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एक दिव्य शिवलिंग जो 80 साल में केवल एक बार दिखता है, जानिए क्या है इसकी अद्भुत और हैरान कर देने वाली कहानी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 16, 2020 12:59 IST

Gokarna: कर्नाटक में मौजूद इस जगह को 'दक्षिण का काशी' भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां मनुष्य ही नहीं बल्कि देवता से लेकर नाग, पिशाच और गंधर्व तक महादेव की पूजा के लिए आते हैं।

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ठळक मुद्देगोकरण में मौजूद शिवलिंग का भक्तों के लिए खास महत्व, भगवान शिव का 'आत्मलिंग' मौजूद है यहांइस आत्मलिंग को महाबलेश्वर और मृग-श्रृंगा लिंग रत्न भी कहा जाता है, रावण से जुड़ी है कथा

भारत में कई ऐसी जगहें हैं जिनका हिंदू धर्म के अनुसार बहुत महत्व है। ऐसी ही एक जगह कर्नाटक में भी है जो गोकरण के नाम से लोकप्रिय है। भगवान शिव से जुड़ाव के कारण ये सबसे पवित्र स्थानों में से भी एक है। परंपरा के अनुसार यहां शिव के 'आत्मा लिंग' का वास है। यह जगह सात मुक्तिक्षेत्रों में से एक है।

गोकरण का अर्थ है 'गाय के कान'। ऐसी मान्यता है कि यहां मनुष्य ही नहीं बल्कि देवता से लेकर नाग, पिशाच और गंधर्व तक महादेव की पूजा के लिए आते हैं। भगवान शिव यहां गाय के कान से प्रकट हुए थे। इसलिए इस स्थान का नाम गोकरण हुआ। इस स्थान का आकार भी गाय के कान जैसा है।

गोकरण: 80 साल में केवल एक बार हो सकता है शिवलिंग का दर्शन

गोकरण में मौजूद शिवलिंग का भक्तों के लिए खास महत्व है। इसका दर्शन जनता हर 80 साल में केवल एक बार कर सकती है। महापूजा के बाद इस आत्मलिंग को फिर से पृथ्वी मां में प्रवेश करा दिया जाता है। इस शिवलिंग का अगला दर्शन 2040 में है। ऐसे में अगर आप उस समय इस शिवलिंग का दर्शन नहीं कर पाते तो फिर 2120 तक इंतजार करना होगा।

इस आत्मलिंग को महाबलेश्वर और मृग-श्रृंगा लिंग रत्न भी कहा जाता है। आत्मलिंग को सिरे तक चांदी की भूमिगत तिजोरी में दबाया गया है। ऊपर का केवल बहुत छोटा सा सिरा ही कवर नहीं किया गया है। हालांकि, वह भी पवित्र पानी और दूध के मिश्रण में डूबा हुआ है। भक्तगण इस मिश्रण में हाथ डालकर 'लिंग' को महसूस कर सकते हैं।

शिवलिंग की कथा रावण और गणेशजी से है जुड़ी

इस शिवलिंग का सिरा कॉर्क-स्क्रू की तरह है। ऐसा इसलिए कि लंका के राजा रावण ने आत्मलिंग को पृथ्वी से तब उखाड़ने का प्रयास किया था। इसे यहां स्वयं महागणपति ने रखा था। शिव पुराण की एक कथा के अनुसार रावण ने एक बार शिव को अपने साथ ले जाने की जिद पकड़ ली। उसने उन्हें प्रसन्न कर लिया।

भोलेनाथ ने फिर आत्मलिंग रावण को दिया और शर्त भी रख दी कि एक बार जहां इस शिवलिंग को धरती पर रख दिया गया तो फिर इसे कोई अलग नहीं कर सकता। एक खास बात ये भी थी कि इस शिवलिंग का वजन लगातार बढ़ रहा था। बहरहाल, रावण उसे लेकर चला तभी विष्णु जी ने शाम के धुंधलके का वातावरण उत्पन्न कर दिया। रावण ब्राह्मण था और इसलिए उसे संध्या वंदना के लिए रुकना पड़ा।

रावण कोई ऐसी जगह खोजने लगा जहां शिवलिंग को रखा जा सके और उसका धरती से स्पर्श भी नहीं हो। इतने में चरवाहे के भेष में गणेश जी वहां आ गये। उन्होंने रावण की पूजा पूरी होने तक शिवलिंग को पकड़े रखने की बात मान ली। उन्होंने साथ ही कहा अगर वे उस शिवलिंग को पकड़े रहने में असमर्थ हुए तो केवल तीन बार रावण को पुकारेंगे और शिवलिंग को जमीन पर रख देंगे। इस तरह आत्मलिंग गोकरण में रह गया। 

गोकरण: दक्षिण की काशी कहते हैं इसे

भगवान शिव से विशेष जुड़ाव के ही कारण इस जगह को दक्षिण की काशी भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस जगह पर अराधना करने से ब्रह्महत्या से भी छुटकारा मिल सकता है। शिवपुराण के अनुसार समस्थ तीर्थों की यात्रा के बाद भी जब इच्छाकुवंश के राजा मित्रसह की ब्रह्महत्या का दोष दूर नहीं हुआ तो गौतम मुनि के आदेश से वे यहीं आए थे।

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