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निर्भीक, साहसी और सत्यवादी कवि थे कबीर

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: June 20, 2018 16:26 IST

कबीर ने जहां धार्मिक और दार्शनिक क्षेत्न में सुधार लाने का प्रयास किया, वहीं सामाजिक जीवन में व्याप्त जातिगत ऊंच-नीच, छुआछूत की भावना, दुराचार, भेदभाव को दूर कर एक स्वस्थ समाज की कल्पना की।

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भक्तिकाल का प्रारंभ निर्गुण संत काव्य से होता है। इस धारा के कवियों में उन संत कवियों का स्थान है जिन्होंने एकेश्वरवाद में आस्था व्यक्त करते हुए निर्गुण-निराकार ईश्वर की भक्ति का संदेश दिया। इन संत कवियों के पास धर्म, दर्शन, भक्ति और चरित्न निर्माण के लिए अपना निजी संदेश था। धर्म के क्षेत्न में संकीर्णता का विरोध, दर्शन के क्षेत्न में एकेश्वरवाद का समर्थन, भक्ति के क्षेत्न में कर्मकांड रहित निष्ठा पर विश्वास और चरित्न विकास के लिए सत्य को वे जीवन निर्माण की कसौटी मानते थे इसीलिए अत्यंत निर्भीक, साहसी और सत्यवादी थे। इन समस्त विचारों का सार कबीर की वाणी में मुखर हो उठा है।

कबीर ने धर्म के ठेकेदारों को यथार्थ स्थिति से परिचित होकर आचरण करने की सलाह दी। वे कहते हैं कि ईश्वर का निवास सभी प्राणियों में है। अत: किसी को दु:ख देना, कटु वचन कहना ईश्वर का अपमान करना है- घट-घट में वह सांई रमता कटु वचन मत बोल रे।

कबीर की साखियों में प्रेमतत्व पूर्ण रूप से समाहित है। बिना प्रेम के जीवन निर्थक है, श्मशान के समान है इसलिए कबीर ने स्पष्ट रूप से और निर्भीक होकर कहा है - जा घट प्रेम न संचरे, सो घट जान मसान।

कबीर ने जहां धार्मिक और दार्शनिक क्षेत्न में सुधार लाने का प्रयास किया, वहीं सामाजिक जीवन में व्याप्त जातिगत ऊंच-नीच, छुआछूत की भावना, दुराचार, भेदभाव को दूर कर एक स्वस्थ समाज की कल्पना की। इसलिए कबीर संत-कवि ही नहीं अपितु युगद्रष्टा एवं सच्चे मार्गदर्शक के रूप में भी अपने विचारों के साथ विद्यमान रहेंगे। जनता के दुखदर्द और उसकी वेदना को अपना मान मानवतावाद की स्थापना करनेवाला यह चिंतक सदैव कथनी और करनी में समानता चाहता रहा। ढाई आखर प्रेम को जीवन का सार मानता रहा। अपना हर कदम मानवता के लिए बढ़ाया। ऐसे मानवतावादी व्यक्तित्व की वाणी से संसार सदैव प्रकाशित रहेगा।

लेखक- डॉ. विशाला शर्मा

(फोटो- पिक्साबे)

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