Kamada Ekadashi 2023: कामदा एकादशी व्रत 1 अप्रैल को, जानें व्रत विधि, शुभ मुहूर्त, पारण और कथा
By रुस्तम राणा | Updated: March 31, 2023 14:53 IST2023-03-31T14:52:07+5:302023-03-31T14:53:12+5:30
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु की कृपा से कामदा एकादशी का व्रत करने वाले को बैकुंड जाने का सौभाग्य मिलता है। इस व्रत को करने से राक्षस योनी से मुक्ति मिलती है।

Kamada Ekadashi 2023: कामदा एकादशी व्रत 1 अप्रैल को, जानें व्रत विधि, शुभ मुहूर्त, पारण और कथा
Kamada Ekadashi 2023: चैत्र शुक्ल एकादशी तिथि को कामदा एकादशी कहते हैं। इस बार एकादशी तिथि 1 अप्रैल 2023 को रखा जाएगा। हिन्दू धर्म में कामदा एकादशी का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि कामदा एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के समस्प पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु की कृपा से कामदा एकादशी का व्रत करने वाले को बैकुंड जाने का सौभाग्य मिलता है। इस व्रत को करने से राक्षस योनी से मुक्ति मिलती है।
कामदा एकादशी 2023 तिथि
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि- 01 अप्रैल, शनिवार को रात्रि 01:58 बजे से शुरू
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त- 02 अप्रैल, रविवार को प्रात: 04:19 बजे तक रहेगी
कामदा एकादशी पूजा मुहूर्त 2023
कामदा एकादशी का व्रत की पूजा 01 अप्रैल को प्रात:काल से कर सकते हैं क्योंकि सुबह 06 बजकर 12 मिनट से ही रवि योग बन रहा है। कामदा एकादशी व्रत के पारण का समय दोपहर 01 बजकर 40 मिनट से शाम 04 बजकर 10 मिनट तक है।
कामदा एकादशी की पूजा विधि
एकादशी के दिन नहा-धोकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
दाहिने हाथ में जल लेकर कामदा एकादशी का संकल्प लें।
अब पूजा स्थान पर बैठ भगवान विष्णु की प्रतीमा की स्थापना करें।
फिर चंदन, अक्षत, फूल, धूप, गंध, दूध, फल, तिल, पंचामृत आदि से विधिपूर्वक भगवान की पूजा करें।
अब कामदा एकादशी की कथा कहें।
पूजा समापन के समय भगवान विष्णु की आरती करें।
बाद में प्रसाद का वितरण करें।
कामदा एकादशी व्रत कथा
भोगीपुर राज्य में राजा पुंडरीक की शासन था। उसका राज्य धन धान्य और ऐश्वर्य से भरा था। उसके राज्य में एक प्रेमी युगल रहता था, जिसका नाम ललित और ललिता था। वे दोनों एक दूसरे से प्रेम करते थे। एक दिन राजा पुंडरीक की सभी लगी थी, उसमें ललित साथी कलाकारों के साथ गीत संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा था। उसने ललिता को देखा और उसका सुर गड़बड़ हो गया।
सभा में उपस्थित सेवकों ने राजा पुंडरीक को इस बात की जानकारी दे दी। इस पर क्रोधित राजा पुंडरीक ने ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया। श्राप के कारण ललित राक्षस बन गया और उसका शरीर 8 योजन का हो गया। अब वह जंगल में रहने लगा. पत्नी ललिता जंगल में ललित के पीछे भागती रहती थी। राक्षस होने के कारण ललित का जीवन बड़ा कष्टमय हो गया था।
एक रोज ललिता विंध्याचल पर्वत पर गई। वहां पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता ने श्रृंगी ऋषि को प्रणाम किया और अपने आने को उद्देश्य बताया। श्रृंगी ऋषि ने कहा कि तुम परेशान न हो। तुम कामदा एकादशी का व्रत रखो और उस व्रत से अर्जित पुण्य फल को अपने पति को समर्पित कर दो। उस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारा पति राक्षस योनि से बाहर निकल आएगा।
अगले बरस जब चैत्र शुक्ल एकादशी का व्रत आया तो ललिता ने श्रृंगी ऋषि द्वारा बताए गए नियम से कामदा एकादशी का व्रत किया और भगवान विष्णु की आराधना की। पूरे दिन कुछ नहीं खाया। रात्रि के समय में जागरण की।
फिर अगले दिन पारण किया और भगवान विष्णु से इस व्रत के पुण्य को पति ललित को देने की प्रार्थना की। उसने कहा कि वह कामदा एकादशी के पुण्य को अने पति को देती है, ताकि वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाएं। श्रीहरि की कृपा से ललित राक्षस योनि से मुक्त हो गया। फिर से दोनों साथ में रहने लगे। एक दिन स्वर्ग से विमान आया और वे दोनों उस पर बैठकर स्वर्ग चले गए।