आज फाल्गुन पूर्णिमा है और फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन करने की परंपरा है। होलिका दहन के पश्चात अगले दिन होली का उत्सव मनाया जाता है। ऐसे में होलिका दहन के बारे में कुछ बातों को जान लेना बेहद आवश्यक है। होलिका दहन के समय भद्राकाल का विचार किया जाता है। क्योंकि इस समय कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है। भद्राकाल के चलते होलिका दहन के समय को लेकर संशय बना हुआ है। तो चलिए जानते हैं होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है-
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
आज भद्राकाल देर रात 12:57 बजे तक रहेगा। ऐसे में देखा जाए तो होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 12:58 बजे से 02:12 बजे तक है। लेकिन कुछ ज्योतिष विद्वानों का मत है कि होलिका दहन रात 09:06 बजे से लेकर 10:16 बजे के बीच भी किया जा सकता है क्योंकि इस समय भद्रा की पूंछ रहेगी।
होलिका दहन की विधि
होलिका दहन के लिए लकड़ी, कंडे या उपले एक जह एकत्रित करें। इन सारी चीजों को शुभ मुहूर्त में जलाएं। इसमें छेद वाले गोबर के उपले, गेंहू की नई बालियां और उबटन डालें। ऐसी मान्यता है कि इससे साल भर व्यक्ति को आरोग्य कि प्राप्ति हो और सारी नकारात्मक शक्तियां इस अग्नि में भस्म हो जाती हैं। होलिका दहन पर लकड़ी की राख को घर में लाकर उससे तिलक करने की परंपरा भी है।
होलिका दहन का महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। बालक प्रह्लाद को भगवान की भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। भक्त प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर चिता में बैठ गयीं, चिता में आग लगाई गई, लेकिन प्रह्लाद अपनी भक्ति की शक्ति के कारण नहीं जले, खुद होलिका ही आग में जल गई।
बरतें सावधानियां
नवविवाहित कन्याओं को होलिका की जलती हुई अग्नि को देखने से बचना चाहिए। होलिका का पूजन करते समय अपने सिर को रूमाल या अंगोछा से ढकें। होली का भुना गन्ना चूसें, होला और अन्न अवश्य खायें ये प्रसाद होता है।