Guru Ravidas Jayanti 2024: गुरु रविदास जयंती कल, जानिए भक्ति आंदोलन में उनका योगदान
By रुस्तम राणा | Updated: February 23, 2024 15:48 IST2024-02-23T15:48:32+5:302024-02-23T15:48:32+5:30
गुरु रविदास, जिन्हें रैदास, रोहिदास और रूहीदास के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 1377 ई. में उत्तर प्रदेश के सीर गोवर्धनपुर नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था।

Guru Ravidas Jayanti 2024: गुरु रविदास जयंती कल, जानिए भक्ति आंदोलन में उनका योगदान
Guru Ravidas Jayanti 2024: 24 फरवरी को देशभर में गुरु रविदास जयंती धूमधाम से मनाई जाएगी। प्रति वर्ष माघ पूर्णिमा तिथि को रविदास जयंती मनाई जाती है। गुरु रविदास भक्ति आंदोलन में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं। भगत रविदास के नाम से भी जाने जाने वाले गुरु रविदास ने मानव अधिकारों और समानता के महत्व के बारे में शिक्षा दी और उपदेश दिया। उनकी शिक्षाओं ने लोगों के दृष्टिकोण को बदल दिया और उन्हें जीवन में सही रास्ते पर लाया। वह एक संत, कवि और दार्शनिक थे और उनकी शिक्षाओं का जश्न मनाया जाता है। गुरु रविदास जयंती भारत के उत्तरी भाग में मनाए जाने वाले सबसे प्रतीक्षित त्योहारों में से एक है। गुरु रविदास जयंती विशेष रूप से पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा राज्यों में मनाई जाती है।
कब हुआ था गुरु रविदास जी का जन्म?
गुरु रविदास, जिन्हें रैदास, रोहिदास और रूहीदास के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 1377 ई. में उत्तर प्रदेश के सीर गोवर्धनपुर नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था। एक गरीब परिवार में जन्म लेने के बावजूद, गुरु रविदास ने अपना जीवन मानव अधिकारों और समानता के उपदेश के लिए समर्पित कर दिया। वह एक बहुत प्रसिद्ध कवि भी थे। उनकी कुछ कविताएँ गुरु ग्रंथ साहिब जी का हिस्सा हैं। रहस्यवादी कवयित्री और भगवान कृष्ण की प्रबल भक्त, मीरा बाई ने भी गुरु रविदास को अपना आध्यात्मिक गुरु माना।
रविदास जयंती का महत्व
इस दिन लोग नगरकीर्तन का आयोजन करते हैं और गुरबानी गाते हैं और विशेष आरती करते हैं। श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर, सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी में गुरु रविदास की जयंती पर एक भव्य समारोह का आयोजन किया जाता है। पूरे देश से भक्त इस दिन को मनाने और महान संत की शिक्षाओं को याद करने के लिए एक साथ आते हैं। भक्त पवित्र स्थानों पर भी जाते हैं और गुरु रविदास को अपनी प्रार्थनाएँ समर्पित करने के लिए पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं।
रैदास के दोहे
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात, रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।
भावार्थ - अगर केले के तने को छिला जाये पत्ते के नीचे पत्ता ही निकलता है और अंत में पूरा खाली निकलता है। पेड़ मगर खत्म हो जाता है। वैसे ही इंसान को जातियों में बांट दिया गया है। इंसान खत्म हो जाता है मगर जाति खत्म नहीं होती है। जब तक जाति खत्म नहीं होगीं, तब तक इंसान एक दूसरे से जुड़ नही सकता है, कभी भी एक नहीं हो सकता है।
रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।
भावार्थ - जिसके दिल में दिन-रात राम रहते है। उस भक्त को राम समान ही मानना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि न तो उनपर क्रोध का असर होता है और न ही काम की भावना उस पर हावी होती है।