हो गये थे।

Muharram 2019 Muharram kyu manate hai, history, significance and Imam Hussain story | Muharram 2019: मुहर्रम क्यों मनाया जाता है, कर्बला में 1400 साल पहले क्या हुआ था और कौन थे इमाम हुसैन, जानिए

मुहर्रम के मौके पर इमाम हुसैन की शहादत को किया जाता है याद (फाइल फोटो)

Highlightsमुहर्रम की 10वीं तारीख आज, इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का मौकाकर्बला की जंग में इमाम हुसैन को किया गया था शहीद

Muharram 2019: इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम पैगंबर मुहम्मद के नाती इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का महीना है। मुहर्रम महीने की शुरुआत भारत में इस बार 31 अगस्त को ही हो गई थी। इसी महीने की 10वीं तारीख को क्रूर शासक यजीद के खिलाफ इमाम हुसैन कर्बला की जंग में शहीद हो गये थे। इसी की याद में मुहर्रम के 10वें दिन शिया मुस्लिम काले कपड़े पहनकर सड़कों पर जुलूस निकालते हैं और उनकी शहादत को याद करते हैं।

Muharram 2019: मुहर्रम क्यों मनाते हैं

मुहर्रम खुशी का नहीं बल्कि गम का दिन है। दरअसल, हजरत मुहम्मद साहब की मौत के बाद उनके अगले उत्तराधिकारी को लेकर झगड़े शुरू हो गये थे और यह लगातार बढ़ता ही जा रहा था। बहरहाल, खलीफा का पद पैगंबर मुहम्मद के ससुर और विश्वासपात्र रहे अबु बकर को मिला। हालांकि, कुछ लोग उनके चचेरे भाई और दामाद अली को नेतृत्व सौंपने के हक में थे। 

अबु बकर और उनके उत्तराधिकारियों की मौत के बाद अली को खलीफा बनाया गया। वैसे, तब तक नेतृत्व को लेकर दो धड़ों में मतभेद काफी गहरा गया था। अली की मौत के बाद उनके बेटे हसन खलीफा बने लेकिन फिर उन्होंने विरोधी धड़े के नेता अमीर मुआविया के लिए खलीफा पद छोड़ दिया। 

Muharram 2019:  कर्बला में करीब 1400 साल पहले लड़ी गई थी जंग 

मुआविया ने अपने जीवनकाल में ही अपने बेटे यजीद को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया, जो उनके निधन के बाद शासक बना। यजीद चाहता था कि पैगंबर मुहम्मद के नाती इमाम हुसैन उसे अपना समर्थन दें ताकि उसे भी जन समर्थन हासिल हो सके। हालांकि, इमाम ने इससे साफ इंकार कर दिया। यहीं से यजीद और इमाम हुसैन में टकराव शुरू हो गया।

इसके बाद यजीद ने इमाम हुसैन के खिलाफ जंग छेड़ दिया। इमाम हुसैन ने यजीद के आगे समर्पण से बेहतर अपने प्राणों का बलिदान देना बेहतर समझा। कर्बला के रेगिस्तान में 680 में हुई लड़ाई में इमाम हुसैन सहित उनके काफिले में शामिल 72 लोगों को शहीद कर दिया गया। इसमें छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बूढ़े तक शामिल थे। 

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